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रात के समय या अकेले होने पर डर क्यों बढ़ जाता है?

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  • रात के समय या अकेले होने पर डर क्यों बढ़ जाता है?

अंधकार में भी तुम्हारा साथी हूँ
साधक, जब रात की चुप्पी गहरी होती है और चारों ओर सन्नाटा छा जाता है, तब मन के भीतर डर की लहरें उठना स्वाभाविक है। अकेलापन और अंधकार मिलकर हमारे मन के भय को बढ़ा देते हैं, क्योंकि मन अज्ञात से घबराता है। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो; तुम्हारे भीतर वह दिव्य शक्ति है जो अंधकार को प्रकाश में बदल सकती है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 56
श्लोक:
श्रीभगवानुवाच:
श्रीभगवान बोले—
धैर्यं सर्वत्र विजित्य शत्रून् भीतिं च विनाशयेत्।
सत्त्वसंशुद्ध्यै नित्यं योगोऽयं समाहितः स्मृतः॥

हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति अपने मन को स्थिर और शुद्ध रखता है, वह सभी भय और शत्रुओं को विजित कर देता है। निरंतर योग और धैर्य से वह भय को नष्ट कर देता है।
सरल व्याख्या:
जब मन में धैर्य और संयम होता है, तो भय अपने आप कम हो जाता है। योग अर्थात् ध्यान और आत्म-नियंत्रण से मन की अशांति दूर होती है, और भय का स्थान शांति ले लेती है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • मन का स्वामी बनो: भय मन की एक प्रतिक्रिया है, जिसे हम अपने योग और ध्यान से नियंत्रित कर सकते हैं।
  • असत् से न घबराओ: जो नश्वर है, उससे डरना व्यर्थ है। तुम्हारा सच्चा स्वरूप नित्य और अविनाशी है।
  • धैर्य और स्थिरता अपनाओ: डर की घड़ी में श्वासों को गहरा करो और अपने मन को स्थिर करो।
  • अंधकार में भी प्रकाश खोजो: भय का कारण अज्ञान है; ज्ञान ही प्रकाश है जो अंधकार मिटा सकता है।
  • भगवान के सान्निध्य में विश्वास रखो: तुम अकेले नहीं, ईश्वर तुम्हारे साथ हैं, जो तुम्हें हर भय से उबारेंगे।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारे मन में जो भय उठता है, वह तुम्हारे अस्तित्व की सुरक्षा की सहज प्रतिक्रिया है। पर क्या तुमने कभी ध्यान दिया है कि वह भय कितना वास्तविक है? या यह केवल कल्पना की छाया है? रात के अंधकार में मन कल्पनाओं को बढ़ा देता है, पर याद रखो, तुम्हारा मन तुम्हारा सेवक है, शत्रु नहीं। उसे प्रेम और समझ से संभालो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, जब भय तुम्हारे हृदय को घेर ले, तब मेरे नाम का स्मरण करो। मैं तुम्हारे भीतर हूँ, तुम्हारे साथ हूँ। अंधकार चाहे कितना भी घना हो, मेरी दिव्य ज्योति उसे चीर कर निकल आएगी। अपने मन को मेरे चरणों में समर्पित करो, और देखो कैसे भय धुंधलाता चला जाता है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक युवक जंगल में अकेला था। रात होने लगी और अंधेरा फैल गया। उसे हर आवाज़ डरावनी लगी, हर छाया भूत-प्रेत नजर आई। पर तभी उसने एक दीपक जलाया। दीपक की छोटी सी लौ ने उसके चारों ओर अंधकार को दूर कर दिया। भय भी उसी तरह था — जब तक मन में प्रकाश नहीं होगा, तब तक अंधकार डरावना लगेगा।

✨ आज का एक कदम

रात को सोने से पहले पांच मिनट ध्यान लगाओ। गहरी सांस लो, अपने मन को शांति दो और खुद से कहो: "मैं सुरक्षित हूँ, मैं शांति में हूँ।" धीरे-धीरे यह अभ्यास तुम्हारे भय को कम करेगा।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने भय को समझने और उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ?
  • क्या मैं अपने भीतर उस दिव्य शक्ति को महसूस कर सकता हूँ जो मुझे भय से मुक्त कर सकती है?

अंधकार के बाद भी उजाला है
तुम्हारा डर अस्थायी है, पर तुम्हारा आत्मा नित्य अमर है। जैसे रात के बाद सुबह होती है, वैसे ही तुम्हारे मन में भी शांति का सूरज उगेगा। विश्वास रखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। धीरे-धीरे तुम उस अंधकार से मुक्त हो जाओगे, जो तुम्हारे मन को घेरता है। शांति और प्रेम के साथ आगे बढ़ो।

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