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क्रोध रिश्तों को क्यों नष्ट करता है? गीता क्या सिखाती है?

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  • क्रोध रिश्तों को क्यों नष्ट करता है? गीता क्या सिखाती है?

क्रोध की आग में जलते रिश्ते: चलो समझें गीता का संदेश
साधक, जब क्रोध हमारे मन पर हावी हो जाता है, तो वह रिश्तों की नाजुक डोर को जरा भी छूते ही झुलसा देता है। यह आग न केवल बाहर की दुनिया को जलाती है, बल्कि भीतर के प्रेम और समझदारी को भी राख कर देती है। आइए, गीता के अमर श्लोकों से इस ज्वाला को बुझाने का मार्ग खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

क्लेशोऽधिकतर इन्द्रियस्य दोषोऽधिकतरात्मनः।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

(भगवद्गीता 6.5)

हिंदी अनुवाद:
"अधिकतर क्लेश इन्द्रियों से उत्पन्न होता है, और अधिकतर दोष आत्मा में ही होता है। वास्तव में आत्मा अपनी ही मित्र है और अपनी ही शत्रु।"
सरल व्याख्या:
हमारा क्रोध और उससे उत्पन्न क्लेश, हमारे इन्द्रियों और मन की अनियंत्रित प्रतिक्रियाओं से होता है। जब हम अपने भीतर की शांति को नहीं समझ पाते, तब हम अपने ही शत्रु बन जाते हैं, जो रिश्तों को नष्ट कर देता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं पर नियंत्रण: क्रोध तब उत्पन्न होता है जब हम अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण खो देते हैं। गीता सिखाती है कि आत्मा की शक्ति को पहचान कर मन को संयमित करना चाहिए।
  2. समत्व भाव: गीता में समत्व का भाव अपनाने को कहा गया है, जिससे सुख-दुख, लाभ-हानि में समान दृष्टि बनती है और क्रोध जैसी भावनाएँ कम होती हैं।
  3. अहंकार का त्याग: क्रोध अक्सर अहंकार से जन्मता है। जब हम अपने अहं को त्याग देते हैं, तो रिश्तों में प्रेम और समझदारी बढ़ती है।
  4. धैर्य और क्षमा: गीता में धैर्य और क्षमा को परम गुण माना गया है, जो क्रोध की आग को बुझाने में सहायक होते हैं।
  5. आत्मा की शांति: अंततः, आत्मा की शांति से ही मन शांत होता है और क्रोध का विनाशकारी प्रभाव समाप्त होता है।

🌊 मन की हलचल

तुम महसूस कर रहे हो कि जब भी कोई तुम्हें चोट पहुंचाता है, तुम्हारा मन आग की तरह भड़क उठता है। यह क्रोध तुम्हें और तुम्हारे प्रियजनों को दूर कर देता है, और तुम खुद को अकेला महसूस करते हो। यह भी डर है कि कहीं तुम्हारा यह क्रोध तुम्हारे रिश्तों को पूरी तरह न तोड़ दे। यह समझना स्वाभाविक है कि क्रोध एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, पर इसे नियंत्रित करना भी तुम्हारे हाथ में है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, याद रखो कि क्रोध तुम्हारा मित्र नहीं, बल्कि तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु है। जब तुम क्रोध में होते हो, तब तुम अपने सच्चे स्वरूप से दूर हो जाते हो। अपने मन को समत्व में रखो, और समझो कि हर व्यक्ति और परिस्थिति तुम्हारे जीवन का एक अध्याय है। अहंकार को त्यागो, और प्रेम से अपने भीतर की आग को बुझाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ, बस अपने भीतर की आवाज़ सुनो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक बगीचे में दो पेड़ थे — एक नाराज़ और क्रोधित था, जो हर छोटी बात पर अपने पत्ते झाड़ता और आसपास के पौधों को चोट पहुँचाता। दूसरा पेड़ शांत और स्थिर था, जो हवा के झोंकों को सहन करता और सबको छाया देता। धीरे-धीरे, क्रोधित पेड़ के पत्ते झड़ गए और वह कमजोर हो गया, जबकि शांत पेड़ फल-फूल कर बढ़ता रहा। रिश्ते भी ऐसे ही हैं — क्रोध से वे कमजोर होते हैं, और प्रेम से वे फलते-फूलते हैं।

✨ आज का एक कदम

जब भी क्रोध आए, गहरी साँस लें और 10 तक धीरे-धीरे गिनती करें। इस बीच अपने मन को यह याद दिलाएं कि "मैं अपने रिश्तों को प्यार और समझ से संजोना चाहता हूँ।"

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरा क्रोध वास्तव में मेरी समस्या का समाधान कर रहा है या उसे और बढ़ा रहा है?
  • मैं अपने रिश्तों में प्रेम और धैर्य कैसे बढ़ा सकता हूँ?

🌼 शांत मन, प्रेम भरे रिश्ते: एक नई शुरुआत
साधक, याद रखो कि क्रोध एक क्षणिक आग है, जिसे बुझाया जा सकता है। जब तुम अपने मन को समझोगे, संयमित करोगे और प्रेम से भर दोगे, तब रिश्ते भी मजबूत और मधुर बनेंगे। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर। चलो, क्रोध की आग को प्रेम की शीतलता में बदलें और अपने जीवन को शांति से भर दें।
शुभकामनाएँ! 🌸

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