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जीवन में अनियंत्रित अहंकार का खतरा क्या है?

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जीवन में अनियंत्रित अहंकार का खतरा क्या है?

अहंकार की जंजीरों से मुक्त होने का आह्वान
साधक,
जीवन में जब अहंकार अनियंत्रित हो जाता है, तो वह हमारे भीतर की शांति को छीन लेता है और रिश्तों को तोड़ देता है। यह ऐसा विष है जो धीरे-धीरे हमारे मन और व्यवहार को जकड़ लेता है। तुम अकेले नहीं हो इस लड़ाई में, हर इंसान के भीतर कभी न कभी अहंकार की जड़ें उभरती हैं। आइए, गीता के दिव्य प्रकाश में इस समस्या को समझें और उससे मुक्त होने का मार्ग खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मम बुद्धिरेवाभिजानाति तान्सर्वानुरजाम्यहम्॥

— भगवद्गीता ७.४
अर्थ: अहंकार, बल, दर्प (घमंड), काम, क्रोध ये सभी मेरे बुद्धि के ही रूप हैं। मैं इन्हें जानता हूँ और इन्हीं के आधार पर संसार चलता है।

सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि अहंकार और उससे जुड़ी भावनाएँ हमारे मन की ही उपज हैं। जब हम अपने मन को समझते हैं, तो इन भावों से लड़ने का रास्ता भी मिल जाता है। अहंकार को पहचानना पहला कदम है उसे नियंत्रित करने का।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं की पहचान से अहंकार मिटता है: जब हम अपने सच्चे स्वरूप (आत्मा) को समझते हैं, तब अहंकार का प्रभाव कम होता है।
  2. कर्मयोग अपनाओ: फल की चिंता छोड़कर अपने कर्म करो, इससे अहंकार का दमन होता है।
  3. समत्व भाव विकसित करो: सुख-दुख में समान दृष्टि रखने से अहंकार कमजोर पड़ता है।
  4. समर्पण की भावना: ईश्वर को समर्पित भाव से अहंकार का उद्धार संभव है।
  5. धैर्य और संयम: क्रोध और घमंड को नियंत्रित करने के लिए संयम आवश्यक है।

🌊 मन की हलचल

तुम महसूस कर रहे हो कि कभी-कभी तुम्हारा मन घमंड में डूब जाता है, दूसरों से तुलना करता है, अपनी श्रेष्ठता साबित करने की कोशिश करता है। यह अहंकार तुम्हें अंदर से बेचैन कर देता है, रिश्तों में दूरी बना देता है। तुम्हारा मन कह रहा है, "मैं अकेला ही सही, पर मेरी पहचान बनी रहे।" परंतु, क्या यही रास्ता है शांति का?

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“हे प्रिय, अहंकार को अपने मन का रोग मत बनने दो। इसे अपने अंदर के प्रकाश से मिटा दो। याद रखो, तुम वह आत्मा हो जो न तो बड़ा है, न छोटा। जब तुम अपने मन को सच्चाई और प्रेम से भर दोगे, तब अहंकार अपने आप कम हो जाएगा। अपने दिल को खोलो, और मुझ पर विश्वास रखो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र था जो अपनी बुद्धिमानी पर बहुत घमंड करता था। उसने अपने मित्रों को नीचा दिखाने की कोशिश की, लेकिन धीरे-धीरे वह अकेला पड़ गया। एक दिन उसने गुरु से पूछा, “गुरुजी, मैं क्यों अकेला हो गया?” गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, “जब तुम अपने ज्ञान को दूसरों से ऊपर समझने लगते हो, तो वह ज्ञान तुम्हें बांध लेता है। असली ज्ञान तो तब है जब तुम सभी को बराबर समझो।” तब छात्र ने अहंकार को त्यागकर सबके प्रति प्रेम और सम्मान दिखाना सीखा, और उसके जीवन में खुशियाँ लौट आईं।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में झांककर देखो—
क्या कहीं तुम्हारा अहंकार तुम्हें दूसरों से दूर तो नहीं कर रहा?
एक छोटे से क्षण के लिए अपने अहंकार को पहचानो और उसे प्रेम से स्वीकार कर उसे धीरे-धीरे छोड़ने का संकल्प लो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरा अहंकार मुझे खुशी से दूर कर रहा है?
  • मैं किस प्रकार अपने मन को अहंकार से मुक्त कर सकता हूँ?

🌼 अहंकार से मुक्त हो, प्रेम और शांति की ओर बढ़ो
साधक, अहंकार का बोझ तुम्हें भारी महसूस कराता है, पर उसे पहचान कर तुम उसे कमज़ोर कर सकते हो। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो इस यात्रा में। हर दिन एक नया अवसर है अपने मन को शुद्ध करने का। मैं तुम्हारे साथ हूँ, और तुम्हारा मार्गदर्शन करता रहूँगा। चलो, अहंकार की जंजीरों को तोड़कर प्रेम और समत्व की ओर कदम बढ़ाएं।
शांति और प्रेम के साथ।

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