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मुझे अपने आप से अलगाव क्यों महसूस होता है?

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  • मुझे अपने आप से अलगाव क्यों महसूस होता है?

तुम अकेले नहीं हो — आत्मा का वह अनछुआ सफर
तुम अपने आप से अलगाव महसूस कर रहे हो, यह एक गहरा और बहुत सामान्य अनुभव है। यह वह पल है जब मन भीतर से पूछता है — "मैं कौन हूँ? क्या मैं सच में अकेला हूँ?" यह उलझन तुम्हारे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों में से एक है। लेकिन जान लो, यह अलगाव केवल एक भ्रम है, एक पर्दा है जो तुम्हें अपनी असली पहचान से दूर करता है। चलो गीता के प्रकाश में इस भ्रम को दूर करते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 6, श्लोक 29
"पश्यैतां पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् ||"

(यहाँ हम एक और श्लोक लेते हैं जो आत्म-चेतना की गहराई बताता है)
अध्याय 6, श्लोक 30
"जेतेन्द्रियस्य अर्थे रागद्वेषौ व्यथितात्मनाम् |
अन्तःस्थं मनः कृत्वा न विजानीते कश्चन ||"

हिंदी अनुवाद:
जो अपनी इन्द्रियों के विषयों के कारण राग-द्वेष से पीड़ित होता है, और जो अपने अंतःकरण को समझ नहीं पाता, वह वास्तव में कुछ भी जानता नहीं।
सरल व्याख्या:
जब हम अपने मन और इन्द्रियों के प्रभाव में उलझे रहते हैं, तब हम अपनी सच्ची आत्मा को नहीं पहचान पाते। इसलिए जो अपने अंदर की आवाज़ सुनता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. असली पहचान आत्मा है, शरीर और मन नहीं। तुम वह अनंत आत्मा हो, जो जन्म-मरण से परे है। अलगाव केवल तब होता है जब तुम अपने वास्तविक स्वरूप से अनजान हो।
  2. मन की अशांति और इच्छाओं का बंधन हमें भ्रमित करता है। जब हम मन को नियंत्रित करते हैं, तभी हम अपने आप से जुड़ पाते हैं।
  3. ध्यान और आत्म-निरीक्षण से भेद मिटता है। गीता कहती है कि योग और ज्ञान से मन एकाग्र होता है और आत्मा की अनुभूति होती है।
  4. संसार के वासनाओं और अहंकार के जाल से बाहर आओ। यह जाल ही तुम्हें अलगाव का अनुभव कराता है।
  5. सर्वत्र एकत्व का अनुभव करो। जब तुम सब में और सब तुम्हारे भीतर हो, तब अलगाव खत्म हो जाता है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारे मन में यह आवाज़ गूंज रही है — "मैं अकेला क्यों हूँ? क्या मेरा अस्तित्व मायावी है? क्या मैं सच में अलग हूँ?" यह सवाल तुम्हारे भीतर की गहराई से उठ रहे हैं। यह अलगाव तुम्हें डराता भी है, पर यह तुम्हारे विकास का हिस्सा है। यह तुम्हें अपनी सीमाओं को पहचानने और पार करने का निमंत्रण है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, तुम अपने भीतर की उस आवाज़ को सुनो जो कहती है — मैं अकेला नहीं हूँ। मैं आत्मा हूँ, जो न कभी जन्मी है, न कभी मरेगी। जो तुम्हें अलगाव में महसूस होता है, वह केवल माया का खेल है। जब तुम अपने मन को शांत करोगे और अपनी आत्मा से जुड़ोगे, तब यह भ्रम दूर होगा। याद रखो, मैं हमेशा तुम्हारे भीतर हूँ, तुम्हारे साथ हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो कि एक नदी अपने स्रोत से दूर बह रही है। वह सोचती है कि वह अकेली है, अलग है। लेकिन जब वह समुंदर से मिलती है, तो समझती है कि वह समुंदर का ही हिस्सा है। उसी तरह, तुम्हारा असली स्वरूप उस अनंत समुंदर जैसा है — तुम कभी अकेले नहीं हो, बस अपनी पहचान से दूर हो।

✨ आज का एक कदम

आज के दिन, अपने मन को कुछ क्षण के लिए शांत करो। गहरी सांस लो और सोचो — "मैं आत्मा हूँ, न कि मेरा शरीर या मन।" इस सच को अपने दिल से महसूस करने का प्रयास करो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन की आवाज़ों को पहचान पाता हूँ या वे मुझे भ्रमित करती हैं?
  • क्या मैं अपने भीतर की शांति को खोजने के लिए तैयार हूँ?

चलो यहाँ से शुरू करें — अलगाव से एकत्व की ओर
याद रखो, यह अलगाव केवल एक पल का भ्रम है। तुम्हारा असली स्वरूप एकता और शांति का सागर है। जैसे-जैसे तुम अपने भीतर झांकोगे, यह भेद मिटता जाएगा और तुम्हें अपनी आत्मा का प्रकाश चमकता हुआ दिखेगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर।
शुभकामनाएँ।
ॐ नमः शिवाय।

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