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गीता हमें ईर्ष्या और द्वेष से बचने के लिए कैसे मार्गदर्शन करती है?

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  • गीता हमें ईर्ष्या और द्वेष से बचने के लिए कैसे मार्गदर्शन करती है?

ईर्ष्या और द्वेष के सागर में एक दीपक की लौ
साधक, जब मन में ईर्ष्या और द्वेष की लहरें उठती हैं, तब आत्मा की शांति खो जाती है। यह भाव हमें भीतर से कमजोर कर देते हैं, और हमारा जीवन विषम हो जाता है। परन्तु भगवद गीता में ऐसे अमृतमयी उपदेश हैं, जो हमें इन विषैले भावों से मुक्त कर, प्रेम और समरसता की ओर ले जाते हैं। आइए, इस मार्ग पर चलें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 16, श्लोक 21
"द्वेष्टि तु तद्भूतानां सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥"

हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति जीवों से द्वेष करता है, उससे आसक्ति उत्पन्न होती है। आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है, और कामना से क्रोध जन्म लेता है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि द्वेष की शुरुआत ही मन में नकारात्मकता की जड़ है। जब हम किसी से द्वेष करते हैं, तो हमारा मन उससे जुड़ जाता है, फिर कामना (इच्छा) और अंततः क्रोध जन्म लेता है। यह एक नकारात्मक चक्र है जो हमारी शांति को भंग करता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं की पहचान करो — गीता कहती है कि हम आत्मा हैं, न कि शरीर या मन। शरीर और मन की तुलना में आत्मा शाश्वत और निर्मल है। जब हम यही समझेंगे, तो दूसरों की सफलता या असफलता से ईर्ष्या नहीं होगी।
  2. कर्म योग अपनाओ — फल की इच्छा के बिना कर्म करो। जब हम अपने कर्म में लीन रहेंगे, तो दूसरों की उपलब्धियों से हमें जलन नहीं होगी।
  3. समान दृष्टि रखो — गीता में समान दृष्टि (समदृष्टि) का महत्व बताया गया है, जहाँ सुख-दुख, लाभ-हानि में समान भाव होता है।
  4. मन को नियंत्रित करो — मन की वृत्ति में द्वेष और ईर्ष्या को बढ़ावा मत दो। ध्यान और समाधि से मन को शुद्ध करो।
  5. परमात्मा में विश्वास रखो — हर जीव में परमात्मा का अंश है। जब हम सबको एक ही नजर से देखेंगे, तो द्वेष की भावना मिट जाएगी।

🌊 मन की हलचल

शिष्य, तुम्हारे मन में यह आवाज़ आ रही होगी — "मैं क्यों पीछे रह गया? वह क्यों सफल हो गया?" या "मुझे भी वैसा क्यों नहीं मिला?" ये विचार स्वाभाविक हैं, पर इन्हें पहचानो और स्वीकार करो। परन्तु इन्हें अपने मन के स्वामी मत बनने दो। याद रखो, हर किसी का मार्ग अलग होता है, और तुम्हारा भी अपना विशिष्ट उद्देश्य है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, जब तुम दूसरों की सफलता देखकर ईर्ष्या करते हो, तो समझो कि तुम अपने आप को ही चोट पहुँचा रहे हो। मैं तुम्हें यह कहता हूँ — अपने कर्म पर ध्यान दो, फल की चिंता छोड़ दो। जो तुम्हारा है, वह तुम्हें मिलेगा। और जो नहीं है, उसके लिए व्याकुल मत हो। अपने मन को प्रेम और करुणा से भर दो, तब तुम्हारा मन प्रसन्न होगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार दो बगीचे थे — एक में सुंदर फूल खिले थे, दूसरे में थोड़े कम। जो बगीचा अपने फूलों की देखभाल करता रहा, वह खुश था। पर जो बगीचा दूसरे के फूल देखकर जलता रहा, वह सूखने लगा। जैसे बगीचा अपनी देखभाल में लगा, वैसे ही हमें भी अपने कर्म और मन की देखभाल करनी चाहिए, न कि दूसरों की तुलना में उलझना चाहिए।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में आई ईर्ष्या या द्वेष की भावना को पहचानो, और उसे एक पेड़ की तरह सोचो — क्या तुम उसे पानी देना चाहते हो? नहीं। तो उसे अपने मन से निकाल दो। इसके लिए गहरी सांस लो, और कहो — "मैं प्रेम और शांति को अपनाता हूँ।"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन में ईर्ष्या और द्वेष को जन्म देने वाले कारण को समझ पा रहा हूँ?
  • मैं किस तरह अपने मन को प्रेम और करुणा से भर सकता हूँ?

शांति की ओर एक कदम
साधक, याद रखो, ईर्ष्या और द्वेष तुम्हारे मन के बादल हैं, जो सूरज की किरणों को ढक लेते हैं। पर सूरज सदैव चमकता है। अपने भीतर के सूरज को जगाओ, और प्रेम, समता तथा करुणा की राह पर चलो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, इस यात्रा में हर कदम पर।
शुभकामनाएँ। 🌸🙏

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