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क्या आध्यात्मिक लोगों में भी अहंकार हो सकता है?

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अहंकार की आड़ में आध्यात्मिकता? – चलो इस भ्रम को समझें
साधक,
तुम्हारा यह प्रश्न बहुत ही गहन और महत्वपूर्ण है। अक्सर हम सोचते हैं कि आध्यात्मिक लोग अहंकार से परे होते हैं, लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? क्या आध्यात्मिकता में अहंकार का कोई स्थान है? यह समझना जरूरी है क्योंकि अहंकार कभी भी छुपा रूप लेकर हमारे भीतर घुस आता है, चाहे हम कितने भी आध्यात्मिक क्यों न हों। आओ, इस सवाल का उत्तर भगवद गीता की अमृत वाणी से खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 13, श्लोक 8
"अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च पार्थ ममाऽभिमानमिति च पार्थ सम्पदामासुरीमिति मे मतिः।"
हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! मेरे अनुसार, अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और ममत्व (अभिमान) ये सभी आसुरी (असत्) सम्पदाएँ हैं।
सरल व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि अहंकार, क्रोध, ममता आदि गुण असली आध्यात्मिक संपदा नहीं हैं, बल्कि वे आसुरी (असत्य) प्रवृत्तियाँ हैं। ये हमारे अंदर की जड़ता और अज्ञानता के कारण जन्म लेती हैं। इसलिए, आध्यात्मिकता का सही मार्ग इनसे ऊपर उठने का है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. अहंकार का रूप बदलता है: आध्यात्मिकता में भी अहंकार हो सकता है, पर वह दिखने में भिन्न होता है — जैसे "मैं आध्यात्मिक हूँ", "मेरा ज्ञान श्रेष्ठ है"। यह अहंकार और भी गहरा होता है क्योंकि यह खुद को छिपाता है।
  2. सच्ची आध्यात्मिकता अहंकार से मुक्त है: जो व्यक्ति अपने भीतर के अहंकार को पहचानकर उसे त्याग देता है, वही असली आध्यात्मिक है।
  3. अहंकार को पहचानना पहला कदम है: बिना अहंकार को समझे और स्वीकारे आध्यात्मिक प्रगति संभव नहीं।
  4. सतत स्व-अवलोकन आवश्यक: अपने विचार, भावनाएँ और कर्म निरंतर जांचते रहो कि कहीं अहंकार तो प्रकट नहीं हो रहा।
  5. भगवान की भक्ति अहंकार को मिटाती है: जैसे गीता में कहा गया है, समर्पण से मन निर्मल होता है और अहंकार का अंत होता है।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो, "मैं तो आध्यात्मिक अभ्यास करता हूँ, फिर भी कहीं न कहीं अहंकार कैसे हो सकता है?" यह सवाल तुम्हारे भीतर की सच्चाई की खोज की शुरुआत है। कभी-कभी हम अपने अच्छे कर्मों और ज्ञान का घमंड कर बैठते हैं, जो अहंकार का सूक्ष्म रूप है। यह समझो कि अहंकार कोई बुरा शत्रु नहीं, बल्कि एक छुपा हुआ दोस्त है जो तुम्हें सुधारने के लिए आता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, देखो, अहंकार का वास सबमें है — चाहे वह राज हो या साधु। पर जो इसे पहचानकर, उसे त्याग देता है, वही मेरी सच्ची भक्ति करता है। अहंकार को मिटाने का सबसे बड़ा उपाय है — मुझमें पूर्ण विश्वास और समर्पण। जब तुम मुझमें लीन हो जाओगे, तब अहंकार अपने आप नष्ट हो जाएगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी

एक बार एक युवा साधु था जो बहुत ध्यान करता था और सबको अपने आध्यात्मिक ज्ञान से प्रभावित करता था। वह सोचता था, "मैं सबसे अधिक ज्ञानी हूँ।" एक दिन उसके गुरु ने उससे पूछा, "क्या तुम्हें कभी ऐसा लगता है कि तुम्हारा अहंकार तुम्हें रोक रहा है?" साधु ने कहा, "नहीं गुरुजी, मैं तो अहंकार से मुक्त हूँ।" गुरु ने हंसकर कहा, "जब तक तुम यह नहीं समझ पाओगे कि अहंकार तुम्हारे भीतर है, तब तक तुम सच में आध्यात्मिक नहीं हो।" यह सुनकर साधु ने अपना मन खोला और सच्चे अर्थ में अहंकार को त्यागने का संकल्प लिया।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन के भीतर एक छोटी सी जगह बनाओ जहाँ तुम अपने अहंकार को बिना डर के देख सको। जैसे कोई मित्र जो तुम्हें सच बताता है। उसे स्वीकार करो, उससे लड़ो मत। बस देखो और समझो कि वह तुम्हारे विकास के लिए है।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अंदर छुपे अहंकार को पहचानने और स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ?
  • क्या मैं अपने आध्यात्मिक अभ्यास में विनम्रता और समर्पण का स्थान देता हूँ?

🌼 अहंकार की आड़ में छुपी आध्यात्मिकता को पहचानो और मुक्त हो जाओ
याद रखो, अहंकार कोई दानव नहीं, बल्कि एक संकेत है कि तुम्हें और गहराई से अपने अंदर झांकना है। आध्यात्मिकता का असली सार है — खुद को जानना, स्वीकारना और प्रेम से बदलना। मैं तुम्हारे साथ हूँ, और यह यात्रा तुम्हें प्रकाश की ओर ले जाएगी।
शुभकामनाएँ, साधक!

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