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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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जब चीजें नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं तो मुझे चिंता होती है — गीता से मदद?

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जब चीजें नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं तो मुझे चिंता होती है — गीता से मदद?

चिंता के बादल में भी तुम्हारा साथ है
प्रिय शिष्य, जब जीवन की घटनाएँ हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, तो मन में बेचैनी और चिंता उठना स्वाभाविक है। यह अनुभूति तुम्हें अकेला महसूस करा सकती है, पर याद रखो, यह भी एक गुजरता हुआ मौसम है। भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने हमें ऐसे समय में भी स्थिरचित्त रहने का मार्ग दिखाया है। चलो, मिलकर इस चिंता के जाल से बाहर निकलने की राह खोजते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

(अध्याय 2, श्लोक 48)

हिंदी अनुवाद:
हे धनंजय (अर्जुन), तू योग में स्थित होकर अपने कर्मों को करता रह, आसक्ति त्याग कर। सफलता और असफलता में समान भाव रख, यही योग कहलाता है।
सरल व्याख्या:
जब हम अपने कर्म करते हैं, पर फल की चिंता छोड़ देते हैं, तो मन स्थिर रहता है। सफलता या असफलता दोनों में समान भाव बनाए रखना ही सच्ची योग की स्थिति है। यह चिंता को कम करने का सबसे बड़ा उपाय है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. कर्म पर ध्यान दो, फल पर नहीं: अपने प्रयासों को पूरी लगन से करो, लेकिन परिणाम की चिंता छोड़ दो।
  2. मन को स्थिर रखो: सफलता और असफलता दोनों को समान समझो, इससे चिंता कम होगी।
  3. आत्मा की शाश्वतता को समझो: शरीर और परिस्थिति नश्वर हैं, पर आत्मा अमर है, इसलिए भय और चिंता अस्थायी हैं।
  4. संकट में भी धैर्य रखो: संकट और बदलाव जीवन के नियम हैं, इन्हें स्वीकार करना ही शांति की कुंजी है।
  5. भगवान की शरण में आओ: जब मन परेशान हो, तो ईश्वर की भक्ति और स्मरण से मन को शांति मिलती है।

🌊 मन की हलचल

तुम कह रहे हो, "मैं सब कुछ खो दूंगा, अगर मैं नियंत्रण नहीं रख पाऊंगा।" यह डर तुम्हारे भीतर गहराई से बैठा है। पर क्या हो अगर हम यह मान लें कि नियंत्रण केवल बाहरी नहीं, बल्कि अपने मन का भी है? चिंता तुम्हारे मन का एक संकेत है कि तुम कुछ खोने से डरते हो। इसे पहचानो, पर उसे अपने ऊपर हावी न होने दो। तुम्हारा असली नियंत्रण तुम्हारे सोचने और प्रतिक्रिया देने के तरीके में है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय अर्जुन, चिंता मत कर। जीवन के तूफानों में भी मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम बस अपने कर्म करो, फल की चिंता मुझ पर छोड़ दो। जब तुम मुझ पर विश्वास करोगे, तो भय और चिंता स्वतः दूर हो जाएंगे। याद रखो, जो भी होता है, वह तुम्हारे लिए है, तुम्हारे खिलाफ नहीं।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नदी का प्रवाह अचानक तेज हो गया। नदी का पानी अपने किनारों को छोड़कर बहने लगा। एक बच्चे ने डरकर कहा, "नदी मुझे बहा ले जाएगी!" उसके पिता ने कहा, "बेटा, नदी का प्रवाह हमारे नियंत्रण में नहीं, पर हम नाविक की तरह हैं। हमें केवल अपने कौशल और धैर्य से नाव को संभालना है। चिंता करने से नाव डूबेगी, पर धैर्य और समझ से हम सुरक्षित रहेंगे।"
तुम भी जीवन की नाविक हो, चिंता को बहने दो, पर अपने मन और कर्म को संभालो।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में आई चिंता को एक कागज पर लिखो। फिर उसे पढ़कर कहो, "मैं इसे स्वीकार करता हूँ, पर मैं इसका गुलाम नहीं हूँ। मैं अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करूंगा।"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने नियंत्रण और चिंता में अंतर समझ पा रहा हूँ?
  • क्या मैं अपने कर्मों को पूरी लगन से कर रहा हूँ, बिना फल की चिंता किए?

शांति की ओर एक कदम
प्रिय शिष्य, चिंता के बादल चाहे जितने भी घने हों, याद रखो कि तुम्हारे भीतर एक प्रकाश है जो उन्हें चीर सकता है। भगवद गीता का ज्ञान तुम्हें उस प्रकाश तक पहुंचाने का मार्ग है। तुम्हारा मन शांत होगा, जब तुम कर्मयोग की राह पर चलोगे और ईश्वर की शरण में आओगे। तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो, इस सफर को एक साथ आगे बढ़ाते हैं।

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