Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

क्रिष्ण का क्रोध और द्वेष छोड़ने पर क्या उपदेश है?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • क्रिष्ण का क्रोध और द्वेष छोड़ने पर क्या उपदेश है?

क्रोध और द्वेष से मुक्त हो, शांति की ओर बढ़ो
प्रिय शिष्य, जीवन में क्रोध और द्वेष की आग अक्सर हमारे मन को जलाती है, हमें अशांत करती है और हमारे संबंधों को बिगाड़ती है। यह समझना जरूरी है कि ये भाव हमारे भीतर के स्नेह और शांति के मार्ग में बाधा हैं। तुम अकेले नहीं हो इस लड़ाई में। भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने इस विषय पर जो अमूल्य ज्ञान दिया है, वह तुम्हारे मन के तूफान को शान्त कर सकता है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 62-63
ध्याय 2, श्लोक 62-63
संस्कृत:
ध्यानात् विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते |
सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || 62 ||
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः |
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || 63 ||
हिंदी अनुवाद:
जब कोई व्यक्ति विषयों का ध्यान करता है, तो उसमें आसक्ति उत्पन्न होती है। आसक्ति से कामना जन्म लेती है, और कामना से क्रोध उत्पन्न होता है।
क्रोध से भ्रम की स्थिति होती है, भ्रम से स्मृति का नाश होता है, और स्मृति के नष्ट होने से बुद्धि का विनाश हो जाता है। बुद्धि के नाश से वह व्यक्ति नष्ट हो जाता है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि क्रोध कैसे मनुष्य के जीवन को प्रभावित करता है। जब हम किसी विषय या व्यक्ति से जुड़ाव बढ़ाते हैं, तो उसमें इच्छा पैदा होती है। जब इच्छा पूरी नहीं होती, तो क्रोध जन्म लेता है। क्रोध हमारे मानसिक संतुलन को बिगाड़ देता है और अंततः बुद्धि को कमजोर कर देता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. आसक्ति से दूरी बनाओ: जब हम चीजों या लोगों से अत्यधिक जुड़ाव छोड़ देते हैं, तो क्रोध की जड़ कमजोर हो जाती है।
  2. ध्यान और विवेक बढ़ाओ: अपनी बुद्धि को मजबूत करो, जिससे क्रोध और द्वेष के भावों को समझ सको और नियंत्रित कर सको।
  3. सर्वत्र समभाव रखो: सभी के प्रति समान दृष्टि और करुणा रखो, इससे द्वेष का स्थान प्रेम ले लेगा।
  4. कर्मयोग अपनाओ: अपने कर्मों में लगन रखो, फल की चिंता छोड़ दो, इससे मन की उलझनें कम होंगी।
  5. स्वयं को पहचानो: आत्मा अजर-अमर है, क्रोध और द्वेष तो केवल अस्थायी भाव हैं, इन्हें पहचान कर छोड़ दो।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारे मन में यह सवाल उठता होगा — "कैसे मैं इतना क्रोध और द्वेष छोड़ सकूं जो वर्षों से जमा है? क्या मैं कमजोर तो नहीं पड़ जाऊंगा?" यह बिलकुल स्वाभाविक है। पर याद रखो, क्रोध छोड़ना कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताकत है। यह तुम्हारे मन को शांति और स्पष्टता की ओर ले जाएगा।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, क्रोध और द्वेष को अपने मन के द्वार से बाहर निकाल दो। वे केवल तुम्हारे सुख और शांति के शत्रु हैं। उनके बदले प्रेम और क्षमा के बीज बोओ। जब तुम अपने मन को शुद्ध करोगे, तब तुम्हें सच्ची शक्ति और आनंद मिलेगा। याद रखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र था जो परीक्षा में फेल हो गया। वह अपने शिक्षक से बहुत क्रोधित था और उसे दोषी मानता था। परंतु एक दिन उसने सोचा, "क्या मेरा क्रोध मुझे आगे बढ़ने में मदद करेगा?" उसने अपने क्रोध को छोड़कर मेहनत करनी शुरू की। अगले वर्ष उसने सफलता पाई। यह दिखाता है कि क्रोध और द्वेष छोड़कर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में उठने वाले छोटे-छोटे क्रोध और द्वेष के भावों को पहचानो। गहरी सांस लेकर उन्हें जाने दो। कोशिश करो कि एक छोटी सी परिस्थिति में भी प्रेम और सहानुभूति का भाव अपनाओ।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने क्रोध के पीछे छिपे असली कारण को समझ पा रहा हूँ?
  • क्या मैं क्षमा करने के लिए तैयार हूँ, ताकि मन का बोझ हल्का हो सके?

शांति की ओर पहला कदम तुम्हारा है
प्रिय शिष्य, क्रोध और द्वेष छोड़ना आसान नहीं, परंतु यह तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा उपहार होगा। कृष्ण का उपदेश तुम्हें हर पल याद दिलाता है कि तुम अकेले नहीं हो। प्रेम, करुणा और क्षमा के साथ चलो, और देखो कैसे तुम्हारा मन शांत और मुक्त होता है। मैं तुम्हारे साथ हूँ, इस यात्रा में।
शुभकामनाएँ! 🌸

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers