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गीता में मन को मित्र और शत्रु दोनों क्यों कहा गया है?

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गीता में मन को मित्र और शत्रु दोनों क्यों कहा गया है?

मन: आपका सबसे बड़ा मित्र या सबसे बड़ा शत्रु?
साधक,
मन की इस जटिल दुनिया में तुम अकेले नहीं हो। हर कोई अपने मन के द्वंद्व से गुजरता है—कभी वह हमारा सबसे प्यारा साथी बनता है, तो कभी सबसे बड़ा विरोधी। यह उलझन स्वाभाविक है। आइए, भगवद गीता की ज्योति से इस रहस्य को समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 6, श्लोक 5:
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

हिंदी अनुवाद:
अपने मन और आत्मा को उठाओ, उसे नीचे मत गिराओ। क्योंकि आत्मा ही अपने लिए मित्र है और आत्मा ही अपने लिए शत्रु भी है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि हमारा मन (आत्मा) ही हमारा सबसे बड़ा सहायक हो सकता है, और वही हमारा सबसे बड़ा विरोधी भी। जो मन को समझता और नियंत्रित करता है, वह अपने जीवन का सच्चा मित्र होता है। जो मन को अनियंत्रित छोड़ देता है, वह अपने ही दुश्मन के समान है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • मन की शक्ति पहचानो: मन की शक्ति इतनी है कि वह तुम्हें ऊँचाइयों पर ले जा सकता है या नीचे गिरा सकता है। इसे समझना पहला कदम है।
  • स्व-अनुशासन की आवश्यकता: मन को नियंत्रित करना कठिन है, पर अनुशासन से यह संभव है। नियमित अभ्यास से मन मित्र बन जाता है।
  • स्वयं की जिम्मेदारी स्वीकारो: मन तुम्हारा है, तुम्हें ही इसे संभालना है। दूसरों पर दोष न डालो।
  • ध्यान और योग से मित्रता: गीता में योग और ध्यान के माध्यम से मन को शत्रु से मित्र में बदलने का रास्ता बताया गया है।
  • सकारात्मक सोच अपनाओ: मन की नकारात्मकता से लड़ो, उसे सकारात्मक विचारों से पोषित करो।

🌊 मन की हलचल

तुम महसूस करते हो कि मन तुम्हारे खिलाफ़ है—विचार बिखरे हुए, भावनाएँ उथल-पुथल में, और नियंत्रण खोया हुआ। यह स्वाभाविक है। मन की यह लड़ाई तुम्हें कमजोर नहीं बनाती, बल्कि यह तुम्हारी शक्ति को पहचानने का अवसर है। कभी-कभी मन तुम्हें भ्रमित करता है, लेकिन तुममें वह क्षमता है जो उसे समझ सके और उसका मार्गदर्शन कर सके।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, देखो! तुम्हारा मन तुम्हारा सबसे बड़ा साथी भी है और सबसे बड़ा विरोधी भी। जब तुम उसे समझते और नियंत्रित करते हो, तो वह तुम्हें अजेय बनाता है। पर जब तुम उसे अनियंत्रित छोड़ देते हो, तब वही तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। इसलिए, अपने मन को प्रेम से संभालो, उसे अपने लक्ष्य की ओर निर्देशित करो। याद रखो, मैं तुम्हारे भीतर भी हूँ, तुम्हारे मन की गहराई में।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो कि तुम्हारे मन के अंदर एक बगीचा है। उस बगीचे में दो जीव हैं—एक प्यारा और शांत पक्षी, जो फूलों पर बैठता है और मधुर गीत गाता है; दूसरा एक शेर है, जो गरजता है और बगीचे को तबाह कर सकता है। तुम ही हो उस बगीचे का माली। अगर तुम पक्षी को खिलाओगे, उसकी देखभाल करोगे, तो वह तुम्हारे लिए सुन्दर गीत गाएगा। पर अगर तुम शेर को अनदेखा कर दोगे, उसे नियंत्रण में नहीं रखोगे, तो वह बगीचे को बर्बाद कर देगा। यही तुम्हारा मन है—तुम्हें उसे समझना और संभालना है।

✨ आज का एक कदम

आज के दिन अपने मन के एक नकारात्मक विचार को पहचानो। उसे लिखो और फिर उस विचार के विपरीत एक सकारात्मक विचार भी लिखो। इसे दिन में दो बार दोहराओ। यह अभ्यास तुम्हारे मन को मित्र बनाने की ओर पहला कदम होगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन को मित्र या शत्रु के रूप में देख रहा हूँ? क्यों?
  • मैं अपने मन के साथ किस तरह का संवाद करना चाहता हूँ?
  • क्या मैं अपने मन को समझने और नियंत्रित करने के लिए तैयार हूँ?

मन की दोस्ती की ओर पहला कदम
साधक, मन की यह यात्रा कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। जब तुम अपने मन को समझोगे, उसे प्यार से संभालोगे, तो वह तुम्हारा सबसे बड़ा मित्र बन जाएगा। याद रखो, हर पल तुम्हारे भीतर एक नई शुरुआत होती है। तुम अकेले नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शांति, प्रेम और आत्म-विश्वास के साथ आगे बढ़ो।
ॐ नमः शिवाय।

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