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क्या भय मन द्वारा बनाया जाता है?

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  • क्या भय मन द्वारा बनाया जाता है?

भय के सागर में अकेले नहीं हो तुम
प्रिय शिष्य, जब भय का साया मन पर छा जाता है, तो ऐसा लगता है जैसे हम एक अंधकारमय गुफा में फंस गए हों। पर यह जान लो कि भय मन की ही एक रचना है, एक कल्पना है जो हमें सीमित करती है। तुम्हारे भीतर वह शक्ति है जो इस भय को दूर कर सकती है। चलो, भगवद गीता की दिव्य दृष्टि से इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 62-63
ध्यानयोग से भय पर विजय का मार्ग
संस्कृत:
ध्यानात्मिका मन्तरा: सङ्गाश्चेत्सञ्जायतेऽभिजातस्य।
सङ्गात्सञ्जायते कामास्सुकृतदुःखसंज्ञकाः॥६२॥
कामसङ्गिनं मनः कृत्स्नदाहयुक्तमावृतम्।
तत्र तत्त्वदर्शिनो बुद्धिर्योगमित्युपपद्यते॥६३॥
हिंदी अनुवाद:
जब मन किसी वस्तु से जुड़ जाता है, तब उसमें कामनाएँ उत्पन्न होती हैं, जो सुख-दुख का कारण बनती हैं। जो कामनाओं में लिप्त मन है, वह पूरी तरह से अग्नि की तरह जलता है और अज्ञान से घिरा होता है। परन्तु जो तत्त्वदर्शी होते हैं, वे ऐसे मन को योग के द्वारा नियंत्रित कर लेते हैं।
सरल व्याख्या:
भय की जड़ मन की इच्छाएँ और आसक्तियाँ हैं। जब हम किसी चीज़ से अत्यधिक जुड़ाव बना लेते हैं, तो मन में भय, चिंता और तनाव उत्पन्न होते हैं। पर जो व्यक्ति अपने मन को समझदारी और योग के माध्यम से नियंत्रित करता है, वह भय से ऊपर उठ जाता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. मन ही मनुष्य का निर्माता और नाशक है — भय मन में उत्पन्न होता है, इसलिए मन को समझना और नियंत्रित करना आवश्यक है।
  2. योग और ध्यान से मन को स्थिर करो — मन की हलचल कम करने से भय अपने आप कम होता है।
  3. वास्तविकता को समझो, कल्पनाओं से बाहर आओ — भय अक्सर भविष्य की अनिश्चितताओं का परिणाम है, जो अभी अस्तित्व में नहीं हैं।
  4. स्वयं के भीतर छिपे साहस को पहचानो — भय को मिटाने के लिए अपने अंदर छुपी शक्ति को जागृत करो।
  5. अहंकार और अस्थिरता से मुक्त रहो — जब हम अपने असली स्वरूप को समझते हैं, तो भय का स्थान नहीं रहता।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा, "क्या मैं इस भय से कभी मुक्त हो पाऊंगा? यह डर इतना गहरा क्यों है?" यह स्वाभाविक है। भय हमें असुरक्षित बनाता है, लेकिन याद रखो, यह केवल एक भावना है, एक विचार है जो तुम्हारे मन में जन्मा है। इसे चुनौती दो, इसे समझो, और धीरे-धीरे उसे अपने अस्तित्व से बाहर निकालो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, भय तुम्हारे मन की माया है। जैसे अंधकार सूरज की किरणों से भागता है, वैसे ही भय भी ज्ञान और विश्वास की ज्योति से मिट जाता है। अपने मन को मेरे चरणों में समर्पित करो, और देखो कैसे तुम्हारा भय धुंधलाता है और शांति का प्रकाश फैलता है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र परीक्षा के डर से बहुत चिंतित था। वह सोचता था कि अगर वह असफल हो गया तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। लेकिन उसके गुरु ने कहा, "डर को अपने मन का मेहमान समझो, उसे अपने भीतर रहने दो, लेकिन उसे अपने घर का मालिक मत बनने दो।" धीरे-धीरे छात्र ने डर को समझना शुरू किया, और पाया कि वह केवल उसकी कल्पना थी, जिसे उसने बढ़ा-चढ़ा कर देखा था। जब उसने मन को शांत किया, तो डर अपने आप कम हो गया।

✨ आज का एक कदम

आज अपने भय को एक कागज पर लिखो। फिर उसे पढ़कर सोचो — क्या यह भय वास्तविक है या सिर्फ मेरी कल्पना? इस अभ्यास से तुम्हें अपने भय को समझने और उससे दूरी बनाने में मदद मिलेगी।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरा भय वर्तमान में है, या भविष्य की चिंता है?
  • मैं अपने मन को कैसे शांत कर सकता हूँ, ताकि भय कम हो?

🌼 भय की परतें खोलो, शांति की ओर बढ़ो
याद रखो, भय तुम्हारा शत्रु नहीं, बल्कि तुम्हारे मन की एक परत है जिसे समझने और पार करने की आवश्यकता है। तुम अकेले नहीं हो, हर मनुष्य ने इस भय को महसूस किया है। अपने भीतर की शक्ति को पहचानो, और धीरे-धीरे भय की परतों को हटाओ। शांति तुम्हारे भीतर है, बस एक कदम आगे बढ़ाने की देर है।
शुभ यात्रा, मेरे प्रिय।

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