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रिश्तों में भावनाएँ इतनी अधिक क्यों बदलती रहती हैं?

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  • रिश्तों में भावनाएँ इतनी अधिक क्यों बदलती रहती हैं?

दिल की लहरों में स्थिरता की खोज
प्रिय मित्र, जब हम रिश्तों की गहराई में उतरते हैं, तो अक्सर पाते हैं कि भावनाएँ जैसे बदलती रहती हैं — कभी मधुर, कभी तीव्र, कभी ठंडी। यह स्वाभाविक है, क्योंकि मन और हृदय की दुनिया निरंतर परिवर्तनशील है। तुम अकेले नहीं हो; हर कोई इस भावनात्मक बहाव में कहीं न कहीं खोया हुआ महसूस करता है। चलो, गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।

हिंदी अनुवाद:
हे कांतिवाले! सुख और दुःख, ठंड और गर्मी जैसे ये शरीर के मात्र स्पर्श ही अस्थायी हैं। ये आते-जाते रहते हैं, इसलिए तू उन्हें सहन कर।
सरल व्याख्या:
भावनाएँ भी ऐसे ही क्षणिक स्पर्श हैं। वे आती हैं और चली जाती हैं। इन्हें स्थायी समझकर दुखी या परेशान होना उचित नहीं। हमें उन्हें सहन करना सीखना चाहिए।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • भावनाएँ अस्थायी हैं: जैसे मौसम बदलते हैं, वैसे ही मन के भाव भी आते-जाते रहते हैं।
  • समत्व भाव अपनाओ: सुख-दुःख में समान दृष्टि रखो, इससे मन स्थिर रहता है।
  • स्वयं को पहचानो: तुम केवल भावनाओं के प्रवाह से परे एक स्थायी आत्मा हो।
  • सहनशीलता का अभ्यास: रिश्तों में धैर्य और सहनशीलता से भावनाओं के उतार-चढ़ाव को समझो।
  • कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करो: भावनाओं से विचलित हुए बिना अपने कर्तव्य और प्रेम को निभाओ।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो — "क्यों मेरा दिल आज खुशी से भरा है और कल उदासी से? क्या यह अस्थिरता मेरे रिश्तों को कमजोर कर देगी?" ये सवाल मन में उठते रहना स्वाभाविक है। याद रखो, भावनाओं का बदलना तुम्हारी कमजोरी नहीं, बल्कि मानवीय स्वभाव है। इसे स्वीकार करो, खुद को दोष मत दो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, देखो, जैसे नदी के जल में पत्थर डालो तो लहरें उठती हैं, पर नदी बहती रहती है। उसी प्रकार, तुम्हारे मन में भावनाएँ उठती हैं, पर तुम्हारा सच्चा स्वरूप स्थिर और शाश्वत है। उन्हें पकड़ो मत, बहने दो। प्रेम करो, समझो, और धैर्य रखो। यही जीवन का सार है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र था जो परीक्षा के तनाव में था। कभी वह उत्साहित होता, कभी निराश। उसके गुरु ने उसे एक दीपक दिया और कहा, "यह दीपक तुम्हारे मन की तरह है। हवा आएगी, तो लौ डगमगाएगी, पर दीपक बुझना नहीं चाहिए। जब भी भावनाएँ उथल-पुथल करें, अपने भीतर के दीपक को स्थिर रखो।"
रिश्ते भी ऐसे ही हैं — भावनाओं की हवा आती है, पर प्रेम का दीपक जलता रहे, यही जरूरी है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी करीबी से बिना किसी अपेक्षा के केवल सुनो। उनकी बातों को समझो, बिना प्रतिक्रिया दिए। इस अभ्यास से तुम्हारे मन में सहनशीलता और समझ बढ़ेगी।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने भावनात्मक बदलावों को स्वीकार कर पा रहा हूँ?
  • क्या मैं अपने रिश्तों में स्थिरता के लिए धैर्य और समझ दिखा रहा हूँ?

रिश्तों की लहरों में तैरना सीखो
भावनाएँ बदलती रहती हैं, यह जीवन का नियम है। पर तुम उस नदी के उस पार हो, जो स्थिर और शाश्वत है। धैर्य रखो, प्रेम करो, और समझो कि हर बदलाव के पीछे एक नई सीख छिपी होती है। तुम अकेले नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शांत मन से आगे बढ़ो, हर दिन एक नए सवेरे की तरह है।

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