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जब मैं घबराता हूँ तो उस प्रक्रिया पर भरोसा कैसे करूँ?

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जब मैं घबराता हूँ तो उस प्रक्रिया पर भरोसा कैसे करूँ?

घबराहट की लहरों में भरोसे का दीपक जलाएं
साधक, जब मन में घबराहट का तूफ़ान उठता है, तब ऐसा लगता है जैसे सब कुछ अनिश्चित और भयावह हो गया हो। यह स्वाभाविक है। जीवन की हर प्रक्रिया में उतार-चढ़ाव आते हैं, और घबराहट भी उनके बीच एक संकेत है कि कुछ नया सीखने या समझने का समय है। आइए, भगवद् गीता के अमृत श्लोकों से उस भरोसे का मार्ग खोजें जो तुम्हारे मन को शांति और स्थिरता प्रदान करेगा।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक:
धृतराष्ट्र उवाच |
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||
हिंदी अनुवाद:
धृतराष्ट्र बोले — हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में मेरे और पांडु पुत्रों के सैनिक युद्ध के लिए एकत्र हुए हैं, वे क्या कर रहे हैं?

सरल व्याख्या:
यह पहला श्लोक है, जहाँ राजा धृतराष्ट्र अपने मन की उलझन और चिंता को संजय से व्यक्त करते हैं। वे युद्ध की अनिश्चितता और परिणाम को लेकर घबराए हुए हैं। इसी प्रकार, जब तुम घबराते हो, तो समझो कि यह मन का स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। घबराहट का अर्थ है कि तुम्हारा मन भविष्य की अनिश्चितताओं को महसूस कर रहा है। परंतु, यह भी याद रखो कि यह प्रक्रिया जीवन का हिस्सा है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं पर भरोसा रखो — "कर्म करो, फल की चिंता मत करो।" (2.47)
    कर्म की प्रक्रिया पर भरोसा रखो, परिणाम पर नहीं। घबराहट तब कम होगी जब तुम अपने प्रयासों पर विश्वास करोगे।
  2. मन को स्थिर करो — "योगस्थः कुरु कर्माणि..." (2.48)
    मन को योग यानी एकाग्रता में लगाओ। घबराहट तब कम होगी जब मन वर्तमान में केंद्रित होगा।
  3. अहंकार और भय को पहचानो — "मन्मना भव मद्भक्तो..." (9.34)
    अपने मन की घबराहट को पहचानो, उसे भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण में बदलो।
  4. संकट में धैर्य रखो — "श्रीभगवानुवाच... न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्" (2.47)
    जीवन में स्थिरता नहीं है, हर पल परिवर्तन है। घबराहट भी एक गुजरने वाली भावना है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा, "क्या मैं सही निर्णय ले रहा हूँ? क्या मैं असफल हो जाऊंगा?" यह सोचना सामान्य है। घबराहट का अर्थ है कि तुम्हारा मन सुरक्षा चाहता है। परंतु याद रखो, असली सुरक्षा कर्म और विश्वास में है, न कि परिणाम की गारंटी में। घबराहट को अपने मित्र के रूप में स्वीकार करो, जो तुम्हें सचेत करता है, पर उसे तुम्हारे निर्णयों का बाधक न बनने दो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, मैं तुम्हारे भीतर हूँ। जब भी घबराहट आए, मुझमें डूब जाओ। मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि कैसे तुम अपने कर्मों के माध्यम से संसार में स्थिर रह सकते हो। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नौसिखिया नाविक समुद्र की लहरों से घबराया। उसने सोचा, "यह तूफ़ान मुझे डुबो देगा।" तभी उसके गुरु ने कहा, "लहरों से लड़ने की बजाय, नाव को सही दिशा में मोड़ो। तूफ़ान हमेशा नहीं रहता।" नौसिखिये ने अपने गुरु की बात मानी और नाव को धैर्य से संभाला। धीरे-धीरे तूफ़ान शांत हुआ और नाव सुरक्षित किनारे पहुंची।
तुम्हारी घबराहट भी वैसी ही लहरें हैं। उन्हें रोकने की कोशिश मत करो, बल्कि अपने कर्म और विश्वास के नाव को सही दिशा दो।

✨ आज का एक कदम

आज जब भी घबराहट महसूस हो, गहरी सांस लो और अपने आप से कहो:
"मैं इस प्रक्रिया पर भरोसा करता हूँ। मेरा प्रयास ही मेरा धर्म है।"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपनी घबराहट को स्वीकार कर सकता हूँ बिना उसे बढ़ाए?
  • क्या मैं अपने कर्मों पर भरोसा रख सकता हूँ, भले ही परिणाम अनिश्चित हो?

भरोसे के साथ आगे बढ़ो, मैं तुम्हारे साथ हूँ
साधक, घबराहट मन का एक संदेश है, जो तुम्हें सचेत करता है। इसे अपने भीतर की शक्ति और विश्वास से मात दो। याद रखो, जीवन की हर प्रक्रिया में कृष्ण तुम्हारे साथ हैं। धैर्य रखो, विश्वास रखो, और अपने कर्मों का प्रकाश फैलाओ। तुम्हारा यह सफर सुंदर और सार्थक होगा।
शांति और प्रेम के साथ,
तुम्हारा आत्मीय गुरु

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