Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

मन और इंद्रियों को अनुशासित कैसे करें?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • मन और इंद्रियों को अनुशासित कैसे करें?

मन की उड़ान को थामना — अनुशासन की ओर पहला कदम
साधक, मैं समझ सकता हूँ कि मन और इंद्रियाँ जब बेकाबू हो जाती हैं तो जीवन में संतुलन बनाना कितना कठिन हो जाता है। यह एक सामान्य संघर्ष है, पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। भगवद गीता में इस विषय पर गहरा प्रकाश डाला गया है, जो तुम्हारे मन और इंद्रियों को अनुशासित करने में मार्गदर्शक बनेगा।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 6, श्लोक 5
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

“आत्मा को आत्मा से ही उठाना चाहिए, न कि आत्मा को हीनता में डालना। क्योंकि आत्मा अपने लिए ही मित्र है और आत्मा के लिए ही शत्रु भी है।”

सरल व्याख्या:

अपने मन को अपने मित्र की तरह समझो। जब मन अशांत हो, तो उसे नीचा दिखाने की बजाय उसे उठाओ, शांत करो। मन और आत्मा दोनों एक ही हैं; इसलिए मन को अनुशासित करना स्वयं को सशक्त बनाना है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं की जागरूकता बढ़ाओ — अपने विचारों और भावनाओं को पहचानो, उन्हें दबाने की कोशिश मत करो।
  2. इंद्रियों का संयम रखो — इंद्रियाँ भटक सकती हैं, पर उनका दास न बनो। उन्हें नियंत्रित करना अभ्यास से आता है।
  3. नियमित साधना करो — ध्यान और योग मन को स्थिर करते हैं और अनुशासन सिखाते हैं।
  4. कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करो — फल की चिंता छोड़कर कर्म करो, इससे मन की उलझन कम होगी।
  5. संकल्प शक्ति विकसित करो — अपने मन को बार-बार सही दिशा में मोड़ो, यह अभ्यास से मजबूत होता है।

🌊 मन की हलचल

“कभी-कभी लगता है कि मेरा मन मेरी मर्जी का नहीं चलता। इंद्रियाँ मुझे बहकाती हैं, और मैं खुद को कमजोर महसूस करता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मैं अपने मन को नियंत्रित कर सकूँ, लेकिन वह बहुत तेज़ दौड़ता है। क्या मैं कभी शांत और अनुशासित हो पाऊँगा?”
ऐसा महसूस करना स्वाभाविक है। मन की यह बेचैनी तुम्हारे भीतर परिवर्तन की इच्छा का संकेत है। इसे स्वीकारो, और धीरे-धीरे अभ्यास से इसे सुधारो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“हे प्रिय, मन और इंद्रियाँ तुम्हारे साथी हैं, पर वे तुम्हारे स्वामी नहीं। उन्हें अपने नियंत्रण में लाना तुम्हारा धर्म है। जब मन भटकता है, तब भी उसे प्रेम से समझाओ, कठोरता से नहीं। ध्यान की गंगा में डुबकी लगाओ, और कर्मयोग की राह पर दृढ़ता से चलो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम अकेले नहीं हो।”

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक युवा राजकुमार था, जिसका मन बहुत अशांत था। वह हर दिन अपने घोड़े को दौड़ाता, पर घोड़ा बार-बार नियंत्रण से बाहर हो जाता। एक दिन उसके गुरु ने कहा, “पहले अपने घोड़े को समझो, फिर उसे प्यार से संभालो। जब घोड़ा शांत होगा, तभी वह तेरे आदेश मानेगा।” ठीक वैसे ही, जब तुम अपने मन को समझोगे और प्यार से अनुशासित करोगे, तब ही वह तुम्हारे आदेश मानेगा।

✨ आज का एक कदम

आज कम से कम पाँच मिनट के लिए शांत जगह पर बैठो। अपनी साँसों पर ध्यान दो। जब भी मन भटकता है, उसे धीरे-धीरे वापस लाओ। यह साधना तुम्हारे मन को अनुशासित करने की पहली सीढ़ी है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन की आवाज़ को बिना आलोचना के सुन सकता हूँ?
  • आज मैंने अपने मन को स्थिर करने के लिए क्या किया?

शांति की ओर एक कदम — तुम सक्षम हो!
शिष्य, मन और इंद्रियों का अनुशासन एक यात्रा है, मंजिल नहीं। धैर्य और प्रेम से इस यात्रा को अपनाओ। याद रखो, हर प्रयास तुम्हें भीतर की शांति के और करीब ले जाता है। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर।
शुभकामनाएँ! 🌸

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers