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क्या कर्म केवल अच्छे और बुरे कर्मों के बारे में है?

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क्या कर्म केवल अच्छे और बुरे कर्मों के बारे में है?

कर्म की गहराई: क्या कर्म केवल अच्छे और बुरे का खेल है?
साधक,
तुम्हारा यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है। जीवन में कर्म का अर्थ केवल अच्छा या बुरा करना नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक गहरा और व्यापक है। जैसे नदी का पानी बहता है, वैसे ही कर्म भी निरंतर प्रवाहित होते रहते हैं। चलो, गीता के प्रकाश में इस रहस्य को समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(भगवद् गीता 2.47)
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि कर्म करना हमारा कर्तव्य है, लेकिन उसके परिणामों में आसक्ति या भय नहीं रखना चाहिए। कर्म का अर्थ केवल अच्छा या बुरा करना नहीं, बल्कि अपने कर्तव्य के अनुसार समर्पित होकर कार्य करना है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. कर्म का स्वरूप व्यापक है: कर्म केवल अच्छे और बुरे कार्यों का योग नहीं, बल्कि हर क्रिया, सोच और भावना भी कर्म हैं।
  2. फलों की चिंता छोड़ो: कर्म करो, लेकिन फल की चिंता छोड़ दो; इससे मन शांति और स्थिरता पाता है।
  3. संकल्प और समर्पण: कर्म करते समय संकल्प मजबूत करो और उसे ईश्वर को समर्पित कर दो।
  4. अकर्म नहीं होता: कोई भी क्रिया शून्य नहीं होती, हर कर्म का प्रभाव होता है, इसलिए सजग रहो।
  5. स्वधर्म का पालन: अपने स्वधर्म (स्वयं के कर्तव्य) को समझो और उसी के अनुसार कर्म करो।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो कि क्या अच्छा कर्म हमेशा अच्छा फल देता है? या बुरा कर्म क्यों कभी-कभी तुरंत दिखाई नहीं देता? यह उलझन स्वाभाविक है। जीवन में कई बार हम अपने कर्मों के परिणामों को लेकर भ्रमित हो जाते हैं। लेकिन याद रखो, कर्म का फल इस जीवन या अगली जन्मों में समय और परिस्थिति के अनुसार प्रकट होता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, कर्म करो, फल की चिंता मत करो। जैसे तुम खेत में बीज बोते हो और पानी देते हो, पर फसल की चिंता प्रकृति पर छोड़ देते हो। उसी प्रकार अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से करो, फल की चिंता छोड़ दो। यही सच्चा ज्ञान है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र परीक्षा की तैयारी कर रहा था। वह दिन-रात मेहनत करता, पर परिणाम की चिंता भी करता। एक दिन उसके गुरु ने कहा, "तुम्हारा काम है पढ़ाई करना, फल की चिंता मत करो। जैसे किसान बीज बोता है, पानी देता है, लेकिन फसल की जिम्मेदारी प्रकृति की होती है।"
यह बात उस छात्र के मन को शांति दे गई। उसने अपने कर्म—अध्ययन—पर पूरा ध्यान दिया, और फल की चिंता छोड़ दी। अंततः उसने सफलता पाई।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी कर्म को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करो, बिना फल की चिंता किए। अनुभव करो कि मन में कैसी शांति आती है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों को फल की चिंता के बिना कर पा रहा हूँ?
  • क्या मैं अपने कर्मों को अपने स्वधर्म के अनुसार समझ पा रहा हूँ?

कर्म की गंगा में डुबकी: शांति और समझ की ओर
साधक, कर्म केवल अच्छे-बुरे का खेल नहीं, बल्कि जीवन की निरंतर धारा है। जैसे नदी बहती रहती है, वैसे ही कर्म भी निरंतर होते रहते हैं। अपने कर्मों को प्रेम और समर्पण से करो, फल की चिंता छोड़ दो। यही जीवन की सच्ची कला है।
तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हारा हर कर्म तुम्हें स्वयं के और ईश्वर के निकट ले जाएगा।
शुभकामनाएँ! 🌺🙏

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