Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

गीता में पीड़ा की अस्थायी प्रकृति के बारे में क्या कहा गया है?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • गीता में पीड़ा की अस्थायी प्रकृति के बारे में क्या कहा गया है?

पीड़ा की अस्थायी छाया: चलो इस सत्य को समझें
साधक, जब जीवन में पीड़ा आती है, तो वह कभी-कभी हमें ऐसा महसूस कराती है जैसे वह अनंत काल तक रहेगी। परंतु भगवद गीता हमें सिखाती है कि यह पीड़ा अस्थायी है, जैसे बादल आकाश में छा जाते हैं, पर सूरज फिर भी चमकता रहता है। यह समझना ही पहला कदम है उस शांति की ओर, जो हर पीड़ा के पार है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।

हिंदी अनुवाद:
हे कौन्तेय (अर्जुन), ये सुख-दुःख, गर्मी-ठंड जैसे शरीर के लिए क्षणिक स्पर्श हैं, जो आते-जाते रहते हैं; वे अस्थायी हैं। इसलिए हे भारत (अर्जुन), तू उन्हें सहन कर।
सरल व्याख्या:
जीवन में जो सुख और दुःख आते हैं, वे स्थायी नहीं हैं। वे हमारे अनुभवों की तरह आते-जाते रहते हैं। असली बुद्धिमत्ता यह है कि हम उन्हें सहन करें, समझें कि ये क्षणिक हैं और इनसे घबराएं नहीं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. पीड़ा का अस्थायी होना — दुख और कष्ट जीवन के अनिवार्य भाग हैं, पर वे स्थायी नहीं। यह समझना हमें मानसिक स्थिरता देता है।
  2. सहनशीलता का महत्व — पीड़ा को सहन करना ही जीवन की परीक्षा है, जो हमें मजबूत और परिपक्व बनाती है।
  3. स्वयं की पहचान — हमारा आत्मा शाश्वत है, वह न कभी जन्मा है, न कभी मरता है; इसलिए अस्थायी शरीर की पीड़ा हमें डरा नहीं सकती।
  4. संतुलित दृष्टिकोण — सुख-दुख के बीच संतुलन बनाए रखना ही सच्ची बुद्धिमत्ता है।
  5. अहंकार का त्याग — जब हम अपनी असली आत्मा को पहचान लेते हैं, तो शरीर की पीड़ा से हमारा अहंकार प्रभावित नहीं होता।

🌊 मन की हलचल

तुम कह रहे हो, "यह पीड़ा इतनी तीव्र है कि मैं इसे सहन नहीं कर सकता। क्या यह कभी खत्म होगी?" यह सवाल स्वाभाविक है। हमारे मन में अक्सर भय और असहायता की भावना उठती है। पर याद रखो, जैसे अंधकार के बाद प्रकाश आता है, वैसे ही पीड़ा के बाद शांति और आनंद का अनुभव होगा। यह क्षणिक है, और तुम्हारे भीतर वह शक्ति है जो इसे पार कर सकती है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय अर्जुन, समझो कि यह शरीर मात्र एक वाहन है, और जो दर्द तुम महसूस कर रहे हो, वह उस वाहन की कमजोरी मात्र है। आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है। तू केवल अपने कर्म करो, फल की चिंता मत कर। जो आता है उसे सहन कर, क्योंकि यही जीवन का नियम है। मैं तेरे साथ हूँ, तू अकेला नहीं है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र परीक्षा के दौरान बहुत तनाव में था। उसे लग रहा था कि यह परीक्षा उसकी पूरी ज़िंदगी तय कर देगी। लेकिन उसके गुरु ने कहा, "देखो, यह परीक्षा तो एक नदी की तरह है। नदी में पत्थर आते हैं, पानी बहता रहता है। पत्थर तो आते हैं, पर नदी का प्रवाह नहीं रुकता। तुम्हारा जीवन भी ऐसा ही है, यह कठिनाई भी आएगी और चली जाएगी।"
यह उपमा हमें याद दिलाती है कि जीवन की पीड़ा भी नदी के पत्थर की तरह है — अस्थायी और पार कर जाने योग्य।

✨ आज का एक कदम

आज जब भी पीड़ा महसूस हो, कुछ गहरी सांसें लो और मन से कहो — "यह भी गुजर जाएगा। मैं शांति की ओर बढ़ रहा हूँ।" इस छोटे अभ्यास से तुम्हारे मन को स्थिरता मिलेगी।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं समझ पा रहा हूँ कि मेरी पीड़ा अस्थायी है?
  • मैं कैसे अपने भीतर की शाश्वत आत्मा से जुड़ सकता हूँ?

शांति की ओर एक कदम: तुम अकेले नहीं हो
प्रिय, पीड़ा के इस क्षण में याद रखो कि तुम अकेले नहीं हो। यह जीवन का एक हिस्सा है, और इसे सहन करने की शक्ति भी तुम्हारे भीतर ही है। गीता की शिक्षाएं तुम्हारे साथ हैं, और मैं भी। चलो इस यात्रा में साथ चलें, जहाँ हर अंधेरा एक दिन उजाले में बदल जाएगा।

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers