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क्या भय लगाव से उत्पन्न होता है?

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  • क्या भय लगाव से उत्पन्न होता है?

भय के सागर में: तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब मन में भय का साया छा जाता है, तो ऐसा लगता है जैसे जीवन की राहें धुंधली हो गई हों। भय एक स्वाभाविक अनुभव है, पर क्या यह लगाव से उत्पन्न होता है? आइए, गीता के दिव्य प्रकाश में इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥"

— भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 47

हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा से कर्म मत करो, और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि जब हम कर्म को उसके फल से जोड़कर देखते हैं, तब लगाव उत्पन्न होता है। यही लगाव भय को जन्म देता है क्योंकि फल की अनिश्चितता हमारे मन को बेचैन करती है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. लगाव ही भय का मूल है: जब हम किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति से अत्यधिक जुड़ाव रखते हैं, तो उसका खोने का भय भी उत्पन्न होता है।
  2. फल की चिंता छोड़ो: कर्म करते रहो, पर फल की चिंता न करो। फल की आशंका भय को दूर करती है।
  3. स्वयं को कर्ता न समझो: कर्म करो, पर यह समझो कि परिणाम परमात्मा के हाथ में है।
  4. अहंकार का त्याग: 'मैं' और 'मेरा' की भावना से लगाव बढ़ता है, जो भय को जन्म देता है।
  5. समत्व भाव अपनाओ: सुख-दुख में समान दृष्टि रखो, इससे मन स्थिर और भयमुक्त रहता है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा, "अगर मैं उससे जुड़ा हूँ, तो कहीं वह खो न जाए।" या "अगर परिणाम मेरे अनुकूल न हुआ, तो मैं कैसे संभालूंगा?" यह स्वाभाविक है। भय तुम्हारे प्रेम और सुरक्षा की चाह से उपजा है। इसे समझो, स्वीकार करो, और धीरे-धीरे लगाव की जंजीरों को खोलो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, भय का कारण तुम्हारे मन की अनिश्चितताओं में फंसा हुआ लगाव है। जब तुम फल की चिंता छोड़ दोगे, तब तुम्हारा मन निर्भय और मुक्त होगा। याद रखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर। अपने कर्म करो, फल की चिंता मुझ पर छोड़ दो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो, एक छात्र परीक्षा की तैयारी कर रहा है। वह अपने अच्छे अंक पाने से इतना जुड़ा हुआ है कि हर पल चिंता में डूबा रहता है। उसकी चिंता उसके मन को भय से भर देती है। लेकिन जब गुरु ने उसे समझाया कि मेहनत करो, पर परिणाम को स्वीकार करो, तो वह भय से मुक्त हो गया और अपने कार्य में लगन से जुट गया। इसी प्रकार, जीवन में लगाव से भय उत्पन्न होता है, और जब हम फल की चिंता छोड़ देते हैं, तो भय समाप्त हो जाता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी ऐसे लगाव को पहचानो जो तुम्हारे मन में भय उत्पन्न करता है। उसे स्वीकारो और अपने कर्म को केवल कर्म के लिए करो, फल की चिंता छोड़ दो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्म को फल से जोड़कर अपने मन को भय में डाल रहा हूँ?
  • मैं किस लगाव को छोड़कर अपने मन को शांत कर सकता हूँ?

भय से मुक्ति की ओर: चलो एक साथ आगे बढ़ें
साधक, भय तुम्हारा शत्रु नहीं, बल्कि तुम्हारे मन की अस्वस्थता का संकेत है। इसे समझो, इसे स्वीकारो और गीता के ज्ञान से अपने मन को स्थिर करो। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो इस भय के सागर को पार कर, शांति के किनारे पहुंचें।
शुभकामनाएँ।
ॐ तत् सत्।

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