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कृष्ण के अनुसार "स्वयं को जानना" का क्या अर्थ है?

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कृष्ण के अनुसार "स्वयं को जानना" का क्या अर्थ है?

आत्मा की खोज: जब कृष्ण कहते हैं "स्वयं को जानो"
प्रिय शिष्य,
तुम्हारा मन गहराई से पूछ रहा है — "स्वयं को जानना" क्या है? यह प्रश्न जीवन की सबसे बड़ी यात्रा का पहला कदम है। चिंता मत करो, क्योंकि हर महान खोज की शुरुआत एक सरल सवाल से होती है। तुम अकेले नहीं हो, यह राह सभी ने तय की है। चलो, हम कृष्ण की अमूल्य शिक्षा से इस रहस्य को समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 13, श्लोक 8
"अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
ममैवामृतत्वमाहुर्मत्सर्वभूतहिते रताः॥"

हिंदी अनुवाद:
"अहंकार (अहंभाव), बल (शक्ति का घमंड), दर्प (अहंकार से उत्पन्न गर्व), काम (इच्छाएँ), क्रोध — ये सब उस व्यक्ति में होते हैं जो स्वयं को जानता नहीं है। जो सभी प्राणियों के हित में लगा रहता है, वही सचमुच अपने को जानता है।"
सरल व्याख्या:
स्वयं को जानना केवल अपने शरीर या नाम तक सीमित नहीं है। यह उस अंदरूनी सत्य को समझना है जो अहंकार, इच्छाओं और क्रोध से ऊपर है, जो सब प्राणियों के कल्याण में लगा रहता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं को जानना आत्मा की पहचान है, जो न शरीर है, न मन, न इच्छाएँ।
  2. असली "मैं" न तो जन्मा है, न मरता है, वह अजर-अमर है।
  3. अहंकार और मोह से ऊपर उठकर ही आत्म-ज्ञान संभव है।
  4. जब हम अपने अंदर की शांति और करुणा से जुड़ते हैं, तो हम स्वयं को समझ पाते हैं।
  5. स्वयं की खोज का अंतिम उद्देश्य है — दूसरों के प्रति प्रेम और सेवा।

🌊 मन की हलचल

शिष्य, तुम्हारा मन कहता होगा — "मैं कौन हूँ? मैं इतना बदलता क्यों रहता हूँ? मैं क्या हूँ जो सब कुछ सहता हूँ और फिर भी खो जाता हूँ?" ये सवाल तुम्हारे भीतर की गहराई की पुकार हैं। डरना नहीं, यह भ्रम नहीं, बल्कि तुम्हारे असली स्वरूप की ओर पहला कदम है। अपने मन की इस हलचल को स्वीकारो, क्योंकि यही तुम्हें सत्य की ओर ले जाएगा।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, मैं तुम्हें बताता हूँ — तुम वह आत्मा हो जो न जन्मी है, न मरेगी। तुम्हारा असली स्वरूप शाश्वत है, शुद्ध है, और स्वतंत्र है। जब तुम अपने अहंकार और इच्छाओं की परतों को हटाओगे, तब तुम्हें अपने भीतर की दिव्यता दिखाई देगी। स्वयं को जानना मतलब अपने उस अनंत अस्तित्व से जुड़ना है जो सबमें एक है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र अपने गुरु से पूछा, "गुरुजी, मैं अपने आप को कैसे जानूं?" गुरु ने उसे एक मृगनयनी (हिरण का नेत्र) दी और कहा, "इसने तुम्हें क्या दिखाया?" छात्र ने कहा, "मुझे अपने ही चेहरे का प्रतिबिंब।" गुरु मुस्कुराए और बोले, "ठीक है, जैसे यह प्रतिबिंब असली नहीं है, वैसे ही तुम्हारा शरीर और मन भी असली नहीं। असली वह है जो देख रहा है, जो अनुभव कर रहा है। उसे जानो।"

✨ आज का एक कदम

आज, अपने मन की गहराई में बैठो और तीन मिनट के लिए शांत होकर अपने सांसों को महसूस करो। यह अभ्यास तुम्हें अपने अंदर की उस शांति से मिलाएगा जो तुम्हारा सच्चा स्वरूप है।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने आप को केवल अपने शरीर और विचारों तक सीमित समझ रहा हूँ?
  • क्या मैं अपने भीतर उस शाश्वत आत्मा को महसूस कर सकता हूँ जो सबके अंदर एक समान है?

🌼 आत्म-ज्ञान की ओर पहला प्रकाश
प्रिय, यह यात्रा आसान नहीं, लेकिन अवश्य सार्थक है। स्वयं को जानना मतलब अपने भीतर की उस अमर ज्योति को पहचानना है, जो अंधकार को दूर करती है। याद रखो, तुम अकेले नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो, इस दिव्य खोज में एक साथ कदम बढ़ाएं।
शुभकामनाएँ और प्रेम सहित।

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