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कृष्ण अर्जुन को युद्ध में भय के बारे में क्या सिखाते हैं?

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  • कृष्ण अर्जुन को युद्ध में भय के बारे में क्या सिखाते हैं?

भय की आग में भी शांति का दीप जलाना संभव है
प्रिय शिष्य, जब जीवन के रणभूमि में भय का साया छा जाता है, तब मन डगमगाने लगता है। तुम्हारा यह भय, यह बेचैनी, बिल्कुल स्वाभाविक है। कृष्ण ने अर्जुन को भी वही अनुभूति दी, जब वे युद्धभूमि में खड़े थे। परंतु, उस भीड़-भाड़, उस भयावह परिस्थिति में भी उन्होंने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वह आज तुम्हारे लिए भी अमूल्य है। आइए, हम उस दिव्य संवाद में डूब कर अपने मन के भय को समझें और उसे पार करें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक:
धृतराष्ट्र उवाच |
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||
अनुवाद:
धृतराष्ट्र बोले — हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में, युद्ध के लिए एकत्र हुए मेरे और पांडु के पुत्र क्या कर रहे हैं?

श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि || 2.47 ||
अनुवाद:
तुम्हारा केवल कर्म करने में अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं; इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्त हो।

सरल व्याख्या:
यह श्लोक अर्जुन के मन के भय और संशय को दूर करने के लिए कृष्ण ने कहा। हमें अपने कर्तव्य को निडर होकर करना चाहिए, फल की चिंता किए बिना। भय इसलिए आता है क्योंकि हम परिणाम की चिंता करते हैं, परंतु जब हम अपने कर्म को कर्म के लिए करते हैं, तब भय अपने आप कम हो जाता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. कर्तव्य पर फोकस करें, फल पर नहीं: भय अक्सर भविष्य की अनिश्चितता से उत्पन्न होता है। कृष्ण कहते हैं, अपना ध्यान कर्म पर केंद्रित करो, फल की चिंता छोड़ दो।
  2. मन को स्थिर करो: भय के समय मन विचलित होता है। गीता में बताया गया है कि योग, ध्यान, और अपने भीतर के स्थिरता को विकसित करके भय को कम किया जा सकता है।
  3. स्वयं को पहचानो: तुम आत्मा हो, न कि केवल शरीर या परिस्थिति। आत्मा अविनाशी है, इसलिए भय अस्थायी है।
  4. संकटों में भी धैर्य रखो: जीवन के युद्ध में धैर्य और साहस ही तुम्हारे सबसे बड़े साथी हैं।
  5. भगवान की शरण में आओ: जब भय बढ़े, तो श्रीकृष्ण की भक्ति और स्मरण से मन को शांति मिलेगी।

🌊 मन की हलचल

"क्या मैं इस भय को सहन कर पाऊंगा? अगर मैं असफल हुआ तो? मेरी हिम्मत कहाँ से आएगी?" — यह आवाज़ तुम्हारे मन में उठती है। यह ठीक है, क्योंकि भय हमें चेतावनी देता है और हमें तैयार करता है। भय को न दबाओ, उसे समझो, उससे लड़ो, और उससे ऊपर उठो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, तू अकेला नहीं है। मैं तेरे साथ हूँ। तेरा मन जो भय से घिरा है, उसे छोड़ दे। अपने कर्म पर विश्वास कर, और मुझमें समर्पित हो। युद्ध चाहे जितना भी भयानक हो, तू अपने धर्म का पालन कर। डर को त्याग, क्योंकि तू आत्मा है, अविनाशी, अनंत।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो कि एक छात्र परीक्षा की तैयारी कर रहा है। वह डरता है कि कहीं वह फेल न हो जाए। भय उसे रातों की नींद छीन लेता है। पर एक दिन उसके गुरु ने कहा, "तुम्हारा काम है मेहनत करना, परिणाम की चिंता मत करो। जो होगा, अच्छा होगा।" जैसे वह छात्र अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करता है, उसका भय कम होने लगता है और वह परीक्षा में सफल होता है। जीवन का युद्ध भी ऐसा ही है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में उठ रहे भय को पहचानो। उसे किसी कागज पर लिखो। फिर गहरी सांस लेकर कहो — "मैं अपने कर्म पर विश्वास करता हूँ। मैं भय से ऊपर उठता हूँ।" इस अभ्यास को रोज़ दोहराओ।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने भय का सामना कर सकता हूँ बिना भागे?
  • क्या मैं अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभा रहा हूँ?

भय से परे, शांति की ओर एक कदम
प्रिय, याद रखो, भय तुम्हारा दुश्मन नहीं, बल्कि तुम्हारा शिक्षक है। कृष्ण का संदेश है कि भय को समझो, उसे स्वीकारो, फिर उसे त्यागो। तुम अकेले नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो, भय की इस आग में भी शांति का दीप जलाएं और अपने जीवन के युद्ध को विजय बनाएं।

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