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गीता का मन की आलस्यता पर क्या दृष्टिकोण है?

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आलस्य के अंधकार से निकलने का दीपक: गीता का संदेश
साधक, जब मन आलस्य की जंजीरों में बंध जाता है, तो जीवन की ऊर्जा थम सी जाती है। तुम अकेले नहीं हो; यह संघर्ष हर मनुष्य के साथ आता है। भगवद गीता हमें बताती है कि आलस्य को कैसे परास्त किया जाए और आत्मा की शक्ति को जागृत किया जाए। आइए, इस दिव्य ग्रंथ के प्रकाश में हम अपने मन के आलस्य को समझें और उसे दूर करें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय ६, श्लोक ६:
"यतात्मानं मनः प्राप्य नात्मानमवसादयेत्।
अव्यक्तादीनि भूतानि मनसः कौन्तेय तदात्मनि।"

हिंदी अनुवाद:
हे कौन्तेय! जिसने अपने मन को प्राप्त कर लिया, उसे कभी आत्मा से निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि मन से ही सभी अव्यक्त और प्राणी उत्पन्न होते हैं।
सरल व्याख्या:
इस श्लोक में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेता है, वह कभी भी निराश नहीं होता। मन ही वह स्रोत है जहाँ से सभी भावनाएँ और इच्छाएँ जन्म लेती हैं। इसलिए मन का स्वामी बनना अत्यंत आवश्यक है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. मन को नियंत्रित करना संभव है: आलस्य का कारण मन की अनियंत्रित प्रवृत्ति होती है, जिसे अभ्यास और संयम से सुधारा जा सकता है।
  2. कर्तव्य में लीन रहना: कर्मयोग का अभ्यास आलस्य को दूर करता है क्योंकि जब हम अपने कर्तव्य में लगे रहते हैं, तो मन व्यर्थ की सोचों से मुक्त रहता है।
  3. ध्यान और योग: नियमित ध्यान मन को स्थिर करता है और आलस्य के भाव को कम करता है।
  4. संकल्प शक्ति का विकास: मन में दृढ़ संकल्प उत्पन्न करना आलस्य को हराने की पहली सीढ़ी है।
  5. आत्मा का ज्ञान: जब हम समझते हैं कि हम केवल शरीर और मन नहीं, अपितु आत्मा हैं, तो हम अपने कर्मों के प्रति सजग और सक्रिय हो जाते हैं।

🌊 मन की हलचल

"मैं चाहता हूँ आगे बढ़ना, लेकिन मन बार-बार थकावट और आलस्य की बात करता है। क्या मैं कमजोर हूँ? क्या यह मेरी प्रकृति है? मैं कैसे इस जाल से बाहर निकलूँ?"
ऐसे विचार मन में आते हैं, लेकिन याद रखो, ये विचार तुम्हारे वास्तविक स्वरूप के नहीं, बल्कि क्षणिक कमजोरियों के दूत हैं। हर मनुष्य के भीतर शक्ति है, बस उसे जगाने की देर है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, आलस्य तुम्हारा शत्रु है, परन्तु मैं तुम्हारे भीतर वह शक्ति भी हूँ जो इसे परास्त कर सकती है। अपने मन को मेरी ओर करो, अपने कर्मों में लग जाओ। याद रखो, कर्म ही तुम्हारा धर्म है और कर्मयोग तुम्हें आलस्य से मुक्त करेगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ, बस तुम्हें कदम बढ़ाने हैं।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक विद्यार्थी था जो पढ़ाई में आलसी था। वह सोचता था, "कल से पढ़ाई शुरू करूंगा।" परन्तु कल कभी नहीं आता था। उसके गुरु ने उसे एक दीपक दिया और कहा, "इस दीपक को जलाए रखो।" विद्यार्थी ने दीपक जलाया और देखा कि जब दीपक बुझता, तो वह अंधेरे में खो जाता। धीरे-धीरे उसने समझा कि दीपक की लौ उसकी जागरूकता है। जैसे दीपक बुझता है, वैसे ही मन भी आलस्य में डूब जाता है। उसने अपनी लौ को कभी बुझने नहीं दिया और आलस्य को परास्त कर दिया।

✨ आज का एक कदम

आज कम से कम पाँच मिनट ध्यान लगाओ। अपनी सांसों को महसूस करो और मन को एकाग्र करने का प्रयास करो। आलस्य की जड़ को पहचानो और उसे धीरे-धीरे कम करते चलो।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन को आलस्य की ओर बहने देता हूँ या उसे नियंत्रित करने की कोशिश करता हूँ?
  • मेरे जीवन में कौन-सी छोटी-छोटी आदतें आलस्य को बढ़ावा देती हैं, और मैं उन्हें कैसे बदल सकता हूँ?

🌼 आलस्य से उठो, जीवन को अपना आशीर्वाद बनाओ
साधक, याद रखो कि आलस्य केवल एक क्षणिक आवरण है, जो तुम्हारी असली शक्ति को छिपाता है। भगवद गीता तुम्हें बुला रही है—उठो, जागो और अपने मन के स्वामी बनो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर। चलो, आज से ही इस आलस्य के अंधकार को दूर करें और प्रकाश की ओर बढ़ें।

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