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मैं अपनी भावनाओं को कृष्ण को कैसे समर्पित कर सकता हूँ?

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भावनाओं को कृष्ण के चरणों में समर्पित करना — एक आत्मीय संवाद
साधक,
जब मन की गहराइयों से भावनाएँ उमड़ती हैं, तो उन्हें कृष्ण के चरणों में समर्पित करना एक अनमोल अनुभव है। यह समर्पण केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि एक हृदय की भाषा है, जो हमें स्वयं से और ईश्वर से जोड़ती है। तुम अकेले नहीं हो; हर भक्त इसी मार्ग पर चलता है, जहां भावनाएँ कभी उथल-पुथल मचाती हैं तो कभी शांति की लहरें लाती हैं। आइए, इस यात्रा को गीता के प्रकाश में समझें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते || 2.48 ||

अर्थ: हे अर्जुन! योगी वह है जो कर्म करता है, परंतु अपने कर्मों में आसक्ति (संग) को त्याग देता है। सफलता या असफलता में समान भाव रखता है — यही योग कहलाता है।
सरल व्याख्या:
जब तुम अपनी भावनाओं को कृष्ण को समर्पित करते हो, तो इसका अर्थ है कि तुम अपने मन की हर हलचल में कृष्ण को अपने साथी बनाते हो। न तो खुशी में अधिक लिप्त होना और न ही दुख में डूबना, बल्कि हर स्थिति में कृष्ण की इच्छा और प्रेम को स्वीकार करना।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. भावनाओं को स्वीकारो, पर उनमें फंसे नहीं। कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को कर्म करना चाहिए, पर फल की चिंता त्यागनी चाहिए।
  2. समर्पण का अर्थ है पूर्ण विश्वास। अपनी भावनाओं को कृष्ण के हाथों में सौंपो, जैसे एक बच्चा अपने माता-पिता के भरोसे रहता है।
  3. सतत ध्यान और भक्ति से मन को स्थिर करो। भावनाओं की उठापटक के बीच भी कृष्ण की स्मृति को बनाए रखो।
  4. कृष्ण को अपने अनुभवों का साक्षी बनाओ। जब तुम दुखी हो, खुश हो, या उलझन में, तब भी कृष्ण को याद करो — वे तुम्हारे हर भाव के साथी हैं।
  5. कर्म योग का अभ्यास करो। अपने भावनात्मक कर्मों को कृष्ण के लिए अर्पित कर, उन्हें पवित्र बनाओ।

🌊 मन की हलचल

"मेरे मन में इतनी उलझन है, कभी खुशी तो कभी बेचैनी। मैं कैसे जानूं कि मैं सही दिशा में जा रहा हूँ? क्या मेरी भावनाएँ कृष्ण तक पहुँचती हैं? क्या वे मेरी कमजोरियों को समझेंगे?"
ऐसे सवाल तुम्हारे मन में उठना स्वाभाविक है। याद रखो, कृष्ण को तुम्हारी भावनाओं की गहराई से फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी व्यवस्थित हैं, बल्कि वे तुम्हारे दिल की सच्चाई और समर्पण को देखते हैं।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"प्रिय भक्त, जब तेरा मन तूफानों की तरह उथल-पुथल करे, तो मुझमें आस्था रख। मैं तेरे हर आंसू, तेरी हर मुस्कान का साक्षी हूँ। अपनी भावनाओं को मुझसे छुपा मत, उन्हें मेरे सामने खोल दे। मैं तेरे भीतर की शांति हूँ — बस मुझे याद कर।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नदी का पानी बहे चला जा रहा था। वह कभी शांति से बहती, तो कभी तेज़ी से उफान मचाती। नदी के किनारे बैठा एक बच्चा अपने हाथ में एक प्याला लेकर नदी का पानी उसमें भरने लगा। पानी चाहे कितना भी उफान मचाए, बच्चा धैर्य से प्याले में पानी भरता रहा। कुछ समय बाद उसने देखा कि प्याला भरा हुआ है, और नदी का पानी भी अपनी चाल में है।
हमारे मन की भावनाएँ भी ऐसी ही हैं — कभी उथल-पुथल, कभी शांति। जब तुम धैर्य से उन्हें कृष्ण के समर्पण के प्याले में भरते रहोगे, तो वे स्थिर हो जाएंगी।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी एक भाव को चुनो — चाहे वह खुशी हो, चिंता हो या प्रेम। उसे एकांत में बैठकर कृष्ण को समर्पित करो। मन ही मन कहो, "हे कृष्ण, यह भाव मैं तुम्हें अर्पित करता हूँ। इसे अपने प्रेम और दया से स्वीकार करो।"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपनी भावनाओं को बिना डर के कृष्ण के समर्पित कर सकता हूँ?
  • क्या मैं यह विश्वास कर सकता हूँ कि कृष्ण मेरी हर भावना में मेरे साथ हैं?

प्रेम और समर्पण की ओर एक कदम
प्रिय, तुम्हारे मन की भावनाएँ कृष्ण की मूरत हैं। उन्हें स्वीकारो, उन्हें प्रेम करो, और उन्हें अपने प्रभु के चरणों में समर्पित कर दो। यही सबसे सुंदर भक्ति है। याद रखो, कृष्ण हमेशा तुम्हारे साथ हैं — हर सांस, हर भावना में। तुम्हारा यह समर्पण तुम्हें अंतर्मुखी शांति और अपार प्रेम की ओर ले जाएगा।
शुभ हो तुम्हारी यात्रा!
हर कदम पर कृष्ण की छाया बनी रहे।

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