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दूसरों की सफलता को सच्ची खुशी के साथ कैसे मनाएं?

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दूसरों की सफलता में सच्ची खुशी कैसे पाएं — एक आत्मीय संवाद
साधक, जब हम अपने आस-पास के लोगों की सफलता देखते हैं, तो कभी-कभी मन में ईर्ष्या या असहजता का भाव उठता है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि हमारा मन स्वाभाविक रूप से अपने लिए बेहतर चाहता है। परंतु क्या हम उस खुशी को महसूस कर सकते हैं जो दूसरों की सफलता में छिपी होती है? आइए, गीता के अमृतमय शब्दों से इस उलझन को सुलझाएं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे॥"

(भगवद्गीता ९.३४)
हिंदी अनुवाद:
"हे अर्जुन, मुझमें मन लगाओ, मुझमें भक्त बनो, मुझमें यज्ञ करो, मुझको प्रणाम करो। मैं तुम्हारे पास ही आऊंगा। यह सत्य जानो, तुम मेरे प्रिय हो।"
सरल व्याख्या:
जब हम अपने मन को परमात्मा में लगाते हैं, तो हम अपने अहंकार और तुलना की जंजीरों से मुक्त हो जाते हैं। तब हम दूसरों की सफलता में भी सच्ची खुशी महसूस कर पाते हैं, क्योंकि हम सब एक ही दिव्य स्रोत से जुड़े होते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं की पहचान परमात्मा में करें: जब हम अपनी असली पहचान को आत्मा के रूप में समझते हैं, तब दूसरों की सफलता हमें कम नहीं लगती, बल्कि प्रेरणा देती है।
  2. काम और फल में आसक्ति त्यागें: सफलता या असफलता के फल में अति लगाव मन को बेचैन करता है। फल की चिंता छोड़कर कर्म में लगने से मन शांत रहता है।
  3. सर्वे भवन्तु सुखिनः — सबकी खुशी में खुश रहें: गीता हमें सिखाती है कि सभी जीवों की भलाई और खुशहाली हमारी भी है। दूसरों की खुशी में भागीदार बनें।
  4. अहंकार को समझो और त्यागो: तुलना और ईर्ष्या अहंकार की उपज हैं। जब अहंकार कम होगा, तब दूसरों की सफलता में खुशी सहज होगी।
  5. धैर्य और समत्व बनाए रखें: सफलता और असफलता दोनों क्षणिक हैं। समत्व की भावना से मन स्थिर रहता है और खुशी स्थायी होती है।

🌊 मन की हलचल

"क्यों मैं उनके जैसा नहीं हूँ? क्या मैं कम हूँ? क्या मेरी मेहनत बेकार जा रही है?"
ऐसे विचार आते हैं, और मन बेचैन हो उठता है। यह स्वाभाविक है, लेकिन याद रखो, हर किसी का सफर अलग होता है। दूसरों की चमक देख कर अपनी रौशनी को कम मत समझो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, देखो, मैं सबमें हूँ। जब तुम मेरी उपस्थिति को समझोगे, तब दूसरों की सफलता में भी मेरा आशीर्वाद देख पाओगे। उनकी खुशी तुम्हारी खुशी है। अपने मन को मेरे नाम से शुद्ध करो, और देखो कैसे ईर्ष्या की जगह प्रेम और आनंद भर जाता है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार दो दोस्त एक ही नदी के किनारे खड़े थे। एक ने नदी के पार एक सुनहरा फूल देखा और जलते मन से पूछा, "मैं उस फूल को कैसे पा सकता हूँ?" दूसरे ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम अपनी नजरें नदी के पार ही क्यों लगाते हो? क्या तुमने अपने पास की सुंदरता देखी?"
इस तरह, जब हम दूसरों की सफलता को देखकर ईर्ष्या करते हैं, तो हम अपनी ही क्षमताओं और खुशियों को अनदेखा कर देते हैं।

✨ आज का एक कदम

आज, जब भी तुम किसी की सफलता देखो, सचेत होकर मन में कहो — "उनकी खुशी में मेरी खुशी है।" इसे दिल से महसूस करो, और देखो कैसे तुम्हारा मन हल्का और प्रसन्न हो जाता है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपनी तुलना की आदत को पहचान पा रहा हूँ?
  • क्या मैं दूसरों की सफलता में सच्ची खुशी महसूस कर सकता हूँ?
  • मुझे इस क्षण में अपने अहंकार को कैसे कम करना है?

चलो खुशी के उस सागर में गोते लगाएं जहाँ सबका स्वागत है
साधक, याद रखो, दूसरों की सफलता में खुश होना तुम्हारे मन की विशालता और प्रेम की निशानी है। यह अभ्यास है, और हर दिन एक नया अवसर है इसे अपनाने का। मैं तुम्हारे साथ हूँ, और तुम्हारा मन हमेशा प्रेम और शांति से भरा रहे — यही मेरी कामना है।
जय श्री कृष्ण! 🌸

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