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कृष्ण का मन की समत्वता का सूत्र क्या है?

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मन की समत्वता: कृष्ण का अमूल्य उपहार
प्रिय शिष्य,
जब मन की हलचल और भावनाओं का समुद्र उफान मारने लगता है, तब समत्वता का सूत्र हमारे लिए एक प्रकाशस्तंभ बन जाता है। यह समत्वता न केवल मन की स्थिरता देती है, बल्कि जीवन की हर परिस्थिति में स्थिर और शांत रहने की शक्ति भी प्रदान करती है। आइए, भगवान श्रीकृष्ण के उस अमर सूत्र को समझें जो मन को सम और स्थिर बनाता है।

🕉️ शाश्वत श्लोक: मन की समत्वता का सूत्र

भगवद् गीता, अध्याय 2, श्लोक 48
स्थिरः सुखं दुःखं तथा समः सङ्गविवर्जितः।
भर्ता भावार्थेऽर्थी च ततः कुरु कर्म स्वयम्॥

हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति सुख-दुःख में, लाभ-हानि में, और सम्मान-अवमान में सम भाव रखता है, जो सभी भोगों के प्रति आसक्ति से मुक्त है, वही अपने कर्तव्य का पालन करता है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि मन को सुख-दुख और अन्य द्वैतों से ऊपर उठाकर सम भाव रखना ही समत्वता है। जब मन स्थिर होता है, तो वह किसी भी परिस्थिति में डगमगाता नहीं। ऐसे मन वाला व्यक्ति अपने कर्मों में लगा रहता है, बिना फल की चिंता किए।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. समभाव का अभ्यास: सुख-दुख, सफलता-असफलता, प्रशंसा-आलोचना में समान भाव रखें। यह मन को स्थिर करता है।
  2. असक्त भाव: फल की इच्छा और आसक्ति को त्यागें, कर्म को कर्म के लिए करें।
  3. स्वधर्म का पालन: अपने कर्तव्य और धर्म में लगे रहें, बिना विचलित हुए।
  4. मन का संकल्प: मन को नियंत्रित कर, उसे विषयों से विचलित न होने दें।
  5. अहंकार त्याग: अपने अहंकार और स्वार्थ से ऊपर उठें, तभी मन की शांति संभव है।

🌊 मन की हलचल: तुम्हारे मन की आवाज़

"कभी-कभी लगता है कि मन मेरी बात नहीं सुनता, सुख-दुख की लहरें मुझे बहा ले जाती हैं। मैं शांत कैसे रहूं? क्या सच में मैं समभाव रख सकता हूँ? यह इतना कठिन क्यों है?"
प्रिय, यह तुम्हारा मन की आवाज़ है, जो परिवर्तन की चाह रखता है। यह स्वीकारो कि मन की समत्वता एक अभ्यास है, एक यात्रा है, जो धैर्य और निरंतरता मांगती है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, मन को स्थिर करो, जैसे नदी का जल शांत रहता है, तब उसमें चंद्रमा का प्रतिबिंब साफ दिखाई देता है। जब मन शांत होगा, तभी तुम सत्य को देख पाओगे। समत्वता ही तुम्हारे भीतर की असली शक्ति है। उसे अपनाओ, और जीवन की हर चुनौती को मुस्कुराते हुए स्वीकार करो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी: दो बागवानों की सीख

एक बार दो बागवान थे। एक बागवान हर मौसम में अपने पौधों की हालत देखकर परेशान होता, सुख-दुख में उलझ जाता। दूसरा बागवान हर स्थिति में अपने पौधों की देखभाल करता रहा, बिना फल की चिंता किए। समय के साथ, दूसरा बागवान का बाग सुंदर और फलदार हुआ, जबकि पहला निराश और थका हुआ रह गया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि मन की समत्वता से ही हम अपने कर्मों में सफलता और शांति पा सकते हैं।

✨ आज का एक कदम

आज के दिन, जब भी कोई सुखद या दुखद घटना हो, एक गहरी सांस लें और मन को याद दिलाएं: "मैं सुख-दुख में सम हूँ। मेरा कर्म मेरा धर्म है।" इस छोटे अभ्यास को दोहराएं।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं सुख-दुख की स्थिति में अपने मन को स्थिर रख पाता हूँ?
  • मेरे लिए समत्वता का अर्थ क्या है?
  • मैं अपने कर्मों को बिना आसक्ति के कैसे कर सकता हूँ?

🌼 समत्व की ओर पहला कदम: शांति तुम्हारे भीतर है
प्रिय शिष्य, याद रखो, समत्वता कोई जादू नहीं, बल्कि अभ्यास और समझ का फल है। कृष्ण का यह सूत्र तुम्हारे लिए एक अमूल्य खजाना है, जो हर परिस्थिति में तुम्हें स्थिर और शांत बनाए रखेगा। तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ इस यात्रा में। चलो, समत्व की ओर एक कदम और बढ़ाएं।
शुभकामनाएँ और आशीर्वाद।
— तुम्हारा गुरु

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