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भक्ति को स्थिर और अडिग क्या बनाता है?

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भक्ति की गहराई: स्थिर और अडिग प्रेम की ओर
साधक,
जब मन भक्ति के मार्ग पर चलता है, तब अनेक बार वह डगमगाता है। उत्साह कभी बढ़ता है, कभी कम होता है। यह स्वाभाविक है। परंतु क्या वह भक्ति है जो तूफानों में भी डगमगाए नहीं? क्या वह प्रेम है जो हर परिस्थिति में अडिग रहे? आइए, हम भगवद् गीता के अमृत शब्दों से इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

"मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः॥"

(भगवद् गीता, अध्याय 12, श्लोक 8)

हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! मन को केवल मुझमें लगाओ और बुद्धि को मुझमें स्थापित करो। तब निश्चय ही तुम मुझमें निवास करोगे और इसके ऊपर कोई संशय नहीं।
सरल व्याख्या:
जब मन और बुद्धि पूरी तरह प्रभु में स्थिर हो जाते हैं, तभी भक्ति अडिग और स्थिर होती है। यह भक्ति केवल बाहरी क्रियाकलाप नहीं, अपितु मन और बुद्धि का पूर्ण समर्पण है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • मन का एकाग्र होना: भक्ति तब स्थिर होती है जब मन बार-बार कृष्ण की ओर लौटता रहे, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
  • बुद्धि का स्थिर होना: केवल भाव से नहीं, बुद्धि से भी कृष्ण की महत्ता को समझना आवश्यक है।
  • संकल्प की दृढ़ता: मन के भ्रम और संशय को त्यागकर, कृष्ण के प्रति अटूट विश्वास रखना।
  • अहंकार का त्याग: जब अहंकार कम होता है, तब भक्ति स्वाभाविक रूप से गहरी होती है।
  • सतत स्मरण: कृष्ण का निरंतर स्मरण भक्ति को जीवित और प्रबल बनाता है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा — "कभी मैं कृष्ण के प्रति इतना भावुक होता हूँ, तो कभी सब कुछ सामान्य सा लगता है। क्या यही भक्ति है?" यह जंगली नदी की तरह है, जो कई बार शांत होती है, कई बार उफनाती है। लेकिन नदी का स्रोत स्थिर है, उसी प्रकार तुम्हारा प्रेम भी स्थिर हो सकता है, बस उसे स्रोत से जोड़ना होगा।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, जब तेरा मन मुझमें स्थिर होगा, तब तू मुझसे कभी दूर नहीं होगा। तू जो भी देखेगा, सुनेंगे, अनुभव करेगा — सब में मैं ही तेरा साथी हूँ। संदेह को त्याग, और मुझमें समर्पित हो जा। मैं तेरा आधार हूँ, तेरा मित्र हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक विद्यार्थी था जो गुरु के प्रति बहुत श्रद्धा रखता था। परंतु परीक्षा के समय उसके मन में भय और संशय आने लगे। गुरु ने उसे कहा, "जब तुम मुझसे जुड़ा रहोगे, तो डर और संशय दूर हो जाएंगे।" उसी तरह, भक्ति भी तब स्थिर होती है जब हम अपने परम गुरु, कृष्ण, से जुड़ते हैं, न कि केवल बाहरी कर्मों में उलझे रहते हैं।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन को पाँच मिनट के लिए शांत करो। उस समय केवल कृष्ण के नाम का जप करो या उनके रूप की कल्पना करो। देखो, क्या तुम्हारा मन स्थिर होता है? इसे अभ्यास बनाओ।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरा मन आज कृष्ण के प्रति पूरी तरह लगा है?
  • मैं किन-किन बातों में संशय करता हूँ, और उन्हें कैसे त्याग सकता हूँ?

🌼 स्थिर भक्ति की ओर पहला कदम
प्रिय, भक्ति का मार्ग एक यात्रा है, जिसमें मन और बुद्धि को कृष्ण में स्थिर करना सबसे बड़ा उपहार है। तुम अकेले नहीं हो, हर भक्त इसी यात्रा में है। चलो, इस प्रेम की गहराई में डूबें और अडिग बनें।
श्रीकृष्ण की कृपा सदैव तुम्हारे साथ रहे।
हरदम प्रेम और शांति के साथ।

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