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मैं यह कैसे स्वीकार करूं कि मैं बदल रहा हूँ और अन्य लोग शायद नहीं बदल रहे?

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  • मैं यह कैसे स्वीकार करूं कि मैं बदल रहा हूँ और अन्य लोग शायद नहीं बदल रहे?

बदलते हुए स्वयं से दोस्ती: जब हम बदलते हैं और लोग नहीं
साधक, जीवन की इस जटिल यात्रा में जब हम अपने भीतर बदलाव महसूस करते हैं, पर आसपास के लोग वैसा न करें, तो यह असहज और अकेलापन सा लग सकता है। पर जान लो, यह तुम्हारे विकास का संकेत है, तुम्हारे आत्मा के जागरण का पहला कदम है। तुम अकेले नहीं हो, हर कोई अपनी गति से चलता है, और बदलाव का अर्थ है जीवन की नयी दिशा को अपनाना।

🕉️ शाश्वत श्लोक

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”

— भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 47
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो, और न ही कर्म न करने में आसक्त होओ।
सरल व्याख्या:
अपने कर्म पर ध्यान दो, न कि दूसरों के बदलने या न बदलने पर। अपने परिवर्तन और कर्म को स्वीकारो, परिणाम की चिंता छोड़ दो।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं के कर्म पर ध्यान दो, दूसरों के व्यवहार पर नहीं। परिवर्तन की शुरुआत अपने अंदर से होती है, दूसरों को बदलना हमारा कार्य नहीं।
  2. परिवर्तन एक प्रक्रिया है, धैर्य रखो। हर व्यक्ति का विकास अलग गति से होता है, इसे स्वीकारना सीखो।
  3. असंगति में भी शांति बनाए रखना सीखो। जब लोग नहीं बदलते, तब भी अपने मन को स्थिर रखना ही सच्ची समझदारी है।
  4. अपने भीतर की आवाज़ सुनो, जो तुम्हें आगे बढ़ने को प्रेरित करती है। यह तुम्हारी आत्मा की पुकार है।
  5. परिवर्तन के डर को छोड़ो, क्योंकि यही जीवन का नियम है। जो स्थिर है, वही मृत है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारे मन में सवाल उठते हैं — "क्या मैं अकेला हूँ जो बदल रहा हूँ? क्या मैं गलत हूँ कि मैं बदलना चाहता हूँ? क्या मेरे रिश्ते टूटेंगे?" ये भाव स्वाभाविक हैं। बदलाव का डर, अस्वीकृति का डर, और अकेलापन महसूस होना भी। लेकिन याद रखो, तुम्हारा सच तुम्हारा मार्गदर्शक है। खुद से झूठ मत बोलो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“हे अर्जुन, जैसे नदी बहती रहती है, वैसे ही जीवन भी निरंतर प्रवाह में है। तुम अपने अंदर की नदी को साफ़ करो, उसे रोको मत। दूसरों की स्थिरता को देखकर अपने जल को कम मत समझो। तुम अपने कर्मों में निष्ठावान रहो, फल की चिंता छोड़ दो। परिवर्तन तुम्हारे भीतर की प्रकृति है, इसे अपनाओ और शांति पाओ।”

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक बाग में दो पेड़ थे। एक पेड़ ने नयी कली निकाली, नए पत्ते उगाए, और धीरे-धीरे बदलने लगा। दूसरा पेड़ पुराने पत्तों को पकड़ कर बैठा रहा। बागवानी करने वाला किसान जानता था कि पहला पेड़ बढ़ रहा है, नया जीवन ले रहा है, जबकि दूसरा पेड़ जड़ता की ओर जा रहा है। तुम पहला पेड़ हो, जो बढ़ रहा है। दूसरे पेड़ की स्थिरता तुम्हें रोक नहीं सकती।

✨ आज का एक कदम

आज अपने दिन में एक पल निकालो और अपने अंदर यह स्वीकारो — “मैं बदल रहा हूँ, और यह ठीक है। मैं अपने परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हूँ। दूसरों के बदलने या न बदलने से मेरा मन प्रभावित नहीं होगा।” इस विचार को दोहराओ और महसूस करो।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने बदलाव को प्यार और सम्मान के साथ स्वीकार कर पा रहा हूँ?
  • क्या मैं दूसरों की स्थिरता को समझने और स्वीकारने के लिए तैयार हूँ?

🌼 परिवर्तन की सुंदरता में खो जाओ
प्रिय, बदलाव का अर्थ है जीवन में जागृति। जब तुम अपने भीतर के परिवर्तन को स्वीकार करोगे, तो तुम्हें अपने और दूसरों के प्रति सहिष्णुता और प्रेम मिलेगा। याद रखो, तुम अकेले नहीं, हर परिवर्तन तुम्हें जीवन के नए अध्याय की ओर ले जाता है। शांति और विश्वास के साथ आगे बढ़ो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।

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