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संघर्ष से निपटते समय भावनाओं को कैसे नियंत्रित करें?

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भावनाओं के तूफान में शांति की नाव पकड़ना
साधक, जब जीवन के संघर्षों की लहरें हमारे मन को घेर लेती हैं, तब भावनाएँ जैसे किसी उथल-पुथल भरे समुंदर में नाव की तरह हो जाती हैं। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के भीतर यह संघर्ष होता है, और भगवद् गीता हमें इसका समाधान देती है — कैसे अपने भीतर की आग को शांत कर, समझदारी और धैर्य से आगे बढ़ा जाए।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 14
मा त्रासिक् इति माम्
संस्कृत:
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥
हिंदी अनुवाद:
हे कांतव्यो, ये सुख-दुख, शीत-गर्मी जैसे अनुभव मात्र स्पर्श के समान हैं। ये आते-जाते रहते हैं, अस्थायी हैं। इसलिए हे भारत (अर्जुन), तुम उन्हें सहन करो।
सरल व्याख्या:
भावनाएँ और परिस्थितियाँ अस्थायी हैं। वे आते हैं और जाते हैं। उन्हें अपने ऊपर हावी न होने दो, बल्कि धैर्य और समझदारी से उनका सामना करो।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. भावनाओं को स्वीकारो, पर उनका गुलाम मत बनो।
    भावनाएँ स्वाभाविक हैं, उन्हें दबाने की बजाय समझो और नियंत्रित करो।
  2. स्थिरचित्तता (समत्व) का अभ्यास करो।
    सुख-दुख में समान भाव रखना सीखो, जिससे मन स्थिर और शांत रहे।
  3. वास्तविकता को समझो — सब कुछ अस्थायी है।
    संघर्ष भी एक गुजरता हुआ अनुभव है, इसे स्थायी मत समझो।
  4. ध्यान और स्व-निरीक्षण से मन को नियंत्रित करो।
    अपने भीतर झाँको और समझो कि कौन से विचार और भावनाएँ तुम्हें विचलित कर रही हैं।
  5. कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करो, फल की चिंता छोड़ दो।
    अपने कर्म पर ध्यान दो, परिणाम पर नहीं।

🌊 मन की हलचल

तुम्हें लगता होगा — "मेरे अंदर इतना भाव है, मैं इसे कैसे रोकूं? क्या मैं कमजोर हूँ?" ये भाव तुम्हारे मन का स्वाभाविक हिस्सा हैं। संघर्ष में भावनाओं का उफान आना सामान्य है। पर याद रखो, तुम भावों के मालिक हो, उनके गुलाम नहीं। उन्हें पहचानो, उनसे लड़ो नहीं।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, जब तू अपने मन की गहराई में डूबता है, तब याद रख कि तू केवल शरीर और मन नहीं, बल्कि आत्मा है — जो नश्वर नहीं। तू अपने मन को एक सवार की तरह संभाल, जो अशांत घोड़े को लगाम देता है। तू संघर्ष में स्थिर रह, मैं तेरे साथ हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो, एक नाविक तूफानी समुद्र में है। लहरें उसे डुबोने की कोशिश करती हैं। अगर वह घबराएगा और नाव को छोड़ देगा, तो डूब जाएगा। पर यदि वह धैर्य से पतवार संभाले रखेगा, लहरों के बीच से रास्ता खोजेगा, तो वह सुरक्षित किनारे तक पहुँच जाएगा। तुम्हारा मन वही नाव है, और भावनाएँ वे लहरें। तुम्हें पतवार की तरह अपनी समझ और धैर्य को पकड़ना है।

✨ आज का एक कदम

आज जब भी कोई भावनात्मक संघर्ष आए, गहरी साँस लो, और अपने मन से कहो — "यह भी गुजर जाएगा। मैं स्थिर रहूँगा।" इसे कम से कम तीन बार दोहराओ। यह अभ्यास तुम्हारे मन को स्थिर करने में मदद करेगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • इस संघर्ष में मेरी कौन-सी भावनाएँ सबसे अधिक उफन रही हैं?
  • क्या मैं उन्हें पहचान कर स्वीकार कर पा रहा हूँ, या उनसे भाग रहा हूँ?
  • मैं अपने मन को शांत करने के लिए आज क्या कर सकता हूँ?

🌼 संघर्ष के बाद शांति की पहली किरण
प्रिय, संघर्ष और भावनाओं के बीच एक सेतु बनाना सीखो। गीता की शिक्षाएं तुम्हें यह शक्ति देती हैं कि तुम अपने मन के स्वामी बनो। याद रखो, हर तूफान के बाद शांति आती है। तुम उस शांति की ओर बढ़ रहे हो, और मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शुभकामनाएँ।
– तुम्हारा आत्मीय गुरु

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