Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

गीता इंद्रिय सुखों के प्रति चेतावनी क्यों देती है?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • गीता इंद्रिय सुखों के प्रति चेतावनी क्यों देती है?

इंद्रिय सुखों के मोह से परे: आंतरिक स्वतंत्रता की ओर पहला कदम
प्रिय मित्र, यह प्रश्न तुम्हारे भीतर एक गहन संघर्ष की झलक दिखाता है — इंद्रिय सुखों की लालसा और उससे होने वाली उलझनों का बोझ। यह समझना जरूरी है कि भगवद गीता हमें क्यों चेतावनी देती है कि हम इंद्रिय सुखों के पीछे अंधाधुंध न भागें। चलो, इस यात्रा में मैं तुम्हारे साथ हूँ।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 62-63
** Sanskrit:**
ध्यानादेवSELF-REFLECTION
ध्यायादात्मनः सम्यग्‍ज्ञानेनात्मानं विनोदितम्।
सुखं वा यदि वा दुःखं ततोऽभिजानाति तत्त्वतः॥ 62॥
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोति निश्चलम्।
अभ्यासेन ततो दत्तोऽभ्यासेऽपि विनश्यति॥ 63॥
हिंदी अनुवाद:
जब कोई मनुष्य इंद्रिय विषयों में मग्न होता है, तो उसका मन धीरे-धीरे उस वस्तु में स्थिर हो जाता है। फिर वह सुख या दुःख को गहराई से समझने लगता है। परन्तु जब मन को स्थिर करना कठिन हो जाता है, तो अभ्यास से भी मन विचलित हो जाता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. इंद्रिय सुख अस्थायी हैं: ये सुख क्षणिक हैं, जैसे नदी का पानी जो बहता रहता है, स्थिर नहीं रहता। उनसे जुड़ना अंततः दुःख का कारण बनता है।
  2. मन का भ्रम: इंद्रिय सुखों के पीछे भागते हुए मन भ्रमित हो जाता है, और असली शांति से दूर हो जाता है।
  3. असली सुख आत्मा में है: गीता सिखाती है कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, अपितु अपने अंदर की आत्मा में है।
  4. वैराग्य का महत्व: इंद्रिय सुखों से विरक्ति (वैराग्य) ही मन को स्थिरता और शांति प्रदान करती है।
  5. अभ्यास से ही मुक्ति: मन को इंद्रिय मोह से मुक्त करने के लिए निरंतर अभ्यास और ध्यान आवश्यक है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा, "यह सुख तो मुझे खुशी देता है, इसे छोड़ना क्यों?" या "मैं बिना इन सुखों के अधूरा हूँ।" यह स्वाभाविक है। क्योंकि हम जन्म से ही इंद्रिय सुखों के आदतदार हैं। परंतु क्या कभी सोचा है कि जब ये सुख छूट जाते हैं, तो कैसा खालीपन महसूस होता है? यही गीता हमें दिखाती है — असली शांति और आनंद के लिए हमें इस मोह से ऊपर उठना होगा।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, यह इंद्रिय सुख तुम्हें मोह में बाँधते हैं, जैसे मछली जाल में फंसती है। जब तुम इन सुखों को छोड़ कर अपने भीतर की शांति की ओर कदम बढ़ाओगे, तभी तुम्हें सच्चा आनंद मिलेगा। याद रखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारे हर संघर्ष में।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो, एक बच्चा जो मिठाई के पीछे भागता रहता है। वह मिठाई खाते हुए खुश होता है, पर जब मिठाई खत्म हो जाती है, तो वह फिर से और मांगने लगता है। इसी तरह, इंद्रिय सुख भी हमें थोड़ी देर के लिए खुश करते हैं, पर वे कभी संतोष नहीं देते। असली खुशी तो उस बच्चे के चेहरे की मुस्कान में है, जब वह खेलता है, सीखता है और अपने अंदर की खुशी को महसूस करता है।

✨ आज का एक कदम

आज कम से कम 10 मिनट के लिए अपने मन को शांत बैठने दो, बिना किसी बाहरी वस्तु के। अपने सांसों पर ध्यान दो और महसूस करो कि यह शांति कितनी गहरी और स्थायी है। इस अभ्यास से तुम्हें इंद्रिय सुखों के बाहर भी आनंद का अनुभव होगा।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने इंद्रिय सुखों के पीछे भागते हुए अपनी असली खुशी को भूल तो नहीं रहा हूँ?
  • क्या मैं आज अपने मन को थोड़ा सा विरक्ति देकर शांति का अनुभव कर सकता हूँ?

मन की शांति की ओर एक कदम
तुम अकेले नहीं हो इस संघर्ष में। भगवद गीता तुम्हें एक सच्चे मार्गदर्शक की तरह अपने भीतर की शक्ति और शांति की ओर ले जाती है। याद रखो, इंद्रिय सुखों का मोह छूटना कठिन है, पर संभव है। एक-एक कदम बढ़ाओ, और मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शुभकामनाएँ! 🌸🙏

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers