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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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स्थिर मन के लिए गीता कौन-कौन से अभ्यास सुझाती है?

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मन की गहराई में स्थिरता की ओर पहला कदम
साधक,
जब मन विचलित होता है, तो जीवन की राह धुंधली लगती है। तुम्हारा यह सवाल — स्थिर मन के लिए गीता क्या अभ्यास सुझाती है? — यह बताता है कि तुम अपने भीतर की उथल-पुथल को समझना चाहते हो, उसे शांत करना चाहते हो। जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर महान योगी ने भी इसी प्रश्न का सामना किया है। आइए, गीता के अमृत शब्दों से हम उस स्थिरता के द्वार खोलें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 6, श्लोक 25
"यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरं भयाद् वाऽपि तदात्मानं ततः प्रयाति नित्ययम्।"
हिंदी अनुवाद:
जहाँ-जहाँ मन विचलित और अस्थिर होता है, भय या अन्य कारणों से, वहाँ-तहाँ आत्मा को उसी ओर ले जाना चाहिए, जो स्थिरता की ओर ले जाए।
सरल व्याख्या:
जब भी तुम्हारा मन भटकता है, उसे फिर से अपने लक्ष्य की ओर धीरे-धीरे और निरंतर ले आओ। यह अभ्यास तुम्हारे मन को स्थिरता की ओर ले जाएगा।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. ध्यान और समाधि का अभ्यास:
    गीता बताती है कि मन को स्थिर करने का सर्वोत्तम उपाय है नियमित ध्यान। ध्यान से मन की चंचलता कम होती है और मन एकाग्र होता है।
  2. स्वयं पर संयम और आत्मनियंत्रण:
    मन को स्थिर रखने के लिए इच्छाओं और क्रोध पर नियंत्रण आवश्यक है। संयम से मन की लहरें शांत होती हैं।
  3. कर्म योग का पालन:
    बिना फल की चिंता किए कर्म करते रहना मन को स्थिर करता है, क्योंकि मन फल की चिंता से विचलित होता है।
  4. सत्य और धर्म का अनुसरण:
    सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने से मन को आंतरिक शांति मिलती है।
  5. सतत अभ्यास और धैर्य:
    मन की स्थिरता एक दिन में नहीं आती, इसे निरंतर अभ्यास और धैर्य से प्राप्त किया जाता है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा — "मैं क्यों स्थिर नहीं रह पाता? इतना प्रयास करने के बाद भी मन क्यों भटकता है?" यह बिल्कुल स्वाभाविक है। मन तो नदियों की तरह बहता है, उसे रोकना नहीं, सही दिशा देना है। घबराओ मत, हर बार जब मन भटके, उसे प्यार से वापस लाओ। यह तुम्हारा अभ्यास है, तुम्हारा प्रेम।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, मन की चंचलता को देखकर घबराओ मत। जैसे समुद्र की लहरें आती-जाती हैं, वैसे ही तुम्हारा मन भी चलता रहता है। मैं तुम्हें यही कहता हूँ — 'निरंतर अभ्यास करो, धैर्य रखो, और मन को प्रेम से संभालो।' मन को स्थिरता की ओर ले जाना तुम्हारा कर्म है, फल की चिंता मत करो। मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नदी के किनारे एक बच्चे ने पत्थर फेंका। पत्थर पानी में गिरते ही कई लहरें बनाईं, जो दूर तक फैल गईं। बच्चे ने सोचा, "मैं इन्हें रोक नहीं सकता।" फिर उसने देखा कि नदी का पानी फिर भी अपने रास्ते पर बहता रहा, शांत और स्थिर। यही मन की प्रकृति है। लहरें आएंगी, लेकिन तुम्हारा अभ्यास मन को उस स्थिर धारा की ओर वापस ले जाएगा।

✨ आज का एक कदम

आज के दिन, ५ मिनट के लिए शांत बैठो। अपनी सांसों पर ध्यान दो। जब मन भटकता है, उसे प्यार से वापस अपनी सांसों की ओर ले आओ। यह सरल अभ्यास तुम्हारे मन को स्थिर करने की पहली सीढ़ी है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन की चंचलता को प्रेम और धैर्य से देख पा रहा हूँ?
  • आज मैंने मन को स्थिर करने के लिए क्या किया?

मन की स्थिरता की ओर — एक निरंतर यात्रा
तुम्हारे भीतर वह शक्ति है जो मन को स्थिर कर सकती है। गीता का यह संदेश याद रखो — अभ्यास, संयम और प्रेम से तुम अपने मन को उस शांति तक ले जा सकते हो, जहाँ से जीवन की हर चुनौती सरल लगने लगेगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर।
शुभकामनाएँ! 🌸

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