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दर्द को “मैं” या “मेरा” के रूप में पहचानना कैसे बंद करें?

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  • दर्द को “मैं” या “मेरा” के रूप में पहचानना कैसे बंद करें?

दर्द से “मैं” और “मेरा” का बंधन तोड़ना — एक नई शुरुआत
साधक, जब हम अपने दर्द को अपने अस्तित्व का हिस्सा मान लेते हैं, तब वह हमारे मन को जकड़ लेता है। यह “मैं” और “मेरा” की पहचान हमें अंदर से कमजोर और असहाय बनाती है। लेकिन याद रखो, दर्द तुम्हारा दुश्मन नहीं, बल्कि तुम्हारे अनुभवों का एक हिस्सा है। उसे अलग पहचानो, उससे स्वयं को अलग समझो। तुम अकेले नहीं हो — यह यात्रा हर मानव के जीवन का हिस्सा है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनःऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।

हिंदी अनुवाद:
हे कांत, ये सुख-दुख, गर्मी-सर्दी के जो अनुभव हैं, वे केवल इंद्रियों के संपर्क से उत्पन्न होते हैं। ये अस्थायी हैं, आते-जाते रहते हैं। इसलिए हे भारतवंशी, तुम उनका धैर्यपूर्वक सामना करो।
सरल व्याख्या:
दर्द और सुख दोनों ही हमारे बाहर की चीजें हैं, जो हमारे शरीर और मन के संपर्क से उत्पन्न होते हैं। वे स्थायी नहीं हैं, वे आते हैं और जाते हैं। जब हम उन्हें “मैं” या “मेरा” समझना छोड़ देते हैं, तब उनका भार कम हो जाता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. अहंकार से दूरी बनाओ: दर्द को अपने “मैं” का हिस्सा समझना अहंकार की जड़ है। अहंकार से ऊपर उठकर देखो, तुम उससे अलग हो।
  2. स्थिरता और धैर्य का अभ्यास: जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं, धैर्य रखो, वे स्थायी नहीं।
  3. स्वयं को केवल शरीर या मन नहीं समझो: तुम आत्मा हो, जो न जन्मती है न मरती है। दर्द तो शरीर और मन का अनुभव है, आत्मा उससे परे है।
  4. विवेक बुद्धि का विकास करो: अनुभवों को पहचानो, पर उन्हें अपने अस्तित्व से जोड़ो मत।
  5. समर्पण और ध्यान: अपने मन को कृष्ण की ओर केंद्रित करो, जो तुम्हें इस भ्रम से मुक्त करता है।

🌊 मन की हलचल

तुम कह रहे हो, “यह दर्द मेरा है, मैं दर्द में फंसा हूँ।” यह स्वाभाविक है, क्योंकि जब तक हम अनुभवों से जुड़ते हैं, वे हमें घेर लेते हैं। पर जब तुम कहोगे, “यह दर्द है, मैं उससे अलग हूँ,” तब तुम्हें एक नई आज़ादी मिलेगी। दर्द को स्वीकारो, पर उसे अपने अस्तित्व का आधार मत बनाओ।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“हे प्रिय, तेरा दुःख तेरा स्वभाव नहीं। तेरा असली स्वरूप शाश्वत और अमर है। जब तू दर्द को ‘मैं’ या ‘मेरा’ नहीं समझेगा, तब मैं तुझे उस शाश्वत शांति की ओर ले जाऊंगा, जो सभी दुःखों से परे है।”

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नदी के किनारे एक बच्चा खेल रहा था। नदी की ठंडी धार उसे छूती थी, तो वह चिल्लाने लगा कि पानी ठंडा है। लेकिन नदी ने उसे कभी अपना हिस्सा नहीं माना, वह बस बहती रही। उसी तरह, तुम्हारा दर्द भी एक बहती हुई नदी की तरह है — वह तुम्हारा हिस्सा नहीं, सिर्फ एक अनुभव है। जब तुम उसे अपने से अलग समझोगे, तो वह तुम्हें परेशान नहीं करेगा।

✨ आज का एक कदम

आज जब भी दर्द महसूस हो, उसे “यह मेरा दर्द है” कहने की बजाय “यह एक अनुभव है जो मेरे अंदर से गुजर रहा है” कहो। इसे दो-तीन बार मन में दोहराओ और देखो तुम्हारे मन में कैसा बदलाव आता है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने दर्द को अपने अस्तित्व से अलग कर सकता हूँ?
  • क्या मैं अपने आप को केवल एक अनुभवों का संग्रह मानने के बजाय उससे परे देख सकता हूँ?

दर्द की सीमा से परे — शांति की ओर पहला कदम
प्रिय, यह समझना कि दर्द तुम्हारा “मैं” नहीं है, तुम्हें मुक्त कर देगा। उस स्वतंत्रता में तुम्हारा असली अस्तित्व खिल उठेगा। याद रखो, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारे भीतर की उस शाश्वत आत्मा की आवाज़ सुनो। चलो, आज से इस नई समझ के साथ जीवन को देखना शुरू करें।

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