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क्या सच्ची समर्पण अपराधबोध का बोझ मिटा सकता है?

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  • क्या सच्ची समर्पण अपराधबोध का बोझ मिटा सकता है?

समर्पण की शक्ति: अपराधबोध के बादल छटेंगे
साधक, जब मन अपराधबोध की जकड़न में फंसा होता है, तो ऐसा लगता है जैसे भीतर का प्रकाश बुझ सा गया हो। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर इंसान ने कभी न कभी अपने अतीत की गलती पर पछतावा किया है। पर क्या तुम जानते हो कि सच्चा समर्पण, वह जो निःस्वार्थ और पूर्ण विश्वास के साथ होता है, उस बोझ को कम कर सकता है? आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

"मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः॥"

(भगवद गीता, अध्याय 12, श्लोक 10)
हिंदी अनुवाद:
"हे अर्जुन! अपना मन मुझमें ही लगाओ और अपनी बुद्धि मुझमें ही केंद्रित कर दो। निश्चय जानो, तुम निश्चित रूप से मुझमें निवास करोगे और मुझसे ऊपर कुछ नहीं है।"
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि जब हमारा मन पूर्ण रूप से परमात्मा में समर्पित हो जाता है, तो हमें किसी भी प्रकार की चिंता या अपराधबोध से ऊपर उठने का अवसर मिलता है। समर्पण से मन स्थिर होता है और हम अपने अतीत के बोझ से मुक्त हो सकते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. समर्पण से मन की शांति: जब हम अपने कर्मों का फल भगवान को समर्पित कर देते हैं, तो अपराधबोध की जंजीरें टूटने लगती हैं।
  2. कर्मयोग का संदेश: कर्म करते रहो, लेकिन फल की चिंता त्याग दो। यही समर्पण का सार है।
  3. स्वयं को क्षमा करना: गीता सिखाती है कि हम सब गलतियां करते हैं, पर उनसे सीखकर आगे बढ़ना ही जीवन है।
  4. परमात्मा में विश्वास: जब हम अपने दोषों को ईश्वर के चरणों में छोड़ देते हैं, तो वह हमें नया जीवन देता है।
  5. अतीत से वर्तमान में लौटना: समर्पण से हम वर्तमान में जीना सीखते हैं, जो भविष्य के लिए सबसे बड़ा उपहार है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा, "मैंने जो किया, उसे मैं कैसे भूल जाऊं? क्या मैं फिर से खुद से प्यार कर पाऊंगा?" ये सवाल स्वाभाविक हैं। पर याद रखो, अपराधबोध तुम्हें परिभाषित नहीं करता। वह एक भाव है, जो तुम्हारे भीतर परिवर्तन का संकेत भी हो सकता है। उसे दबाने के बजाय, उसे स्वीकार करो और समर्पण के माध्यम से उसे शांति दो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय अर्जुन, मैं जानता हूँ तुम्हारे मन की पीड़ा को। पर याद रखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। अपने मन को मुझमें लगाओ, अपने दोषों को मेरे चरणों में रख दो। मैं तुम्हें नई ऊर्जा दूंगा, ताकि तुम अपने कर्मों को नित्य नए उत्साह से कर सको। समर्पण ही तुम्हारा सबसे बड़ा शस्त्र है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र ने परीक्षा में बड़ी गलती कर दी। वह अपराधबोध से घिर गया और खुद को कोसने लगा। फिर उसने गुरु से कहा, "मैंने इतना बड़ा पाप कर दिया, मैं सुधार नहीं सकता।" गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, गलती करना मानवता है। पर क्या तुमने अपनी गलती को स्वीकार कर उसे सुधारने का प्रयास किया?" छात्र ने कहा, "हाँ।" गुरु ने कहा, "तो समर्पण कर अपने प्रयासों को, और देखो कैसे तुम्हारा मन हल्का होता है।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन के उस अपराधबोध को पहचानो और उसे ईश्वर के चरणों में सौंप दो। एक छोटा सा मंत्र जपो — "ममैव मम कर्म फलम्" अर्थात "मेरे कर्मों का फल मेरे ही अधीन है, मैं उसे ईश्वर को समर्पित करता हूँ।"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अतीत की गलतियों को स्वीकार कर उनसे सीखने को तैयार हूँ?
  • क्या मैं अपने मन को समर्पण के माध्यम से शांति दे सकता हूँ?

समर्पण से नई शुरुआत की ओर
प्रिय, तुम्हारा अतीत तुम्हारा दास नहीं, बल्कि तुम्हारा शिक्षक है। समर्पण की शक्ति से तुम अपने अपराधबोध के बादलों को छांट सकते हो और जीवन में शांति और प्रकाश ला सकते हो। याद रखो, भगवान सदैव तुम्हारे साथ हैं, बस मन को उनके चरणों में लगाओ। तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है।
शुभकामनाएँ और प्रेम सहित। 🌷

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