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उन लोगों से कैसे अलग हुआ जाए जो बार-बार मुझे चोट पहुँचाते हैं?

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  • उन लोगों से कैसे अलग हुआ जाए जो बार-बार मुझे चोट पहुँचाते हैं?

खुद को बचाना भी ज़रूरी है — जब ज़ख्म बार-बार होते हैं
साधक, मैं समझ सकता हूँ कि बार-बार चोट पहुँचाने वाले लोगों से दूरी बनाना कितना कठिन और दर्दनाक होता है। दिल करता है कि हम उन्हें माफ़ कर दें, लेकिन साथ ही खुद को बचाना भी ज़रूरी है। यह उलझन स्वाभाविक है, और तुम्हारा यह सवाल तुम्हारी आत्मा की सुरक्षा की आवाज़ है। चलो, गीता के प्रकाश में इस राह को समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 16, श्लोक 23:
संसयात् मा कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च।
कर्तव्यं नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायसेऽधिकम्॥

“संदेह में मत पड़ो कि कर्म करना चाहिए या नहीं। अपने कर्मों से, उनके फल से और आसक्ति से मुक्त होकर, अपने निर्धारित कर्म को करो। कर्म करना ही तुम्हारे लिए श्रेष्ठ है।”
सरल व्याख्या:
जब तुम्हें अपने कर्मों को लेकर संदेह हो, तो याद रखो कि कर्म करना ही श्रेष्ठ है। दूसरों से चोट लगना दुखद है, पर अपने रास्ते पर चलना तुम्हारा धर्म है। अपने कर्मों से जुड़ा रहो, पर फल की चिंता छोड़ दो।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • स्वयं का सम्मान सर्वोपरि: दूसरों की चोट से बचने के लिए खुद की सीमाएं निर्धारित करना आवश्यक है।
  • माफ़ करना, पर खुद को कमजोर न बनाना: माफ़ करना दिल को हल्का करता है, पर इसका मतलब यह नहीं कि तुम बार-बार चोट सहो।
  • संबंधों में संतुलन: जो लोग बार-बार तुम्हें चोट पहुँचाते हैं, उनसे दूरी बनाना एक आत्मरक्षा है, न कि क्रूरता।
  • अहंकार से ऊपर उठो: दूसरों की नकारात्मकता तुम्हारे अंदर की शांति को न छीन पाए।
  • कर्मयोग का पालन: अपने कर्मों पर ध्यान दो, दूसरों के व्यवहार पर नहीं।

🌊 मन की हलचल

"मैं उन्हें माफ़ करना चाहता हूँ, पर फिर भी वे मुझे बार-बार चोट पहुँचाते हैं। क्या मैं गलत हूँ कि खुद को दूर रखता हूँ? क्या मैं कठोर बन रहा हूँ? मुझे भी तो प्यार और सम्मान चाहिए। मैं थक चुका हूँ बार-बार टूटने से।"
यह भावना पूरी तरह मानवीय है। यह स्वीकारना कि तुम्हें भी अपनी रक्षा करनी है, तुम्हारी कमजोरी नहीं, बल्कि समझदारी है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, याद रखो कि माफ़ करना तुम्हारा अधिकार है, पर खुद को चोट पहुँचने से बचाना तुम्हारा कर्तव्य। जब कोई तुम्हें बार-बार चोट पहुँचाए, तो चुप्पी और सहनशीलता की सीमा होती है। अपने मन को स्थिर रखो, पर अपने हृदय को भी सुरक्षित रखना सीखो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारे कर्मों में तुम्हें शक्ति दूंगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक बगीचे में एक सुंदर फूल था। वह बार-बार कीड़ों के काटने से पीड़ित होता था। फूल ने सोचा, "क्या मैं इन कीड़ों को माफ़ कर दूं और उन्हें अपने पास आने दूं?" पर उसने यह भी जाना कि यदि उसने खुद को बचाया नहीं, तो वह पूरी तरह मुरझा जाएगा। इसलिए उसने अपनी पत्तियों को मजबूत किया और कीड़ों को दूर भगाया। फूल ने माफ़ किया, पर खुद को भी सुरक्षित रखा।
तुम भी उस फूल की तरह हो — माफ़ करना है, पर खुद को बचाना भी है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने दिल की सीमा को पहचानो। एक ऐसा कदम उठाओ जहाँ तुम अपने लिए “नहीं” कहना सीखो। किसी ऐसे रिश्ते या परिस्थिति से थोड़ा दूरी बनाओ, जो तुम्हें बार-बार चोट पहुँचाती हो। यह स्वार्थी नहीं, बल्कि स्व-प्रेम है।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने लिए स्वस्थ सीमाएं बना पा रहा हूँ?
  • माफ़ करने और खुद को बचाने के बीच मेरा संतुलन कैसा है?

अपनी आत्मा की रक्षा करो — तुम अकेले नहीं हो
प्रिय, इस राह में तुम्हें संपूर्ण प्रेम, समझ और शक्ति मिले। याद रखो, खुद को चोट से बचाना कोई पाप नहीं, बल्कि जीवन की कला है। तुम्हारा मन और आत्मा दोनों सुरक्षित और मुक्त रहें, यही मेरी प्रार्थना है।
तुम्हारा यह कदम तुम्हें शांति, सम्मान और प्रेम की ओर ले जाएगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शांति और प्रेम के साथ। 🙏🌸

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