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गीता की शिक्षा माता-पिता के प्रेम और आसक्ति के बारे में क्या है?

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  • गीता की शिक्षा माता-पिता के प्रेम और आसक्ति के बारे में क्या है?

माँ-बाप के प्रेम के बीच: गीता का स्नेहपूर्ण सन्देश
साधक, जब हम माता-पिता के प्रेम और उससे जुड़ी आसक्ति की बात करते हैं, तो यह दिल के सबसे नाजुक तारों को छू जाता है। यह प्रेम अनमोल है, पर कभी-कभी यह आसक्ति बन जाती है, जो हमारे मन को उलझनों में डाल देती है। आइए, गीता के अमृतवचन से इस प्रेम की गहराई को समझें और अपने मन को शांति का उपहार दें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

मामा तु सर्वाणि कर्माणि विद्यां चाविदां च यत् |
मयि सर्वाणि भूतानि संयम्य मामेत्य उदाहृताः ||

(भगवद्गीता १०.२०)

हिंदी अनुवाद:
सभी कर्म और ज्ञान जो हैं, वे मुझसे उत्पन्न हुए हैं। सभी जीव मेरे ही अंतर्गत हैं। उन्होंने अपने सभी कर्मों को संयमित करके, मुझमें ही आश्रय लिया है।
सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं कि हम सब उनके अंश हैं, एक महान परिवार के सदस्य हैं। माता-पिता का प्रेम भी उसी दिव्य प्रेम का प्रतिबिंब है, जो हमें एक दूसरे से जोड़ता है। परन्तु यह प्रेम तभी सच्चा होता है, जब वह हमें स्वतंत्रता और समझदारी देता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. प्रेम और आसक्ति में फर्क समझो: गीता कहती है कि प्रेम में स्वतंत्रता होती है, जबकि आसक्ति में बंधन। माता-पिता का स्नेह हमें जीवन में मजबूती देता है, पर यदि वह आसक्ति में बदल जाए तो वह दुःख का कारण बन सकता है।
  2. कर्तव्य और त्याग का समन्वय: माता-पिता का कर्तव्य है स्नेह देना, और पुत्र-पुत्री का कर्तव्य है सम्मान और कृतज्ञता देना। परन्तु दोनों को अपने-अपने कर्तव्यों में संतुलन रखना चाहिए।
  3. आत्मा को पहचानो: गीता सिखाती है कि हम केवल शरीर या संबंध नहीं हैं, बल्कि आत्मा हैं। इसलिए, प्रेम में भी हमें आत्मा की स्वतंत्रता और विकास को समझना चाहिए।
  4. भावनाओं को नियंत्रित करना सीखो: गीता में कहा गया है कि मन को संयमित कर, हम अपने संबंधों को स्वस्थ और मधुर बना सकते हैं।
  5. अहंकार से ऊपर उठो: प्रेम में अहंकार नहीं होना चाहिए। जब माता-पिता अपने स्नेह में अहंकार छोड़ देते हैं, तभी प्रेम सहज और शुद्ध होता है।

🌊 मन की हलचल

शिष्य, तुम्हारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है—“क्या मैं अपने माता-पिता के प्रेम को समझ पाता हूँ? क्या उनकी आशंकाएं मेरी स्वतंत्रता को रोकती हैं?” यह उलझन तुम्हें अकेला महसूस करा सकती है, पर याद रखो, यह संघर्ष प्रेम की गहराई को जानने का एक हिस्सा है। तुम्हारा मन भी तुम्हें सिखा रहा है कि प्रेम और आसक्ति के बीच संतुलन कैसे बनाएँ।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“हे प्रिय, मैं जानता हूँ कि माता-पिता का प्रेम तुम्हारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। परन्तु याद रखो, प्रेम का अर्थ बंधन नहीं, बल्कि समझदारी और स्वतंत्रता है। अपने हृदय में उनके लिए कृतज्ञता रखो, पर अपने कर्मों और आत्मा की स्वतंत्रता भी स्वीकार करो। जब तुम अपने प्रेम को सच्चाई और संयम से देखोगे, तब वह प्रेम तुम्हारे जीवन में प्रकाश की तरह चमकेगा।”

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छोटे पक्षी ने अपने माता-पिता के घोंसले से बाहर उड़ने का प्रयास किया। माता-पिता डर रहे थे कि कहीं वह गिर न जाए। वे उसे बार-बार पकड़ कर वापस घोंसले में ले आते। पर पक्षी ने धैर्य नहीं खोया, उसने अपनी पंखों को मजबूत किया और फिर उड़ान भरी। अंततः माता-पिता ने भी समझा कि सच्चा प्रेम उसे उड़ान भरने देना है, न कि उसे घोंसले में बंद रखना।

✨ आज का एक कदम

आज अपने माता-पिता से एक खुली और प्रेमपूर्ण बातचीत करो। उनसे उनके प्रेम की भावना समझो और अपने मन की बात भी साझा करो। यह संवाद तुम्हारे रिश्ते को और मधुर बनाएगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरा प्रेम मेरे माता-पिता के प्रति स्वतंत्रता और सम्मान का भाव रखता है?
  • मैं अपने मन की किन भावनाओं को समझने और स्वीकारने के लिए तैयार हूँ?

प्रेम की मूरत में शांति का दीपक जलाएं
साधक, माता-पिता का प्रेम परमात्मा के प्रेम का प्रतिबिंब है। उसे समझो, अपनाओ और अपने मन में प्रेम और स्वतंत्रता के बीच सुंदर संतुलन बनाओ। यही गीता की सच्ची शिक्षा है, जो तुम्हारे जीवन को उज्जवल बनाएगी।
शुभकामनाएँ! 🌸

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