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नेतृत्व पदों में अहंकार कैसे कम करें?

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  • नेतृत्व पदों में अहंकार कैसे कम करें?

अहंकार के पर्दे से नेतृत्व की सच्ची रोशनी तक
साधक, जब हम नेतृत्व के पदों पर होते हैं, तब हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है और साथ ही अहंकार का भी खतरा। यह स्वाभाविक है कि सफलता के साथ मन में गर्व जन्म लेता है, परंतु वही गर्व यदि अति हो जाए तो वह अंधकार बन जाता है। आइए, भगवद गीता के दिव्य प्रकाश में हम समझते हैं कि कैसे अहंकार को कम कर कर सच्चे नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त करें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 3, श्लोक 30
मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।
निर्व्याजं निराशीर्युक्तं युक्तः कर्म करिष्यसि॥

हिंदी अनुवाद:
"हे अर्जुन! समस्त कर्मों को मुझमें समर्पित कर, अपने मन को आत्मा के विषय में केंद्रित करके, बिना किसी स्वार्थ और निराशा के, तुम कर्म करते रहो।"
सरल व्याख्या:
जब हम अपने कर्मों को किसी बड़े उद्देश्य के लिए समर्पित कर देते हैं, तब अहंकार का जन्म कम होता है। कर्म करते समय स्वार्थ और फल की चिंता छोड़ देना ही अहंकार को कम करने का सबसे बड़ा उपाय है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं को एक साधन समझो, उद्देश्य नहीं। नेतृत्व पद पर भी यह समझना जरूरी है कि आप संगठन या समाज की सेवा कर रहे हैं, न कि केवल अपने लिए काम कर रहे हैं।
  2. फल की इच्छा त्यागो। अपने काम के परिणामों से आसक्त न बनो। केवल अपने कर्तव्य का पालन करो।
  3. समत्व भाव विकसित करो। सफलता और असफलता, प्रशंसा और आलोचना को समान दृष्टि से देखो।
  4. आत्मनि अवस्थान करो। अपने भीतर की आत्मा को पहचानो, जो अहंकार से परे है।
  5. सहजता और नम्रता अपनाओ। बड़े पद पर होते हुए भी विनम्रता का भाव बनाए रखो।

🌊 मन की हलचल

शिष्य, तुम्हारे मन में यह आवाज़ आ रही होगी—"मैंने इतना कुछ किया, मुझे सम्मान मिलना चाहिए।" यह स्वाभाविक है। पर क्या यह सम्मान तुम्हारे अहंकार को बढ़ा रहा है या तुम्हारे नेतृत्व को मजबूत कर रहा है? जब अहंकार बढ़ता है, तो हम दूसरों की बात सुनना बंद कर देते हैं, और नेतृत्व की असली ताकत खो देते हैं। यह एक चेतावनी है कि अपने मन को संयमित करो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, याद रखो, नेतृत्व केवल पद और शक्ति का नाम नहीं, बल्कि सेवा और समर्पण का नाम है। जब तुम अपने कर्मों को मुझमें समर्पित कर दोगे, तब अहंकार का भार अपने आप कम हो जाएगा। अपने आप को बड़ा समझना छोड़ दो, और अपने कर्तव्य में लीन हो जाओ। यही तुम्हारा सच्चा बल है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नदी के किनारे दो मछुआरे रहते थे। एक मछुआरा हमेशा बड़ी बड़ी मछलियाँ पकड़ने पर गर्व करता और दूसरों को नीचा दिखाता। दूसरा मछुआरा शांत और विनम्र था, जो अपने काम को पूरी निष्ठा से करता। समय के साथ, पहला मछुआरा अकेला और तनावग्रस्त हो गया, जबकि दूसरा मछुआरा खुशहाल और सम्मानित बना रहा। यही अहंकार और विनम्रता की कहानी है। नेतृत्व में भी ऐसा ही होता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी निर्णय या कार्य को करते समय यह पूछो: "क्या मैं इसे अपने अहंकार को बढ़ाने के लिए कर रहा हूँ, या सेवा और समर्पण के लिए?" इस सवाल से तुम्हारा मन साफ होगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने पद को अपनी पहचान समझ रहा हूँ या अपने कर्तव्य को?
  • क्या मेरी सोच में दूसरों के लिए सम्मान और सहानुभूति है?

नम्रता के पथ पर पहला कदम
साधक, अहंकार को कम करना कोई एक दिन का काम नहीं, बल्कि निरंतर अभ्यास है। लेकिन याद रखो, हर दिन एक नया अवसर है अपने मन को शुद्ध करने का, अपने नेतृत्व को सच्चाई और सेवा से जोड़ने का। तुम अकेले नहीं हो, कृष्ण तुम्हारे साथ हैं। अपने आप पर विश्वास रखो और नम्रता का दीप जलाए रखो।
शुभकामनाएँ! 🌼🙏

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