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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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अगर मैं अब उस व्यक्ति से संबंधित नहीं महसूस करता/करती जो मैं पहले था?

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नया मैं, नई यात्रा: जब पुराना "मैं" दूर हो चला
साधक, जीवन के इस मोड़ पर जब तुम्हें अपने भीतर के उस व्यक्ति से दूरी महसूस हो रही है जो कभी था, यह स्वाभाविक है। परिवर्तन जीवन की अनिवार्यता है, और कभी-कभी यह हमें अपनी ही पहचान से जुदा कर देता है। परन्तु याद रखो, तुम अकेले नहीं, यह यात्रा सबका हिस्सा है। चलो मिलकर समझें, गीता की अमृत वाणी से।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा केवल कर्म करने में अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो, और न ही कर्म न करने से जुड़ो।
सरल व्याख्या:
तुम्हारा अस्तित्व कर्म से जुड़ा है, न कि उस कर्म के परिणाम से। जो तुम पहले थे, वह तुम्हारे कर्मों और अनुभवों का परिणाम था। अब तुम बदल रहे हो, इसलिए पुराने फल और पहचान से खुद को बाँधना उचित नहीं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • परिवर्तन जीवन का नियम है: जैसे ऋतुएं बदलती हैं, वैसे ही मन और पहचान भी बदलती है। इसे स्वाभाविक समझो।
  • असली "मैं" कर्म करता है, फल नहीं चाहता: अपने कर्मों पर ध्यान दो, न कि पुराने या नए पहचान के फलों पर।
  • स्वयं को स्वीकारो, बिना विरोध के: पुराना "मैं" चला गया, नया "मैं" जन्म ले रहा है। इसे अपनाओ।
  • अहंकार की जंजीरों को तोड़ो: "मैं वही हूँ जो पहले था" की सोच से मुक्त होकर वर्तमान में जियो।
  • ध्यान और आत्मनिरीक्षण से साक्षात्कार: अपने भीतर की शांति और स्थिरता खोजो, जो हमेशा तुम्हारे साथ है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन शायद कह रहा है — "मैं खो गया हूँ", "मैं कौन हूँ अब?", "क्या मैं वही व्यक्ति हूँ जो था?" यह प्रश्न स्वाभाविक हैं। डर, अनिश्चितता और अकेलापन महसूस होना भी सामान्य है। पर याद रखो, यह भ्रम नहीं, बल्कि विकास की प्रक्रिया है। अपने मन को दोष मत दो, उसे समझो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, जो तुम आज महसूस कर रहे हो, वह परिवर्तन का स्वाभाविक भाग है। पुराने कपड़े फाड़कर नए वस्त्र नहीं पहन सकते। अपने भीतर की आत्मा को पहचानो, जो न कभी जन्मी है, न कभी मरेगी। तुम वह नहीं जो तुम्हारे पुराने विचार और भाव थे, तुम उससे परे हो। इसलिए निर्भय बनो और अपने कर्मों में लगन बनाये रखो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो एक पेड़ को, जो सालों से एक ही रूप में था। एक दिन उसकी शाखाएँ सूखने लगीं। वह डर गया कि क्या वह अब वही पेड़ रहेगा? परन्तु उसने अपने पुराने पत्तों को गिरने दिया, और नए पत्ते उगने लगे। वह वही पेड़ था, पर नया रूप लिए। तुम्हारा जीवन भी ऐसा ही है — पुराने पत्तों को छोड़ो, नए को अपनाओ।

✨ आज का एक कदम

आज अपने आप से कहो: "मैं अपने वर्तमान रूप को स्वीकार करता/करती हूँ। मैं अपने परिवर्तन को प्रेम से देखता/देखती हूँ।" फिर एक छोटी सी ध्यान मुद्रा में बैठकर अपने भीतर की उस स्थिरता को महसूस करो जो हमेशा तुम्हारे साथ है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने वर्तमान स्वरूप को बिना विरोध के स्वीकार कर सकता/सकती हूँ?
  • क्या मैं अपने पुराने और नए "मैं" के बीच की दूरी को एक विकास की प्रक्रिया के रूप में देख सकता/सकती हूँ?

परिवर्तन की ओर बढ़ते कदम
प्रिय, याद रखो कि तुम हमेशा से वही आत्मा हो, जो अनेक रूपों में प्रकट होती रही है। तुम्हारा असली स्वरूप अविनाशी है। इस परिवर्तन को अपनाओ, अपने भीतर की शांति से जुड़ो और जीवन के नए अध्याय को खुली बाहों से स्वीकार करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हमेशा।
शुभ यात्रा! 🌸

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