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गीता में संबंधों में लगाव के बारे में क्या कहा गया है?

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लगाव के बंधन से मुक्त होने का आह्वान: चलो समझें गीता का संदेश
प्रिय मित्र,
संबंधों में लगाव, प्रेम, और कभी-कभी उससे उत्पन्न पीड़ा, ये सब हमारे जीवन के गहरे अनुभव हैं। तुम अकेले नहीं हो जो इन भावनाओं में उलझे हो। भगवद गीता हमें इस जटिल मनोविज्ञान को समझने और उससे मुक्त होने का मार्ग दिखाती है, ताकि हम प्रेम में भी स्वतंत्र और शांत रह सकें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते॥
(भगवद् गीता 2.15)

अर्थ: हे पुरुषोत्तम! वह पुरुष जो सुख-दुख से विचलित नहीं होता, जो समदृढ़ है, वही अमरत्व को प्राप्त होता है।

सरल व्याख्या:
जब हम संबंधों में अत्यधिक लगाव रखते हैं, तो सुख-दुख की लहरें हमें हिला देती हैं। गीता कहती है कि जो व्यक्ति इन भावनाओं से ऊपर उठकर समभाव रखता है, वही सच्चा स्थिर और मुक्त व्यक्ति होता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. समत्व भाव अपनाओ: संबंधों में प्रेम हो, लेकिन उससे अपनी शांति न खोओ। सुख-दुख को समान दृष्टि से देखो।
  2. कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करो: प्रेम और संबंधों में अपने कर्तव्य को निभाओ, फल की चिंता छोड़ दो।
  3. आत्मा की पहचान करो: शरीर और संबंध नश्वर हैं, पर आत्मा अमर है। लगाव आत्मा के लिए बोझ है।
  4. अहंकार से मुक्त रहो: "मेरा", "मेरा नहीं" की भावना से ऊपर उठो, तभी सच्चा प्रेम संभव है।
  5. निर्विकल्प समर्पण करो: प्रेम में समर्पण हो, पर अपनी पहचान को न खोओ।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो — "अगर मैं लगाव छोड़ दूं तो क्या मेरा प्रेम कम हो जाएगा? क्या मैं अकेला नहीं रह जाऊंगा?" ये सवाल स्वाभाविक हैं। लेकिन गीता हमें समझाती है कि सच्चा प्रेम स्वतंत्रता देता है, बंधन नहीं। जब हम संबंधों को अपनी खुशी का आधार बनाते हैं, तब ही पीड़ा होती है।
यह ठीक वैसा है जैसे हम समुद्र की लहरों को रोकने की कोशिश करें — असंभव है। पर लहरों को देखकर भी हम शांत रह सकते हैं।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"साधक, जब तुम अपने मन को समझदारी और धैर्य से नियंत्रित करोगे, तब ही तुम प्रेम में भी स्थिर रह पाओगे। संबंधों को अपने अस्तित्व का आधार मत बनाओ, बल्कि उन्हें एक सुंदर उपहार समझो। जो तुम्हारे साथ हैं, उनका सम्मान करो, पर स्वयं को उनके बिना अधूरा मत समझो। यही सच्चा प्रेम है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक विद्यार्थी अपने गुरु से बोला, "गुरुजी, मैं अपने मित्र से इतना जुड़ा हुआ हूँ कि उसका दूर होना मुझे टूटने जैसा लगता है। मैं क्या करूँ?" गुरु ने कहा, "कल्पना करो कि तुम एक विशाल वृक्ष हो। तुम्हारे शाखाएं मित्र हैं। अगर एक शाखा टूट भी जाए, तो क्या तुम पूरी तरह खत्म हो जाओगे? नहीं, तुम जीवित रहोगे, नए पत्ते उगाओगे। उसी तरह, संबंधों में लगाव इतना गहरा न करो कि वे तुम्हारे अस्तित्व को परिभाषित करें।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी करीबी व्यक्ति के प्रति अपने मन में जो भी अत्यधिक अपेक्षाएँ या लगाव हैं, उन्हें पहचानो। फिर अपने मन को कहो, "मैं तुम्हें सम्मान देता हूँ, पर मेरी खुशी मेरी अपनी शांति में है।"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने संबंधों में संतुलन बनाए रख पा रहा हूँ?
  • क्या मेरा प्रेम मुझे स्वतंत्रता देता है या बंधन?

प्रेम और स्वतंत्रता का संगम: तुम्हारा नया सफर
प्रिय मित्र, याद रखो, गीता का संदेश यही है कि संबंधों में प्रेम हो, पर लगाव का जाल हमें न फंसे। जब तुम अपने भीतर की शांति को पहचानोगे, तभी तुम सच्चे प्रेम को अनुभव कर पाओगे। तुम अकेले नहीं हो, यह यात्रा हम सबकी है। चलो, इस रास्ते पर एक कदम और बढ़ाएं।
शुभकामनाएँ! 🌸

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