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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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क्या गीता के अनुसार भय एक माया हो सकती है?

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  • क्या गीता के अनुसार भय एक माया हो सकती है?

भय के सागर में एक दीपक: तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब मन में भय और चिंता की लहरें उठती हैं, तो ऐसा लगता है जैसे जीवन का प्रकाश बुझ सा गया हो। परंतु जान लो, यह भय एक माया है — एक भ्रम, जो तुम्हारे असली स्वरूप को छुपा देता है। भगवद गीता हमें इस माया से मुक्त होने का मार्ग दिखाती है। चलो, इस गूढ़ विषय पर गीता के प्रकाश में विचार करें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक:
"भयाद्रोगभयादश्च नास्त्यत्र संशयः कुतः।
भयो नाभयमेव च तस्माद्भयमित्यभिधीयते॥"
(भगवद्गीता 18.57)
हिंदी अनुवाद:
"डर, रोग और भय जैसी वस्तुएँ वास्तव में कहीं नहीं हैं। इसलिए, भय का कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं है। भय केवल एक नाम है जो मन की भ्रमित अवस्था को दर्शाता है।"
सरल व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि भय वास्तव में हमारे मन की एक माया है — एक भ्रम। भय का कोई ठोस अस्तित्व नहीं है, यह केवल हमारी सोच का परिणाम है। जब हम अपने मन को समझते हैं, तो भय अपने आप छूट जाता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. मन का स्वामी बनो: भय मन की उपज है, और मन को नियंत्रित करना ज्ञान का पहला कदम है।
  2. धैर्य और स्थिरता: स्थिरचित्त होकर भय को पहचानो, उसे अपने ऊपर हावी न होने दो।
  3. स्वधर्म का पालन: अपने कर्मों में लीन रहो, फल की चिंता छोड़ दो। भय तब कम होगा जब तुम अपने कर्तव्य में निश्चिंत रहोगे।
  4. आत्मा की पहचान: आत्मा अमर है, जो जन्म और मृत्यु से परे है। भय केवल शरीर और मन से जुड़ा है, सच्चे स्वरूप को छू नहीं सकता।
  5. भगवान की शरण: प्रभु की शरण में भय का अंत होता है, क्योंकि वह सर्वशक्तिमान है और तुम्हारे सर्वत्र साथ है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा — "क्या होगा अगर मैं असफल हो जाऊं? क्या होगा अगर मैं खो जाऊं? क्या होगा अगर मुझे चोट लगे?" ये सवाल स्वाभाविक हैं। परंतु याद रखो, ये प्रश्न भय की माया के जाल में फंसने के संकेत हैं। मन को समझाओ कि ये केवल छाया हैं, वास्तविकता नहीं।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन! जब भी तेरा मन भय से घिर जाए, मुझमें स्मरण कर। मैं तुझे उस माया के अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाऊंगा। तू निर्भय होकर अपने कर्म में लीन हो, मैं तेरे साथ हूँ। भय तेरा नहीं, तेरा मन का भ्रम है। उसे छोड़ दे।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छोटी सी बच्ची अपने घर के बाहर अंधेरे में अकेली थी। उसे अंधकार में डर लग रहा था। तभी उसकी माँ ने उसकी हाथ पकड़कर कहा, "डर मत बेटा, मैं तेरे साथ हूँ। अंधेरे में मेरा हाथ है, तो कुछ भी भयभीत करने वाला नहीं।" बच्ची ने माँ का हाथ पकड़ा और उसके मन से भय दूर हो गया। इसी प्रकार, जब हम परमात्मा का हाथ थाम लेते हैं, तो भय की माया टूट जाती है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में उठ रहे भय को पहचानो और उसे लिखो। फिर उस भय को एक कागज पर छोड़ दो, जैसे उसे हवा में उड़ाकर दूर कर रहे हो। हर बार भय आए, उसे पहचानो और याद दिलाओ कि यह केवल माया है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • इस भय के पीछे मेरा कौन सा अनुभव या सोच है?
  • क्या यह भय मेरे सच्चे स्वरूप को छू रहा है या केवल मन की उपज है?

🌼 भय के बादल छंटेंगे, सूरज फिर खिलेंगे
साधक, भय एक क्षणिक माया है, जो तुम्हारे मन को भ्रमित करती है। गीता का संदेश है कि तुम अपने भीतर के सच्चे प्रकाश को पहचानो और उस प्रकाश में डूब जाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ, और तुम्हारा भी यह भय छूट जाएगा। चलो, एक साथ इस अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ें।
शुभकामनाएँ।
— तुम्हारा आत्मीय गुरु

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