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गीता अहंकार और गर्व के बारे में क्या कहती है?

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अहंकार के अंधकार से प्रकाश की ओर — तुम अकेले नहीं हो
साधक, यह समझना बहुत जरूरी है कि अहंकार और गर्व हमारे मन के ऐसे बादल हैं जो हमें अपनी सच्चाई से दूर कर देते हैं। जब हम अपने आप को दूसरों से बड़ा समझने लगते हैं, तब भीतर का संतुलन टूटता है और मन अशांत हो जाता है। यह भाव तुम्हारे भीतर भी कहीं न कहीं उठ रहा है, और यह ठीक है। क्योंकि हर मानव जीवन में अहंकार की परीक्षा आती है। आइए, गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 13, श्लोक 8
"अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मोहं चाऽमृष्यमानाः सत्त्वान्येवानुपश्यन्ति धीराः॥"

हिंदी अनुवाद:
अहंकार (मैं-भाव), बल (शक्ति का दंभ), दर्प (गर्व), काम (इच्छा), क्रोध और मोह — ये वे भाव हैं जिन पर निर्भर होकर मूढ़ मनुष्य अपने स्वभाव को पहचानता है। परंतु जो बुद्धिमान हैं, वे इन सत्यों को नहीं देखते।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि अहंकार, गर्व, क्रोध, और मोह मनुष्य के स्वभाव के विकार हैं। जो व्यक्ति सच्चे ज्ञान से परिपूर्ण होता है, वह इन भावों को अपने भीतर नहीं पनपने देता। वह इनको अपने असली स्वरूप में देखता है और उनसे ऊपर उठ जाता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. अहंकार का मूल — गीता कहती है कि अहंकार मनुष्य के अहितकारी स्वभाव का हिस्सा है, जो ज्ञान और विवेक के अभाव में जन्मता है।
  2. स्वयं की पहचान — "मैं" को शरीर या मन से जोड़ना ही अहंकार है, जबकि असली "मैं" आत्मा है, जो नित्य और अविनाशी है।
  3. गर्व का नाश — गर्व और दर्प को त्याग कर ही मनुष्य शांति और संतुलन प्राप्त कर सकता है।
  4. क्रोध और मोह से बचाव — ये भाव अहंकार के पोषक हैं, अतः इन्हें नियंत्रित करना आवश्यक है।
  5. ध्यान और ज्ञान से विजय — निरंतर ध्यान और आत्म-ज्ञान से अहंकार का विनाश संभव है।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो — "क्या मैं भी अहंकार का शिकार हूँ? क्या गर्व ने मेरी सोच को बंद कर दिया है? क्या मैं दूसरों से बेहतर दिखने की कोशिश में खुद को खो रहा हूँ?" यह सवाल तुम्हारे भीतर की जागरूकता की पहली सीढ़ी है। डरने की जरूरत नहीं, यह तो परिवर्तन की शुरुआत है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, अहंकार तुम्हारा शत्रु नहीं, बल्कि तुम्हारा शिक्षक है। जब तक तुम उसे समझकर अपने पास से दूर नहीं करोगे, तब तक वह तुम्हें बांधे रखेगा। उसे अपने मन के एक कोने में बैठाओ, पर उसे राजा मत बनने दो। याद रखो, तुम आत्मा हो, जो नित्य और शुद्ध है। अपने मन को स्वच्छ रखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक राजा अपने दरबार में बैठा था। वह अपने सिंहासन पर गर्व करता था, अपने राज्य पर, अपनी ताकत पर। लेकिन एक दिन एक साधु आया और बोला, "तुम्हारा सिंहासन बड़ा है, पर क्या तुम्हारा मन बड़ा है? जो अपने अहंकार से ऊपर उठ जाता है, वही सच्चा राजा है।" राजा ने उस दिन अपने गर्व को त्याग दिया और एक दयालु और ज्ञानी शासक बन गया।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में उठने वाले गर्व और अहंकार के विचारों को पहचानो, उन्हें स्वीकार करो, और धीरे-धीरे उन्हें छोड़ने का प्रयास करो। जब भी तुम्हें लगे कि "मैं सबसे बेहतर हूँ," तो खुद से पूछो — क्या यह सच है? क्या यह मुझे शांति देता है?

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अहंकार को पहचान पा रहा हूँ?
  • क्या मेरा गर्व मुझे दूसरों से जोड़ने के बजाय अलग कर रहा है?

शांति की ओर एक कदम — अहंकार को समझो, प्रेम को अपनाओ
प्रिय, अहंकार और गर्व तुम्हारे मन के मेहमान हैं, जो आते हैं और जाते हैं। उन्हें अपने अंदर बसने मत दो। अपने भीतर की सच्ची आत्मा को पहचानो, जो प्रेम, करुणा और विनम्रता से भरी है। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो, इस यात्रा में साथ चलें, जहां अहंकार की जगह शांति और प्रेम का वास हो।
शुभकामनाएँ। 🌼🙏

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