Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

क्या प्रेम और दोस्ती में इच्छाएँ रखना गलत है?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • क्या प्रेम और दोस्ती में इच्छाएँ रखना गलत है?

प्रेम और दोस्ती की गहराई में इच्छाओं का सच
प्रिय मित्र, जब हम प्रेम और दोस्ती की बात करते हैं, तो हमारे मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या उन रिश्तों में इच्छाएँ रखना सही है या नहीं। यह उलझन बहुत स्वाभाविक है। चलिए, श्रीमद्भगवद्गीता के अमृतमय शब्दों से इस प्रश्न की गहराई में उतरते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत रखो और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि अपने कर्तव्य और भावों को पूरी निष्ठा से निभाओ, लेकिन फल की इच्छा या आसक्ति मत रखो। प्रेम और दोस्ती में भी यदि हम केवल उस रिश्ते की खुशी या अपेक्षा में बंधे रहेंगे, तो वे रिश्ते बोझ बन सकते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. इच्छाएँ समझो, पर उनसे बंधो मत।
    प्रेम और दोस्ती में चाहना स्वाभाविक है, लेकिन जब वह इच्छा अधिमान बन जाए, तो वह दुख की जड़ बन जाती है।
  2. स्वतंत्रता और सम्मान बनाये रखो।
    रिश्तों में दोनों पक्षों की स्वतंत्रता और भावनाओं का सम्मान जरूरी है। इच्छाएँ तभी स्वस्थ होती हैं जब वे दूसरों को दबाव न दें।
  3. निःस्वार्थ प्रेम की ओर बढ़ो।
    प्रेम और दोस्ती का सार है देना, बिना कुछ पाने की उम्मीद के। जब हम बिना शर्त प्यार करते हैं, तब रिश्ते सच्चे और मजबूत होते हैं।
  4. भावनाओं को समझो, पर नियंत्रण भी रखो।
    मन की इच्छाओं को पहचानो, लेकिन उन्हें अपने व्यवहार पर हावी मत होने दो।
  5. स्वयं में संतुलन खोजो।
    अपने मन और हृदय को संतुलित रखना सीखो, ताकि प्रेम में भी शांति बनी रहे।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो, "क्या मैं अपनी चाहतों को दबा दूं? क्या बिना इच्छाओं के प्रेम संभव है?" यह भय और उलझन तुम्हारे मन को बेचैन कर रहे हैं। याद रखो, इच्छाएँ स्वाभाविक हैं, पर जब वे नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, तब वे हमें पीड़ा देती हैं। तुम्हारा मन इस द्वंद्व में फंसा हुआ है, और यह ठीक है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय शिष्य, प्रेम और दोस्ती में इच्छाएँ रखना स्वाभाविक है, पर उन्हें अपने मन का स्वामी मत बनने दो। जैसे नदी अपने प्रवाह में पत्थरों को सहन करती है, वैसे ही तुम भी अपने मन की इच्छाओं को स्वीकारो, पर उनके पीछे अंधे होकर मत चलो। प्रेम का सार है स्वतंत्रता देना और बिना अपेक्षा के देना। जब तुम ऐसा करोगे, तब तुम्हारा प्रेम पवित्र और स्थायी होगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक बागवान ने अपने बगीचे में एक सुंदर गुलाब का पौधा लगाया। वह रोज़ उसकी देखभाल करता, उसे पानी देता, खाद डालता, और उम्मीद करता कि वह जल्दी से फूल देगा। लेकिन जब गुलाब ने देर से फूल दिया, तो बागवान ने निराश होकर उसकी देखभाल कम कर दी। पौधा भी धीरे-धीरे मुरझाने लगा।
यह कहानी हमें बताती है कि प्रेम भी ऐसे ही है। जब हम प्रेम में केवल फल की इच्छा रखते हैं, तो हम उस रिश्ते की असली खूबसूरती को खो देते हैं। प्रेम को वैसे ही अपनाओ जैसे बागवान ने पौधे को बिना शर्त अपनाया होता।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी प्रिय दोस्त या साथी से बिना कोई अपेक्षा केवल उनकी खुशी के लिए एक छोटी सी सेवा करो। देखो, तुम्हारे दिल में कैसा अनुभव होता है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने रिश्तों में इच्छाओं को समझदारी से रख पा रहा हूँ?
  • क्या मैं प्रेम और दोस्ती में बिना अपेक्षा के देने का प्रयास कर सकता हूँ?

🌼 प्रेम और दोस्ती में शांति का दीप जलाओ
मेरे प्रिय, प्रेम और दोस्ती में इच्छाएँ रखना गलत नहीं, पर उन्हें अपने मन का दास बनने मत दो। जब तुम निःस्वार्थ प्रेम का मार्ग अपनाओगे, तब तुम्हारे रिश्ते खिलेंगे और तुम्हारा मन शांति से भर जाएगा। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो; यह यात्रा हर किसी की है। प्रेम के इस पथ पर कदम बढ़ाओ, शांति और आत्मीयता के साथ।

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers