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पूरी तरह से समर्पण कैसे करें बिना नियंत्रण खोने के डर के?

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  • पूरी तरह से समर्पण कैसे करें बिना नियंत्रण खोने के डर के?

समर्पण की राह: नियंत्रण का भय छोड़, विश्वास की ओर बढ़ना
साधक,
तुम्हारे मन में जो यह सवाल है — "कैसे पूरी तरह समर्पण करूँ बिना नियंत्रण खोने के डर के?" — यह मानव मन की गहरी उलझन है। समर्पण का अर्थ यह नहीं कि तुम अपनी चेतना या विवेक खो दो, बल्कि यह एक ऐसा अनुभव है जिसमें तुम अपने भीतर की शक्ति और परमात्मा की शक्ति के बीच सुमधुर तालमेल बिठाते हो। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो; हर भक्त इसी द्वंद्व से गुजरता है। आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 18, श्लोक 66
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

हिंदी अनुवाद:
सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, इसलिए चिंता मत करो।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक समर्पण का परम संदेश है। कृष्ण कहते हैं कि जब तुम पूरी तरह से उनकी शरण में आ जाते हो, तो वे तुम्हारे सारे भय, पाप और संदेह दूर कर देते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हें सब कुछ छोड़ देना है, बल्कि तुम्हें अपने अहंकार और नियंत्रण की इच्छा को छोड़कर विश्वास के साथ आगे बढ़ना है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. समर्पण का अर्थ समझो: यह नियंत्रण खोना नहीं, बल्कि अपने अहं को छोड़कर सच्चे नियंत्रण (ईश्वर के हाथ में) को स्वीकारना है।
  2. विश्वास की नींव मजबूत करो: जब तुम कृष्ण पर पूर्ण विश्वास करते हो, तो डर अपने आप कम हो जाता है।
  3. स्वयं को जानो: तुम्हारा 'स्वयं' और तुम्हारा 'ईश्वर' अलग नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।
  4. धैर्य और निरंतर अभ्यास: समर्पण एक दिन में नहीं आता, यह अभ्यास और अनुभव से आता है।
  5. स्वयं के निर्णयों का सम्मान: समर्पण का मतलब यह नहीं कि तुम निष्क्रिय हो जाओ, बल्कि अपने कर्म करते हुए फल की चिंता छोड़ दो।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा, "अगर मैं नियंत्रण खो दूं तो क्या होगा? क्या मैं कमजोर पड़ जाऊंगा? क्या मेरी ज़िंदगी बिखर जाएगी?" यह स्वाभाविक है। नियंत्रण का भय हमारे अस्तित्व की रक्षा का हिस्सा है। लेकिन याद रखो, असली सुरक्षा तब मिलती है जब हम उस शक्ति के हाथों में खुद को सौंप देते हैं जो सब कुछ जानती और संभालती है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, मैं तुम्हारे हर भय को समझता हूँ। तुम मुझ पर विश्वास करो। मैं तुम्हारे जीवन के हर पहलू में तुम्हारा मार्गदर्शन करता हूँ। जब तुम मुझमें पूरी तरह डूब जाओगे, तभी तुम्हें असली स्वतंत्रता और शांति मिलेगी। नियंत्रण छोड़ना नहीं, बल्कि सच्चे नियंत्रण को स्वीकारना ही समर्पण है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक विद्यार्थी अपने गुरु के पास आया और बोला, "गुरुजी, मैं पूरी तरह समर्पण करना चाहता हूँ, लेकिन डर लगता है कि कहीं मैं गिर न जाऊं।" गुरु ने कहा, "क्या तुम तैरना जानते हो?" विद्यार्थी ने कहा, "हाँ।" गुरु ने उसे पानी में धकेला और कहा, "अब तैरो।" विद्यार्थी ने तैरना शुरू किया। गुरु ने कहा, "समर्पण भी ऐसा ही है। जब तुम पानी में डूबते हो, तो डर लगता है, लेकिन जब तुम विश्वास कर लेते हो कि पानी तुम्हें संभालेगा, तब तुम तैर सकते हो।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन के उन भय और संदेहों को लिखो जो तुम्हें समर्पण से रोकते हैं। फिर उन्हें एक-एक कर कृष्ण के सामने समर्पित करो। यह अभ्यास तुम्हारे विश्वास को मजबूत करेगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं समझ पा रहा हूँ कि समर्पण का मतलब नियंत्रण खोना नहीं, बल्कि उसे एक उच्च शक्ति को सौंपना है?
  • मुझे आज अपने भीतर किस भय को छोड़ना है ताकि मैं विश्वास के साथ आगे बढ़ सकूं?

समर्पण की शांति: विश्वास के साथ आगे बढ़ो
साधक, तुम्हारा डर और चिंता स्वाभाविक है, पर याद रखो कि समर्पण तुम्हें कमजोर नहीं बनाता, बल्कि तुम्हें सच्ची शक्ति और शांति देता है। कृष्ण के चरणों में अपना मन लगाओ, और देखो कैसे तुम्हारा जीवन एक नई दिशा और उज्ज्वलता से भर जाता है। तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शुभकामनाएँ और प्रेम के साथ। 🌸🙏

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