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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

क्या मैं गीता के मार्ग का पालन करते हुए भी लक्ष्य और इच्छाएँ रख सकता हूँ?

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  • क्या मैं गीता के मार्ग का पालन करते हुए भी लक्ष्य और इच्छाएँ रख सकता हूँ?

इच्छाओं के संग, फिर भी मुक्त कैसे रहें?
साधक, यह प्रश्न बहुत ही सुंदर और गहन है। जीवन में लक्ष्य और इच्छाएँ होना स्वाभाविक है, क्योंकि वे हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। परन्तु, क्या हम गीता के उपदेश के अनुसार इन इच्छाओं के बंधन से मुक्त रह सकते हैं? जी हाँ, बिल्कुल! आइए इस रहस्य को गीता के दिव्य प्रकाश में समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्मों के फल की इच्छा मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्त हो।
सरल व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण हमें बताते हैं कि हमारा ध्यान केवल कर्म करने पर होना चाहिए, न कि उसके परिणामों पर। हम इच्छाएँ और लक्ष्य रख सकते हैं, लेकिन उनसे जुड़े परिणामों की चिंता या आसक्ति हमें बंधन में डाल देती है। जब हम कर्म करते हैं और उसके फल को भगवान पर छोड़ देते हैं, तभी हम आंतरिक स्वतंत्रता का अनुभव करते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. इच्छाएँ स्वाभाविक हैं: इच्छाएँ और लक्ष्य हमें जीवन में दिशा देते हैं, उन्हें नकारना आवश्यक नहीं।
  2. फल की आसक्ति छोड़ें: कर्म करते समय केवल अपने कर्तव्य पर ध्यान दें, परिणाम की चिंता छोड़ दें।
  3. अहंकार त्यागें: अपनी इच्छाओं को अपने अहंकार का हिस्सा न बनने दें, बल्कि उन्हें कर्म का साधन बनाएं।
  4. संतुलन बनाए रखें: जीवन में सक्रिय रहें, परन्तु मन को स्थिर और शांत रखें।
  5. भगवान पर भरोसा रखें: अपने कर्मों के फल को ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दें, यही सच्ची भक्ति है।

🌊 मन की हलचल

"मैं अपने सपनों का पीछा करना चाहता हूँ, पर डर लगता है कि अगर सफल नहीं हुआ तो? क्या मैं फिर भी शांति पा सकूंगा? क्या मेरी इच्छाएँ मुझे बंधन में नहीं डालेंगी?" — यह चिंताएँ स्वाभाविक हैं। हम सब चाहते हैं कि हमारा प्रयास सफल हो, पर गीता हमें सिखाती है कि सफलता या असफलता से हमारी शांति प्रभावित न हो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, तुम्हारे मन में जो भी लक्ष्य हो, उन्हें अपनाओ। पर याद रखो, फल की चिंता तुम्हें भ्रमित करती है। जब तुम अपने कर्मों को समर्पित भाव से मेरे चरणों में अर्पित करोगे, तब चाहे फल जैसा भी हो, तुम्हारा मन स्थिर और मुक्त रहेगा। यही है सच्ची आज़ादी।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो कि एक छात्र परीक्षा की तैयारी कर रहा है। वह पूरी मेहनत से पढ़ता है, पर परीक्षा के परिणाम की चिंता नहीं करता। वह जानता है कि परिणाम उसके हाथ में नहीं, पर उसकी मेहनत जरूर उसकी जिम्मेदारी है। इसी प्रकार, हम जीवन के कर्म करें, पर फल की चिंता भगवान पर छोड़ दें।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी एक छोटे लक्ष्य को चिन्हित करें और उसे पूरी निष्ठा से करें, पर फल की चिंता को मन से बाहर निकाल दें। बस कर्म पर ध्यान दें, फल को ईश्वर पर छोड़ दें।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से कर रहा हूँ बिना फल की चिंता किए?
  • क्या मेरी इच्छाएँ मुझे बंधन में डाल रही हैं या मुझे आगे बढ़ने की ऊर्जा दे रही हैं?

🌼 इच्छाओं के साथ भी मुक्त रहने का आशीर्वाद
साधक, याद रखो, इच्छाएँ और लक्ष्य जीवन की ऊर्जा हैं। गीता का मार्ग हमें सिखाता है कि इस ऊर्जा को कैसे सही दिशा दें और फल की आसक्ति से मुक्त होकर आंतरिक शांति पाएं। तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो, इस पथ पर एक कदम और बढ़ाएं।
हर दिन तुम्हारे कर्म तुम्हें मुक्त करें और तुम्हारा मन शांति से भर जाए — यही मेरी शुभकामना है।

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