Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

कृष्ण बिना आसक्ति के कर्म करने के बारे में क्या सिखाते हैं?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • कृष्ण बिना आसक्ति के कर्म करने के बारे में क्या सिखाते हैं?

कर्म में आसक्ति छोड़ो, सफलता अपने आप आएगी
साधक,
तुम्हारे मन में सफलता की चाह है, पर साथ में चिंता भी है कि कर्मों का फल कैसे मिलेगा? या फिर फल की चिंता से मन क्यों बेचैन रहता है? यह स्वाभाविक है। हम सब चाहते हैं कि हमारे प्रयास रंग लाएं, लेकिन कृष्ण हमें बताते हैं कि असली सफलता कर्म में आसक्ति न रखने में है। आइए, इस दिव्य ज्ञान को समझें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 47)
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
कृष्ण कहते हैं कि हमारा काम है कर्म करना, फल की चिंता छोड़ दो। फल की इच्छा या डर मन को भ्रमित करता है और कर्म में बाधा डालता है। कर्म में आसक्ति छोड़ने से मन शांत रहता है और कर्म अपने आप श्रेष्ठ होता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. कर्म करो, फल की चिंता छोड़ो: सफलता का बोझ मत उठाओ, अपने कर्म पर ध्यान दो।
  2. आसक्ति छोड़ो, मन को मुक्त करो: जब फल की इच्छा खत्म होगी, तो मन शांत और स्थिर होगा।
  3. संतुलित दृष्टिकोण अपनाओ: न तो आलस्य करो, न ही चिंता; कर्म में निरंतरता रखो।
  4. स्वयं को कर्म का साधन समझो: कर्म को ईश्वर को समर्पित कर दो, फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ो।
  5. अहंकार त्यागो: फल की इच्छा अहंकार की जड़ होती है, इसे छोड़ो तो कर्म पवित्र होता है।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो—"अगर मैं फल की चिंता न करूं तो क्या मैं सफल हो पाऊंगा?" यह भय सामान्य है। हम सब चाहते हैं कि मेहनत का फल हमें मिले, पर कृष्ण कहते हैं कि फल की चिंता हमें भ्रमित करती है। जब हम फल की चिंता छोड़ देते हैं, तब कर्म का बोझ हल्का होता है और हम अपने कार्य में पूरी लगन से डूब पाते हैं।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"साधक, जब तुम अपने कर्म को मेरा अर्पण कर दोगे, तब फल की चिंता तुम्हारे मन से दूर हो जाएगी। फल मेरा है, कर्म तुम्हारा। तुम बस कर्म करो, बिना आसक्ति के। यही तुम्हारा सच्चा धर्म है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक किसान हर दिन खेत में मेहनत करता था। वह फसल की चिंता करता रहता था—बारिश होगी या नहीं, फसल अच्छी होगी या नहीं। उसकी चिंता उसे थका देती थी। फिर एक दिन उसने सोचा, "मैं अपनी पूरी मेहनत करूँगा, पर फल की चिंता नहीं करूँगा।" उसने पूरी लगन से काम किया, बिना चिंता के। अंत में फसल अच्छी हुई। उसने जाना कि बिना आसक्ति के कर्म करने से कार्य में मन लगता है और फल भी अच्छा आता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी कार्य को पूरी लगन से करो, पर फल की चिंता छोड़ दो। मन में यह संकल्प लो: "मैं अपना कर्म करूंगा, फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ दूंगा।"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों से जुड़ी फल की चिंता को छोड़ सकता हूँ?
  • क्या मैं अपने कर्म को ईश्वर को समर्पित कर सकता हूँ?

सफलता का रहस्य: कर्म में आसक्ति छोड़ो, मन को मुक्त करो
साधक, याद रखो, सफलता का असली रहस्य कर्म में आसक्ति न रखना है। जब तुम फल की चिंता छोड़ दोगे, तब तुम्हारा मन स्थिर होगा, कर्म में मन लगेगा और सफलता अपने आप तुम्हारे कदम चूमेगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम अकेले नहीं हो।
शुभकामनाएँ! 🌸

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers