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अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

कृष्ण कहते हैं “मैं सभी प्रकार की पूजा स्वीकार करता हूँ” इसका कारण क्या है?

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  • कृष्ण कहते हैं “मैं सभी प्रकार की पूजा स्वीकार करता हूँ” इसका कारण क्या है?

हर भक्ति को स्वीकार करने वाले कृष्ण का प्रेम
साधक, जब तुम्हारे मन में यह सवाल उठता है कि "कृष्ण क्यों कहते हैं कि वे सभी प्रकार की पूजा स्वीकार करते हैं?", तो समझो कि यह उनकी अपार दया, प्रेम और समभाव का परिचायक है। वे हर उस हृदय की पुकार सुनते हैं जो सच्चे मन से उनसे जुड़ना चाहता है, चाहे वह भक्ति किसी भी रूप में क्यों न हो।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 9, श्लोक 26
"पतङ्गमिवाम्भसि ज्ञानिनामपि माम्भसि वेदः।
सर्वभूताधिपतिं मां विद्धि पार्थ ममात्मनः॥"

अनुवाद:
हे पार्थ! जो मुझसे प्रेमपूर्वक भक्ति करते हैं, मैं उन्हें अपने समान मानता हूँ। जैसे मच्छर जल में विचरता है, वैसे ही ज्ञानी भी मुझमें निवास करता है। सब जीवों के स्वामी को जानो कि मैं सबका आत्मा हूँ।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. भक्ति के अनेक मार्ग हैं: कृष्ण समझते हैं कि हर व्यक्ति की भक्ति की भाषा अलग होती है। कोई गीत गाता है, कोई ध्यान करता है, कोई सेवा करता है। सभी मार्ग प्रेम की ओर ले जाते हैं।
  2. सच्चा भाव सर्वोपरि: पूजा की विधि से ज्यादा महत्वपूर्ण है मन का सच्चा भाव। जब हृदय से समर्पण होता है, तब वह पूजा भगवान तक पहुँचती है।
  3. समभाव और अहंकार त्याग: कृष्ण सभी को समान दृष्टि से देखते हैं, इसलिए वे सभी प्रकार की भक्ति स्वीकार करते हैं, क्योंकि वे भेदभाव नहीं करते।
  4. अंतर्मुखी अनुभूति: पूजा का उद्देश्य भगवान के साथ आत्मीय संबंध स्थापित करना है, न कि केवल बाहरी कर्मकाण्ड करना।
  5. सर्व जीवों में ईश्वर का वास: जब हम किसी भी रूप में पूजा करते हैं, तो वह ईश्वर की उपासना होती है, क्योंकि वे सर्वत्र व्याप्त हैं।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो, "क्या मेरी पूजा सही है? क्या मेरी साधना स्वीकार होगी?" यह संदेह मानव मन का स्वाभाविक हिस्सा है। पर याद रखो, ईश्वर तुम्हारे मन की गहराई को जानते हैं। जो प्रेम और श्रद्धा तुम उनके प्रति रखते हो, वही उनकी दृष्टि में सबसे श्रेष्ठ पूजा है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, मैं तुम्हारे हृदय की गहराई में हूँ। तुम्हारी छोटी-छोटी भक्ति, तुम्हारे मन के संकोच और तुम्हारे प्रेम की हर बूंद मेरे लिए अमृत है। पूजा की विधि से मत घबराओ, बस मुझसे जुड़ो। मैं हर उस भक्ति को स्वीकार करता हूँ जो सच्चे मन से की जाती है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छोटे से गाँव में दो बच्चे थे। एक बच्चा फूल तोड़कर भगवान को चढ़ाता था, और दूसरा नदी के किनारे बैठकर चुपचाप भगवान के बारे में सोचता था। गाँव के लोग सोचते थे कि फूल चढ़ाने वाला ही सही पूजा करता है। पर गाँव के बुजुर्ग ने कहा, "जो भी मन से करता है, वही पूजा है। फूल तो सिर्फ प्रतीक हैं।" ठीक वैसे ही, कृष्ण सभी प्रकार की भक्ति को स्वीकार करते हैं क्योंकि वे हृदय की पूजा को देखते हैं।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन की किसी एक छोटी सी पूजा या भक्ति को पूरी श्रद्धा और प्रेम के साथ करो। चाहे वह एक मंत्र हो, एक प्रार्थना हो, या एक छोटी सेवा। देखो, तुम्हारा मन कितना शान्त और प्रसन्न होता है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरी भक्ति में प्रेम और सच्चाई है?
  • क्या मैं ईश्वर को अपने हृदय में महसूस करता हूँ, न कि केवल बाहरी कर्मों में उलझा हूँ?

प्रेम और समर्पण की ओर एक कदम
तुम्हारा प्रेम और समर्पण ही कृष्ण का प्रिय उपहार है। वे हर रूप में तुम्हारी भक्ति स्वीकार करते हैं, क्योंकि उनके लिए हृदय का भाव सबसे बड़ा पूजा है। इसलिए, निश्चिंत रहो और प्रेम के साथ अपने मार्ग पर बढ़ो।
शुभकामनाएँ! 🌸🙏

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