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गीता किस प्रकार के भोजन और जीवनशैली की सिफारिश करती है?

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जीवन का पोषण: गीता के अनुसार शुद्ध भोजन और जीवनशैली
साधक, जीवन की राह में जब हम अपने शरीर और मन की देखभाल के बारे में सोचते हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि हमारा आहार और जीवनशैली हमारे समग्र स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति में कैसे योगदान देते हैं। भगवद गीता में इस विषय पर जो ज्ञान दिया गया है, वह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 17, श्लोक 8-10
(गीता अध्याय 17, श्लोक 8-10)

"आमाषे तु कौन्तेय सात्त्विकं प्रकाशकम्।
उदासीनं च सर्वं तृष्णारसोपमापहम्॥"

"रसं सात्त्विकं सुखप्रदं हितकाम्यया।
रसायनं बलवर्धनं मनसां मदमेधया॥"

"मधुरं रसपाकेऽम्लं कटुं लवणातपित्तकृत्।
आमाषं तिक्तं च त्रिविधं प्रकृतिसंनिधानम्॥"

हिंदी अनुवाद:

हे अर्जुन! जो भोजन सात्त्विक है, वह प्रकाशमान, शुद्ध और तृष्णा को दूर करने वाला होता है। सात्त्विक भोजन सुखदायक, हितकारी, मन और बुद्धि को बढ़ाने वाला होता है।
मधुर, अम्ल, कटु, लवण आदि स्वादों में जो भोजन आता है, वह त्रिविध प्रकृति के अनुसार होता है — सात्त्विक, राजसिक या तामसिक।

सरल व्याख्या:

गीता बताती है कि भोजन का स्वभाव तीन प्रकार का होता है — सात्त्विक, राजसिक और तामसिक। सात्त्विक भोजन वह है जो शरीर और मन को शुद्ध, स्वस्थ और प्रसन्न बनाता है। यह भोजन हमें ऊर्जा और मानसिक शांति प्रदान करता है। राजसिक भोजन जो अत्यधिक मसालेदार, तीखा या भारी होता है, वह उत्तेजना और बेचैनी बढ़ाता है। तामसिक भोजन जो अधपका, बासी या अस्वच्छ होता है, वह आलस्य और अस्वस्थता को बढ़ावा देता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. सात्त्विक जीवनशैली अपनाएं: सरल, प्राकृतिक और संतुलित भोजन लें जो शरीर और मन को पोषण दे।
  2. शरीर को मंदिर समझें: शरीर की देखभाल करें, क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और आत्मा का वास होता है।
  3. मदिरा, मांस, और अधिक तैलीय भोजन से परहेज करें: ये राजसिक और तामसिक गुण बढ़ाते हैं, जिससे बेचैनी और अस्वस्थता होती है।
  4. मन और आत्मा की शुद्धि के लिए संयम आवश्यक: भोजन के साथ-साथ जीवनशैली में भी संयम और अनुशासन रखें।
  5. प्रकृति के अनुरूप जीवन जिएं: ताजे, सरल और प्राकृतिक भोजन से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।

🌊 मन की हलचल

"मैं जानता हूँ कि बाजार में इतने विकल्प हैं, जो स्वादिष्ट तो लगते हैं पर क्या वे मेरे लिए सही हैं? कभी-कभी तो खाने के बाद भी मन बेचैन रहता है। मैं चाहता हूँ कि मेरा शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहें, पर संतुलन कैसे बनाऊं? क्या संयम का मतलब है कि मैं अपने सुखों को त्याग दूं?"

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, संयम और संतुलन में ही सच्ची स्वतंत्रता है। जैसे एक संगीतकार अपने वाद्य को सही सुर में बजाता है, वैसे ही तू अपने शरीर और मन को सात्त्विक भोजन और जीवनशैली से संतुलित रख। यह त्याग नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व का सम्मान है। जब तेरा शरीर स्वस्थ होगा, तब तेरा मन भी शांति और प्रसन्नता से भर जाएगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना कर कि एक सुंदर बगीचे में दो पेड़ हैं — एक पेड़ जहां ताज़े, मीठे फल लगते हैं और दूसरा जहाँ केवल कड़वे, अधपके फल। जो फल मीठे और ताजे होते हैं, वे स्वस्थ और खुशहाल जीवन का प्रतीक हैं। उसी प्रकार, हमारा भोजन और जीवनशैली भी हमारे जीवन के पेड़ को फलदायी या कष्टदायी बना सकते हैं। हमें अपने जीवन के पेड़ को सात्त्विक फल देने हैं।

✨ आज का एक कदम

आज से अपने भोजन में एक नया सात्त्विक तत्व जोड़ें — जैसे ताजे फल, हरी सब्जियाँ, या दाल। इसे प्रेम और ध्यान से खाएं, और देखें कि कैसे यह आपके मन को शांति और ऊर्जा देता है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरा भोजन और जीवनशैली मेरे शरीर और मन को शांति और ऊर्जा देती है?
  • मैं किन आदतों को बदलकर अपने जीवन को अधिक सात्त्विक बना सकता हूँ?

जीवन में शांति का पहला स्वाद
साधक, याद रखो कि तुम्हारा शरीर तुम्हारा मंदिर है और तुम्हारा भोजन उसका आचार्य। सात्त्विक भोजन और संतुलित जीवनशैली से ही तुम न केवल स्वस्थ रहोगे, बल्कि अपने अंदर की दिव्यता को भी जागृत कर पाओगे। यह मार्ग आसान नहीं, पर निश्चित रूप से फलदायी है। चलो, आज से इस पथ पर एक कदम बढ़ाएं और अपने जीवन को शुद्धता और आनंद से भर दें।
शुभकामनाएँ! 🌸🙏

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