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अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

अगर मुझे अपने माता-पिता या परिवार के साथ अपने व्यवहार पर पछतावा हो तो क्या करूँ?

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  • अगर मुझे अपने माता-पिता या परिवार के साथ अपने व्यवहार पर पछतावा हो तो क्या करूँ?

फिर से प्रेम और समझ की ओर बढ़ें: परिवार के साथ अपने व्यवहार का पछतावा
साधक, जब हम अपने माता-पिता या परिवार के प्रति किए गए व्यवहार पर पछतावा महसूस करते हैं, तो यह हमारी आत्मा की गहराई से उठी हुई एक पुकार होती है — सुधार की, प्रेम की, और पुनः जुड़ने की। यह भावना खुद में एक उपहार है, जो हमें बेहतर इंसान बनने का अवसर देती है। चलिए, इस उलझन को भगवद गीता के अमूल्य ज्ञान से समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(भगवद गीता 2.47)
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण हमें समझाते हैं कि हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, फल की चिंता किए बिना। भले ही हमने अतीत में कुछ गलत किया हो, पछतावा महसूस करना ठीक है, लेकिन उससे घबराकर या खुद को दोष देकर आगे बढ़ना बंद नहीं करना चाहिए। कर्म करते रहो, सुधार की ओर बढ़ो, और अपने मन को शांति दो।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वीकारो अपने कर्मों को — पछतावा एक चेतावनी है, जो हमें हमारी गलती स्वीकार करने और सुधार की राह पकड़ने के लिए प्रेरित करता है।
  2. अतीत में फंसे नहीं रहो — जो बीत गया उसे बदलना संभव नहीं, लेकिन वर्तमान में सही कर्म करना तुम्हारे हाथ में है।
  3. संसार का नियम है कर्म और फल — कर्म करो, फल की चिंता छोड़ो। परिणाम भगवान पर छोड़ दो।
  4. प्रेम और क्षमा से व्यवहार करो — अपने परिवार से संवाद करो, अपने मन की बात प्रेमपूर्ण और विनम्रता से कहो।
  5. स्वयं को भी क्षमा दो — खुद को दोषी मानकर न डूबो, हर इंसान गलतियां करता है, महत्वपूर्ण है उनसे सीखना।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कह रहा होगा — "क्यों मैंने ऐसा किया?", "क्या मैं उन्हें माफ़ करवा पाऊंगा?", "क्या वे मुझे फिर से वैसे ही स्वीकार करेंगे?" ये सवाल स्वाभाविक हैं। लेकिन याद रखो, मन की ये हलचल तुम्हें कमजोर नहीं बनाती, बल्कि तुम्हारे भीतर सुधार की चाह को जगाती है। इसे दबाओ मत, समझो, और धीरे-धीरे प्रेम और समझ का पुल बनाओ।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, मैं जानता हूँ तुम्हारे मन की पीड़ा को। परन्तु याद रखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। अपने कर्मों को स्वीकारो, उनसे सीखो और प्रेम के साथ पुनः जुड़ो। अतीत की गलती तुम्हें परिभाषित नहीं करती, बल्कि तुम्हारा वर्तमान और भविष्य करता है। अपने हृदय को खोलो, और मुझ पर विश्वास रखो। मैं तुम्हें हर कदम पर सहारा दूंगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक विद्यार्थी ने अपने गुरु से कहा, "मैंने अपने माता-पिता के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया, अब वे मुझसे दूर हो गए हैं। मैं क्या करूँ?" गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, "क्या तुमने अपने पौधे को कभी अनदेखा किया है? जब वह मुरझाने लगे, तो क्या तुमने उसे छोड़ दिया? नहीं, तुमने उसे पानी दिया, प्यार दिया, और देखभाल की। ठीक वैसे ही, अपने परिवार के साथ भी प्यार और धैर्य से पुनः जुड़ो। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने माता-पिता या परिवार के किसी सदस्य से एक सच्चा, दिल से माफी मांगने वाला संदेश भेजो। चाहे वह फोन हो, पत्र हो या आमने-सामने बातचीत — बस अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करो। यह पहला कदम होगा प्रेम और समझ की ओर।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अतीत के कर्मों को स्वीकार कर सकता हूँ बिना खुद को दोषी ठहराए?
  • मैं अपने परिवार के साथ संबंध सुधारने के लिए आज क्या कर सकता हूँ?

🌼 प्रेम और क्षमा की यात्रा जारी है
साधक, तुम्हारा पछतावा तुम्हें कमजोर नहीं करता, बल्कि तुम्हें बेहतर बनाने का एक अवसर है। भगवान श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में अपने कर्मों को सुधारो, प्रेम से अपने परिवार के साथ जुड़ो, और अपने मन को शांति दो। याद रखो, हर दिन एक नया अवसर है — एक नया आरंभ। तुम अकेले नहीं हो, मैं और गीता तुम्हारे साथ हैं।
शुभकामनाएँ।

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