Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer

User account menu

  • प्रवेश
मुख्य पृष्ठ
Gita Answers
When Life ask Questions Gita Answers

Main navigation

  • मुख्य पृष्ठ

कृष्ण कर्तव्य को आराम पर चुनने के बारे में क्या कहते हैं?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • कृष्ण कर्तव्य को आराम पर चुनने के बारे में क्या कहते हैं?

कर्तव्य और आराम के बीच: जीवन की सच्ची राह
साधक,
जब मन कर्तव्य और आराम के बीच उलझ जाता है, तो यह स्वाभाविक है। हर व्यक्ति चाहता है कि जीवन में सुख हो, परंतु क्या वह सुख स्थायी होगा? कृष्ण हमें बताते हैं कि सच्चा सुख तभी मिलता है जब हम अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करते हैं, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो। चलिए इस उलझन को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते।
(भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 31)
अर्थ:
हे अर्जुन! क्षत्रिय के लिए धर्मयुक्त युद्ध से उत्तम कोई अन्य कार्य नहीं है।
सरल व्याख्या:
अपने स्वधर्म (कर्तव्य) का पालन करना ही श्रेष्ठ है, भले ही उसमें कष्ट हो। आराम और मोह-माया में फंसना अस्थायी सुख देता है, परंतु कर्तव्य का पालन स्थायी सम्मान और आत्मसंतोष।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. कर्तव्य में ही जीवन का सार है — आराम की लालसा क्षणिक है, पर कर्तव्य पालन से आत्मा को स्थायी शांति मिलती है।
  2. धर्म का पालन साहस और समर्पण मांगता है — जो कर्तव्य से भागता है, वह अंततः स्वयं से भी भागता है।
  3. संतुलन बनाए रखना आवश्यक है — आराम भी जरूरी है, पर वह कर्तव्य का त्याग नहीं होना चाहिए।
  4. स्वधर्म का पालन ही मोक्ष की ओर मार्ग है — आराम में लिप्त होने से आत्मा का विकास रुक जाता है।
  5. कर्मयोग अपनाओ — फल की चिंता छोड़कर कर्म करते रहो, आराम और कर्तव्य दोनों में संतुलन बनाओ।

🌊 मन की हलचल

"मैं थक गया हूँ, थोड़ा आराम कर लूं तो क्या गलत होगा? कर्तव्य तो कल भी कर सकता हूँ।"
ऐसे विचार आते हैं, और वे स्वाभाविक भी हैं। पर क्या यह आराम हमें अंदर से तृप्त करेगा? या फिर यह पल भर का सुकून है जो बाद में पछतावा देगा? तुम्हारा मन तुम्हें आराम की ओर खींचता है, पर तुम्हारा आत्मा तुम्हें कर्तव्य की राह दिखाता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, आराम भी जीवन का हिस्सा है, पर वह तुम्हारे कर्तव्य का विकल्प नहीं हो सकता। जब तक तुम अपने धर्म के पथ पर चलोगे, तुम्हें सच्चा सुख और शांति मिलेगी। कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, निर्भय होकर आगे बढ़ो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी

एक बार एक विद्यार्थी था जो परीक्षा की तैयारी में लगा था। वह थक गया और सोचा कि थोड़ी देर आराम कर लेता हूँ। पर जब वह आराम से उठा, तो पाया कि समय कम है और तैयारी अधूरी है। उसने फिर से मेहनत शुरू की और परीक्षा में सफल हुआ। आराम जरूरी था, पर कर्तव्य की प्राथमिकता ने उसे लक्ष्य तक पहुँचाया। जीवन भी ऐसा ही है — आराम के साथ कर्तव्य का संतुलन ही सफलता का मूल मंत्र है।

✨ आज का एक कदम

अपने दिनचर्या में आराम के लिए समय निर्धारित करें, लेकिन उस समय के बाद कर्तव्य के कार्य को पूर्ण निष्ठा से करें। जैसे ३० मिनट का विश्राम, फिर मन लगाकर कर्तव्य में लग जाना।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरा आराम मुझे मेरे कर्तव्य से दूर तो नहीं ले जा रहा?
  • क्या मैं अपने कर्म में पूरी निष्ठा और समर्पण दे रहा हूँ?

शांति की ओर एक कदम
प्रिय, याद रखो कि आराम और कर्तव्य दोनों जीवन के आवश्यक अंग हैं, परंतु कर्तव्य वह दीपक है जो तुम्हारे जीवन को उजागर करता है। आराम के मोह में फंसकर उस दीपक को बुझाना नहीं। कृष्ण की शिक्षा से प्रेरणा लेकर, अपने कर्तव्य का पालन करो और आत्मा के सच्चे सुख को अनुभव करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हमेशा।
शुभ हो तुम्हारा पथ! 🌸

Footer menu

  • संपर्क
Powered by Drupal

Copyright © 2025 Company Name - All rights reserved

Developed and Designed by Alaa Haddad at Flash Web Center, LLC