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मैं ज़िम्मेदारी लेने से क्यों डरता हूँ?

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ज़िम्मेदारी का भय: तुम अकेले नहीं हो
साधक, ज़िम्मेदारी का भय एक सामान्य मानवीय अनुभव है। यह डर अक्सर हमारे भीतर अनिश्चितता, असफलता का भय, या अपने आप में विश्वास की कमी से उत्पन्न होता है। तुम अकेले नहीं हो — हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी यह भाव आया है। चलो, भगवद गीता के प्रकाश में इस डर को समझते हैं और उसे पार करने का रास्ता खोजते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

धृतराष्ट्र उवाच:
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते |
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते || 2.31 ||
अर्थ:
हे धर्मराज! युद्ध के समय से श्रेष्ठ कोई अन्य कार्य नहीं है, ऐसा क्षत्रिय के लिए नहीं है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक युद्धभूमि में अपने कर्तव्य का निर्वाह करने के महत्व को बताता है। यहाँ युद्ध का अर्थ केवल बाहरी लड़ाई नहीं, बल्कि जीवन की हर चुनौती और ज़िम्मेदारी से है। ज़िम्मेदारी लेना और उसे निभाना ही जीवन का श्रेष्ठ धर्म है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. कर्तव्य को समझो, फल की चिंता छोड़ो — कर्म करो, पर उसके परिणाम की चिंता मत करो। ज़िम्मेदारी लेना कर्म है, फल की चिंता छोड़ो।
  2. स्वयं पर विश्वास बढ़ाओ — गीता हमें सिखाती है कि आत्मा अजर-अमर है, इसलिए असफलता के भय से न घबराओ।
  3. भीतर की शांति खोजो — जब मन शांत रहेगा, तब ज़िम्मेदारी लेना सरल होगा।
  4. छोटे कदमों से शुरुआत करो — बड़े कार्यों को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर ज़िम्मेदारी निभाना आसान होता है।
  5. सहायता माँगने से न घबराओ — ज़िम्मेदारी अकेले नहीं, परस्पर सहयोग से निभाई जाती है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारे मन में यह आवाज़ है: "अगर मैं असफल हो गया तो? अगर मैं सब कुछ ठीक से नहीं कर पाया तो?" यह डर तुम्हें रोकता है, तुम्हें कमजोर बनाता है। पर याद रखो, डर को पहचानना और उसका सामना करना ही वीरता है। तुम्हारे भीतर वह शक्ति है जो हर चुनौती को पार कर सकती है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, ज़िम्मेदारी से मत डरो। यह तुम्हारा विकास का मार्ग है। जैसे मैं अर्जुन को युद्धभूमि में समझा रहा था, वैसे ही मैं तुम्हें भी कहता हूँ — कर्म करो, फल की चिंता मत करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर। उठो, और अपने धर्म का पालन करो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र था जो परीक्षा से डरता था। वह सोचता था, "अगर मैं फेल हो गया तो?" लेकिन उसने धीरे-धीरे अपनी तैयारी शुरू की, छोटे-छोटे हिस्सों में। हर दिन थोड़ा थोड़ा पढ़ाई की। धीरे-धीरे उसका डर कम हुआ और उसने परीक्षा में सफलता पाई। ज़िम्मेदारी लेना भी ऐसा ही है — एक बड़ा पर्वत नहीं, बल्कि छोटे कदमों का सफर है।

✨ आज का एक कदम

आज एक छोटी ज़िम्मेदारी तय करो — चाहे वह घर का कोई काम हो, कोई छोटा प्रोजेक्ट हो या अपने दिनचर्या में सुधार। उसे पूरी ईमानदारी से निभाओ, बिना किसी भय के।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • मुझे इस क्षण में कौन-सी ज़िम्मेदारी सबसे ज्यादा भारी लग रही है?
  • मैं उस ज़िम्मेदारी को छोटे-छोटे हिस्सों में कैसे बाँट सकता हूँ?

ज़िम्मेदारी की ओर पहला कदम: विश्वास और साहस के साथ
प्रिय, ज़िम्मेदारी लेना डर नहीं, बल्कि तुम्हारे आत्म-विश्वास और विकास की निशानी है। खुद पर भरोसा रखो, और याद रखो कि हर बड़ा कार्य छोटे कदमों से शुरू होता है। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हमेशा। उठो, और अपने जीवन के रणभूमि में कदम बढ़ाओ।

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