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कृष्ण बिना शर्त प्रेम के बारे में क्या कहते हैं?

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कृष्ण बिना शर्त प्रेम के बारे में क्या कहते हैं?

प्रेम की सच्चाई: कृष्ण के शब्दों में बिना शर्त प्रेम का सार
साधक, जब हम प्रेम की बात करते हैं, तो अक्सर हम चाहते हैं कि वह स्वार्थरहित, निष्कलंक और शुद्ध हो। लेकिन क्या सच में ऐसा प्रेम संभव है? श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में प्रेम को केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक दिव्य अनुभव बताया है, जो हमारी आत्मा को मुक्त करता है। आइए, उनके शब्दों में बिना शर्त प्रेम की गहराई को समझें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 12, श्लोक 13-14:
सर्वभूतहिते रतः सर्वभूतानुमनोऽस्मि।
निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी॥

संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥

हिंदी अनुवाद:
जो सभी प्राणियों के हित में लगा रहता है, जो सबका मन रखता है अपने समान, जो ममता और अहंकार से रहित है, सुख-दुख में सम रहता है, क्षमाशील है, जो सदा संतुष्ट रहता है, दृढ़ निश्चयी योगी है, जिसने मन और बुद्धि मुझे समर्पित कर दी है, वही मेरा प्रिय भक्त है।
सरल व्याख्या:
श्रीकृष्ण कहते हैं कि सच्चा प्रेम बिना शर्त होता है, जिसमें स्वार्थ, अहंकार और अपेक्षाएँ नहीं होतीं। प्रेमी का हृदय सभी के लिए समान होता है, वह क्षमाशील और संतुष्ट रहता है। ऐसे प्रेमी को भगवान स्वयं प्रिय मानते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • स्वार्थरहितता: प्रेम में स्वार्थ नहीं होता; जब हम बिना किसी अपेक्षा के देते हैं, तब प्रेम पवित्र होता है।
  • समान दृष्टि: प्रेमी सभी प्राणियों को अपने समान समझता है, जिससे द्वेष और भेदभाव समाप्त हो जाते हैं।
  • क्षमा और सहनशीलता: बिना शर्त प्रेम में क्षमा और सहनशीलता का स्थान होता है; यह प्रेम को स्थिर और मजबूत बनाता है।
  • संतोष और समत्व: प्रेमी सुख-दुख में समान रहता है, जिससे प्रेम निरंतर और अटूट रहता है।
  • समर्पण: प्रेम का उच्चतम रूप है समर्पण, जिसमें प्रेमी अपने मन और बुद्धि को प्रेम के स्रोत को समर्पित कर देता है।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो, "क्या मैं सच में बिना शर्त प्रेम कर सकता हूँ? क्या मेरे भीतर इतनी सहनशीलता और समर्पण है?" यह सवाल सामान्य है। प्रेम की राह में हम अक्सर अपने अहंकार, अपेक्षाओं और भय के साथ जूझते हैं। लेकिन याद रखो, प्रेम कोई मंजिल नहीं, बल्कि एक यात्रा है, जिसमें हर दिन थोड़ा और समझना और देना होता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, प्रेम को मत बांधो शर्तों के जाल में। जब तुम बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की भलाई की कामना करोगे, तब तुम्हारा हृदय मेरे जैसा निर्मल और विशाल हो जाएगा। प्रेम का अर्थ है समर्पण, क्षमा और सभी के प्रति एक समान दृष्टि। इस प्रेम में ही तुम्हारा सच्चा सुख और शांति निहित है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक वृक्ष था जो अपनी छाया सभी को देता था। वह कभी नहीं सोचता था कि उसे कोई फल मिलेगा या नहीं। वह केवल देता रहा, बिना किसी अपेक्षा के। लोग उसकी छाया में आराम करते, बच्चे उसके नीचे खेलते। वृक्ष की खुशी उसकी सेवा में थी, न कि किसी पुरस्कार में। ठीक वैसे ही, बिना शर्त प्रेम भी एक वृक्ष की छाया की तरह है—स्वयं को भूलकर दूसरों को समर्पित होना।

✨ आज का एक कदम

आज किसी ऐसे व्यक्ति के लिए कुछ करें, बिना यह सोचे कि आपको उसका धन्यवाद मिलेगा या नहीं। चाहे वह कोई छोटा सा काम हो—एक मुस्कान देना, मदद करना या सिर्फ ध्यान से सुनना। इस छोटे से अभ्यास से बिना शर्त प्रेम की शुरुआत होगी।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने प्रेम में स्वार्थ और अपेक्षाओं को पहचान सकता हूँ?
  • क्या मैं दूसरों के प्रति अपनी दृष्टि को समान और दयालु बना सकता हूँ?

🌼 प्रेम की राह पर एक कदम और
शिष्य, प्रेम कोई गणित नहीं, कोई नियम नहीं, बल्कि एक अनुभव है जो रोज़ तुम्हें बदलता रहता है। कृष्ण के शब्दों को अपने हृदय में उतारो और प्रेम को बिना शर्त अपनाने का साहस रखो। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो—प्रेम की इस दिव्य यात्रा में मैं और भगवान सदैव तुम्हारे साथ हैं।
शुभकामनाएँ! 🌸

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