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गीता मन को नियंत्रित करने के बारे में क्या सिखाती है?

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मन की उलझनों में शांति का दीप जलाएं
साधक, जब मन अस्थिर हो, विचार इधर-उधर भटके, और इच्छाएँ अनियंत्रित हो, तब तुम्हारा मन परेशान होता है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि मन एक घोड़े की तरह है जिसे सही दिशा में लगाम देना सीखना पड़ता है। भगवद गीता में हमें यही ज्ञान मिलता है — मन को नियंत्रित करने का दिव्य विज्ञान। आइए, इस ज्ञान के प्रकाश में हम अपने मन को सशक्त, शांत और स्थिर बनाना सीखें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 6, श्लोक 26
(अष्टाध्यायी योग - ध्यान योग)

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्॥

हिंदी अनुवाद:
जहाँ-जहाँ मन विचलित होकर भटकता है, वहाँ-तहाँ उसे नियंत्रित कर, अपने आप को ही वश में करो।
सरल व्याख्या:
मन स्वभाव से चंचल और स्थिर नहीं रहता। जब भी वह भटकता है, हमें उसे फिर से अपने नियंत्रण में लाना चाहिए। यह अभ्यास ही मन को नियंत्रित करने का मार्ग है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. मन की स्वाभाविक चंचलता को समझो: मन स्वभाव से स्थिर नहीं, यह भटकता रहता है। इसे दोष न समझो, बल्कि इसे नियंत्रित करना सीखो।
  2. नियमित अभ्यास से मन को वश में करो: ध्यान, योग और आत्मनिरीक्षण से मन को एकाग्र करना संभव है।
  3. विचारों का निरीक्षक बनो: मन में आने वाले विचारों को बिना प्रतिक्रिया दिए देखो, उन्हें अपने ऊपर हावी न होने दो।
  4. धैर्य और संयम के साथ आगे बढ़ो: मन को नियंत्रित करना एक दिन का काम नहीं, यह निरंतर प्रयास और संयम मांगता है।
  5. आत्मा की पहचान से मन को स्थिर करो: जब तुम अपने वास्तविक स्वरूप (आत्मा) को समझते हो, तब मन की चंचलता कम होती है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा, "मैं थक गया हूँ, इतने विचार मेरे ऊपर भारी पड़ रहे हैं। मैं क्यों नहीं शांत हो पाता?" यह स्वाभाविक है। हर कोई इस संघर्ष से गुजरता है। तुम्हारा मन तुम्हारा साथी है, न कि दुश्मन। उसे प्यार से समझो, उसकी चंचलता को स्वीकारो, और धीरे-धीरे उसे अपने साथ चलना सिखाओ।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, जब भी तेरा मन भटकता है, उसे प्यार से पकड़ और वापस अपनी आत्मा की ओर मोड़। जैसे तूने सवार घोड़े को लगाम से नियंत्रित किया, वैसे ही अपने मन को भी लगाम दे। याद रख, मन को वश में करना कठिन है, पर असंभव नहीं। मैं तेरे साथ हूँ, तू बस धैर्य रख।"

🌱 एक छोटी सी कहानी

एक बार एक बालक था जो घोड़े की पीठ पर सवार था। घोड़ा तेज़ दौड़ने लगा और बालक डर गया। उसने घोड़े को कसकर पकड़ लिया, धीरे-धीरे घोड़ा शांत हुआ और बालक ने उसे नियंत्रित करना सीख लिया। वैसे ही हमारा मन भी एक घोड़ा है। जब हम उसे प्यार से पकड़ते हैं, तो वह हमारा साथी बन जाता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन की एकाग्रता के लिए ५ मिनट का ध्यान करें। बस बैठो, अपनी साँसों को महसूस करो और जब भी मन भटके, उसे प्यार से वापस लाओ। यह छोटा अभ्यास तुम्हारे मन को नियंत्रित करने की दिशा में पहला कदम है।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन की चंचलता को स्वीकार कर पा रहा हूँ?
  • मैं अपने मन को शांत करने के लिए आज क्या कर सकता हूँ?

मन की शांति की ओर पहला कदम
तुम अकेले नहीं हो, हर किसी के मन में यह संघर्ष होता है। गीता का यह संदेश है कि निरंतर अभ्यास और प्रेम से मन को नियंत्रित किया जा सकता है। धैर्य रखो, अपने भीतर की शक्ति को पहचानो और अपने मन को अपने सबसे अच्छे मित्र बनाओ। तुम्हारा मन तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा साथी है, उसे प्यार दो, समझो और नियंत्रित करो।
शुभकामनाएँ, मेरे साधक।

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