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भगवद गीता शारीरिक पीड़ा के बारे में क्या कहती है?

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दर्द के सागर में भी तुम अकेले नहीं हो
साधक, शारीरिक पीड़ा जीवन का एक अविभाज्य हिस्सा है। जब शरीर में वेदना होती है, तब मन भी विचलित हो जाता है। परन्तु जान लो, यह संसार की प्रकृति है, और भगवद गीता हमें सिखाती है कि कैसे इस पीड़ा के बीच भी मन की शांति और स्थिरता बनाए रखी जा सकती है। तुम अकेले नहीं हो, यह अनुभव सबका है, और इससे लड़ने का सही मार्ग भी गीता में बताया गया है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 14
मा त्रासिकि भूत्वा भव सामान्यः
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥
हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी स्थिरचित्त रहो। इस समानता की भावना से तुम्हें न तो भय होगा और न ही पाप लगेगा।
सरल व्याख्या:
जीवन में सुख और दुख दोनों आते रहते हैं, जैसे शरीर में कभी आराम होता है तो कभी पीड़ा। गीता हमें सिखाती है कि इन दोनों को समान दृष्टि से देखो। जब हम सुख-दुख को समान समझ लेते हैं, तब शारीरिक पीड़ा भी हमें विचलित नहीं कर पाती।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. शारीरिक पीड़ा अस्थायी है: शरीर जन्म लेता है, बुढ़ाता है और मरता है। इसलिए शरीर की पीड़ा को स्थायी मत समझो।
  2. मन का स्थिर होना आवश्यक है: जब मन स्थिर होगा, तो शारीरिक पीड़ा भी कम महसूस होगी।
  3. आत्मा अमर है: शरीर की पीड़ा आत्मा को छू नहीं सकती। आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है।
  4. धैर्य और समता की शक्ति: दुख में भी धैर्य रखें, क्योंकि यही मनुष्य को मजबूत बनाता है।
  5. कर्म करते रहो बिना फल की चिंता किए: कर्म करो, पर परिणाम की चिंता मत करो, इससे मन को शांति मिलेगी।

🌊 मन की हलचल

"यह दर्द कब खत्म होगा? क्या मैं फिर से स्वस्थ हो पाऊंगा? क्यों मुझे यह सब सहना पड़ रहा है?" ये प्रश्न मन में उठते हैं। यह स्वाभाविक है। पर याद रखो, दर्द के बीच भी तुम्हारे अंदर एक शांत और अडिग आत्मा है, जो इस सब से परे है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, जब तुम शारीरिक पीड़ा में हो, तब याद रखो मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हारा शरीर क्षणिक है, पर तुम्हारा आत्मा अमर है। उसे पहचानो। दुःखों में भी समभाव रखो, क्योंकि यही तुम्हें असली शक्ति देगा। मुझ पर विश्वास रखो, मैं तुम्हें हर संकट से उबारूँगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक विद्यार्थी परीक्षा की चिंता से परेशान था। उसकी तबियत भी ठीक नहीं थी। पर उसके गुरु ने कहा, "तुम्हारा शरीर एक नाव की तरह है, जो नदी के तूफानी पानी में चल रही है। नाव को देख कर मत घबराओ, नाव से ऊपर आकाश है, जो हमेशा शांत रहता है। उसी आकाश की तरह तुम्हारा आत्मा भी शांत है। नाव चाहे हिले या डोल, आकाश स्थिर रहता है।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने शरीर की पीड़ा को स्वीकार करो, उससे लड़ने की बजाय उसे महसूस करो। गहरी सांस लेकर मन को स्थिर करो और कहो, "यह भी बीत जाएगा। मैं स्थिर हूँ।"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने शरीर की पीड़ा को अपने मन की शांति से ऊपर नहीं आने देता?
  • क्या मैं अपने असली स्वरूप — आत्मा — को पहचान पा रहा हूँ?

शांति की ओर एक कदम
प्रिय, शारीरिक पीड़ा के बावजूद तुम्हारा मन और आत्मा स्थिर रह सकता है। गीता की यह सीख तुम्हें जीवन के हर दर्द में सहारा देगी। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो, कृष्ण तुम्हारे साथ हैं। धैर्य रखो, सब ठीक होगा।
ॐ शांति: शांति: शांति:।

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