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कृष्ण ने अर्जुन को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए क्या सलाह दी?

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कृष्ण ने अर्जुन को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए क्या सलाह दी?

भावनाओं के तूफान में शांति का दीप जलाएं
साधक, जब अंदर की आग भड़कती है, क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या की लहरें मन को घेर लेती हैं, तब ऐसा लगता है जैसे संसार ही हमारे खिलाफ हो। पर जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के भीतर ये भाव आते-जाते रहते हैं। पर असली वीर वही है जो इन भावों को समझकर, उन्हें नियंत्रित कर अपने भीतर की शांति को बनाए रखता है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 62-63
ध्यान दें: यहाँ कृष्ण ने मन की अशांति को समझाया है।

ध्यानात् विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात् संस्पर्शोऽञ्जनः संस्पर्शात्प्रसवः कामः।
कामात्क्रोधोऽभिजायते क्रोधाद्भवति सम्मोहः।
सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशः॥

हिंदी अनुवाद:
जब कोई व्यक्ति किसी विषय पर ध्यान लगाता है, तो उससे आसक्ति उत्पन्न होती है। आसक्ति से इंद्रियों का स्पर्श होता है, स्पर्श से कामना जन्म लेती है। कामना से क्रोध उत्पन्न होता है, क्रोध से भ्रम की स्थिति होती है और भ्रम से स्मृति का नाश होता है, जिससे बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
सरल व्याख्या:
कृष्ण कहते हैं कि क्रोध और अहंकार की जड़ हमारी इच्छाएँ और आसक्तियाँ हैं। जब हम किसी चीज़ को पाने की लालसा में पड़ जाते हैं, तो वह लालसा क्रोध में बदल सकती है। क्रोध मन को भ्रमित कर देता है, जिससे हम सही निर्णय नहीं ले पाते। इसलिए, भावनाओं को नियंत्रित करने का पहला कदम है इच्छाओं को समझना और उन्हें संयमित करना।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं को पहचानो: अपनी भावनाओं को अपने ऊपर हावी न होने दो। उन्हें देखो, समझो, पर अपने स्वभाव से अलग करो।
  2. संतुलित दृष्टिकोण अपनाओ: न क्रोध में बहो, न अहंकार में फंसो। जो होता है उसे स्वीकार करो, पर अपने कर्मों से विचलित न हो।
  3. ध्यान और योग का अभ्यास: मन को स्थिर करने के लिए नियमित ध्यान और योग आवश्यक हैं। ये मन को शांति और स्पष्टता देते हैं।
  4. कर्मयोग अपनाओ: फल की चिंता छोड़कर अपने कर्तव्य का पालन करो। इससे अहंकार और ईर्ष्या कम होती है।
  5. ईश्वर में विश्वास रखो: अपने भावों को ईश्वर के चरणों में सौंप दो। इससे मन को सच्ची शांति मिलती है।

🌊 मन की हलचल

तुम कह रहे हो, "मेरा क्रोध मुझे नियंत्रित कर रहा है, मैं खुद को खो देता हूँ। अहंकार मुझे दूसरों से अलग और बड़ा महसूस कराता है, पर यह मुझे अंदर से खाली कर देता है। ईर्ष्या मेरे मन को विषाक्त कर रही है। मैं कैसे इन भावों से मुक्त हो सकता हूँ?"
ऐसा महसूस करना स्वाभाविक है। पर याद रखो, ये भाव तुम्हारे असली स्वरूप नहीं हैं। ये तो केवल बादल हैं, जो तुम्हारे आकाश को ढक लेते हैं। आकाश तो हमेशा शुद्ध और विशाल रहता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, जब भी तुम्हारे मन में क्रोध आता है, उसे अपने भीतर की आग समझो, जो जलाकर सब कुछ राख कर सकती है। पर तुम अग्नि नहीं, अग्निहोत्री हो। अग्नि को नियंत्रित कर उसे उपयोगी बनाना तुम्हारा धर्म है। अपने अहंकार को पहचानो, पर उसे अपने अस्तित्व का आधार न बनने दो। ईर्ष्या को अपने मन से निकाल दो, क्योंकि यह तुम्हें कमजोर बनाती है। याद रखो, जो मनुष्य अपने मन को जीत लेता है, वही सच्चा विजेता है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नदी के किनारे दो बच्चे खेल रहे थे। उनमें से एक को अपनी नाव सबसे अच्छी लगती थी, और वह दूसरे की नाव पर ईर्ष्या करता था। अचानक उसकी नाव टूट गई, और क्रोध में आकर उसने दूसरे की नाव को भी तोड़ दिया। तब एक बूढ़े साधु ने उन्हें समझाया, "नावें तो केवल माध्यम हैं, असली यात्रा तुम्हारे मन की है। जब मन शांत होगा, तो नदी भी तुम्हारे लिए सुहानी हो जाएगी।"
ठीक वैसे ही, जब तुम अपने क्रोध और अहंकार को समझ कर शांत करोगे, तभी जीवन की यात्रा सुखमय होगी।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में आने वाले क्रोध और अहंकार को नोट करो। जब भी वे आएं, गहरी सांस लो और सोचो: "क्या यह भावना मेरे लिए लाभकारी है या हानिकारक?" इस अभ्यास से तुम्हारा मन धीरे-धीरे नियंत्रित होगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरी इच्छाएँ और आसक्तियाँ मेरे क्रोध का कारण तो नहीं?
  • मैं अपने मन की आग को शांत करने के लिए क्या कर सकता हूँ?

शांति की ओर एक कदम बढ़ाएं
प्रिय, याद रखो कि भावनाओं का नियंत्रण एक यात्रा है, मंजिल नहीं। हर दिन एक नया अवसर है अपने भीतर की शांति को खोजने का। तुम अकेले नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ। अपनी आंतरिक शक्ति पर विश्वास रखो और धीरे-धीरे अपने मन के तूफानों को शांत कर एक शांत समुंदर बन जाओ।
शुभकामनाएँ और प्रेम के साथ।

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