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क्या गीता अहंकार को स्थायी रूप से समाप्त करने का तरीका प्रदान करती है?

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  • क्या गीता अहंकार को स्थायी रूप से समाप्त करने का तरीका प्रदान करती है?

अहंकार की जंजीरों से मुक्ति: गीता का अनमोल उपहार
प्रिय शिष्य, यह प्रश्न तुम्हारे भीतर की गहराई को छूता है। अहंकार, वह सूक्ष्म आग है जो कभी-कभी हमारे मन को जलाती है, परंतु चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। भगवद गीता ने हजारों वर्षों से उस आग को बुझाने का रास्ता बताया है। आइए, मिलकर उस मार्ग पर चलें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 16, श्लोक 3
(असुरीय सम्पदः)

अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं तथा तथा।
मदं मदात्मानमाहं मां चाभिजाति पाण्डव॥

हिंदी अनुवाद:
हे पाण्डु पुत्र! अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और मद (घमंड) ये सब असुरी प्रवृत्तियाँ हैं जो मनुष्य को विनाश की ओर ले जाती हैं।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें समझाता है कि अहंकार और उससे जुड़ी भावनाएँ जैसे क्रोध, घमंड आदि हमारे भीतर के नकारात्मक बीज हैं। यदि इन्हें पोषित किया जाए, तो ये हमें अंधकार की ओर ले जाते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं की पहचान से अहंकार मिटता है: गीता कहती है कि हम केवल शरीर या मन नहीं, बल्कि आत्मा हैं, जो नित्य और अजर है। जब हम अपने वास्तविक स्वरूप को समझते हैं, तो अहंकार अपने आप कम हो जाता है।
  2. कर्मयोग अपनाओ: फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करो। जब कर्म निःस्वार्थ हो जाता है, तब अहंकार की जड़ कमजोर पड़ती है।
  3. समान दृष्टि विकसित करो: सब जीवों में एक ईश्वर की आत्मा देखो। जब हम सभी को बराबरी का दर्जा देते हैं, तो ईर्ष्या और अहंकार का स्थान नहीं रह जाता।
  4. मन को संयमित करो: क्रोध और अहंकार मन के विकार हैं। ध्यान और योग से मन को शांत रखो, तब अहंकार का वास कम होता है।
  5. भगवान की भक्ति और शरणागत होना: ईश्वर की शरण में जाने से अहंकार धीरे-धीरे समाप्त होता है, क्योंकि भक्ति में विनम्रता आती है।

🌊 मन की हलचल

तुम महसूस करते हो कि अहंकार तुम्हें बार-बार घेर लेता है, जैसे कोई अनचाहा मेहमान। तुम्हारे अंदर सवाल उठते हैं — "क्या मैं दूसरों से कमतर हूँ?", "क्या मेरी प्रतिष्ठा बचानी है?" यह स्वाभाविक है, क्योंकि अहंकार हमारे अस्तित्व की रक्षा का एक तरीका है। पर क्या यह सच में तुम्हें खुश करता है? या बस तुम्हारा मन बेचैन करता है?

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, जब भी अहंकार तुम्हारे मन को घेरने लगे, याद रखो मैं तुम्हारे भीतर हूँ। मुझमें आस्था रखो, अपने कर्मों को समर्पित करो और अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानो। अहंकार की जंजीरों को तोड़ने का पहला कदम है स्वयं को जानना। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र था जो अपनी सफलता पर बहुत गर्व करता था। वह दूसरों को नीचा दिखाने लगा। पर उसके गुरु ने उसे एक मृदु पात्र दिया जिसमें थोड़ा सा पानी था। गुरु ने कहा, "इस पात्र को कभी मत भरना।" छात्र ने सोचा यह आसान है। पर जब उसने अहंकार से भरे विचारों को पात्र में डालना शुरू किया, तो पात्र जल्दी भर गया और पानी बाहर बहने लगा। गुरु ने समझाया, "जैसे पात्र में ज्यादा पानी भरने से वह छलक जाता है, वैसे ही अहंकार बढ़ने से मन अस्थिर हो जाता है। संतुलन बनाए रखो।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में उठने वाले हर अहंकार के विचार को पहचानो। जब भी वह आए, उसे रोकने की कोशिश मत करो, बस उसे देखो और कहो — "मैं वह नहीं हूँ। मैं आत्मा हूँ।" यह अभ्यास तुम्हें धीरे-धीरे अहंकार से मुक्त करेगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने भीतर के वास्तविक स्वरूप को पहचान पा रहा हूँ या केवल बाहरी पहचान में उलझा हूँ?
  • क्या मेरा अहंकार मेरी खुशी और शांति का रास्ता बंद कर रहा है?

🌼 अहंकार से आज़ादी की ओर पहला कदम
प्रिय, अहंकार के जाल से बाहर निकलना एक यात्रा है, न कि एक दिन का काम। गीता तुम्हें वह दीपक देती है जो अंधकार में मार्ग दिखाता है। चलो, उस प्रकाश की ओर बढ़ें, क्योंकि तुम्हारे भीतर की आत्मा निश्चय ही अजर और अमर है।
शुभकामनाएँ और स्नेह के साथ,
तुम्हारा आध्यात्मिक मार्गदर्शक

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